नयी दिल्ली, 21 मई (भाषा) केंद्र सरकार ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 का बचाव करते हुए कहा कि वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है, पर यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह के समक्ष अपनी दलील पेश करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘‘वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है। लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। वक्फ इस्लाम में सिर्फ दान के अलावा और कुछ नहीं है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘दान को हर धर्म में मान्यता दी गई है और इसे किसी भी धर्म का अनिवार्य सिद्धांत नहीं माना जा सकता।’’ इससे पहले, दिन में मेहता ने कहा कि कोई भी व्यक्ति ‘वक्फ बाई यूजर’ सिद्धांत का उपयोग करके सार्वजनिक भूमि पर अधिकार का दावा नहीं कर सकता, जो एक वैधानिक अधिकार है और कानून इसे छीन सकता है।
‘वक्फ बाई यूजर’ का आशय एक ऐसी अवधारणा से है जिसके तहत बिना दस्तावेज के किसी संपत्ति को धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए उसके दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर वक्फ के रूप में मान्यता दी जाती है।
मेहता ने कहा कि ‘वक्फ बाई यूजर’ की अवधारणा राज्य द्वारा ‘वक्फ संपत्तियों के समग्र अधिग्रहण’ की अनुमति नहीं देती है, जैसा कि आरोप लगाया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह (‘वक्फ बाई यूजर’) कोई मौलिक अधिकार नहीं है, यह कानून का एक हिस्सा है और जो विधायिका इसे बनाती है, वह उसे वापस भी ले सकती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘केंद्र 14 करोड़ नागरिकों की संपत्तियों का संरक्षक है और किसी का भी सरकारी जमीन पर अधिकार नहीं है।’’
मेहता ने कहा, ‘‘किसी को भी सरकारी जमीन पर दावे का अधिकार नहीं है। उच्चतम न्यायालय का एक फैसला है, जिसमें कहा गया है कि अगर संपत्ति सरकार की है और उसे वक्फ घोषित किया गया है, तो सरकार उसे बचा सकती है।’’
शुरुआत में, शीर्ष विधि अधिकारी मेहता ने कहा कि किसी भी प्रभावित पक्ष ने अदालत का रुख नहीं किया है और ‘‘किसी ने इस तरह का मामला नहीं रखा है कि संसद के पास इस कानून को पारित करने की क्षमता नहीं है।’’
उन्होंने संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट और इस तथ्य का हवाला दिया कि अधिनियम के अस्तित्व में आने से पहले कई राज्य सरकारों और राज्य वक्फ बोर्डों से परामर्श किया गया था।
इस दलील पर कि जिलाधिकारी या उससे ऊपर का कोई अधिकारी कथित वक्फ संपत्तियों पर दावे से जुड़े विवाद पर फैसला कर सकता है, उन्होंने कहा कि अधिकारी अंतिम रूप से संपत्ति के स्वामित्व का निर्धारण नहीं करेगा।
मेहता ने कहा कि संपत्ति की बेदखली या अधिग्रहण केवल वक्फ न्यायाधिकरण की कार्यवाही (धारा 83 के तहत) और उसके बाद की अपील के माध्यम से उचित प्रक्रिया के बाद ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि जब तक इस मुद्दे पर पूरी तरह से फैसला नहीं हो जाता, तब तक वक्फ के पास कब्जा जारी रहेगा।
मेहता ने संयुक्त संसदीय समिति के व्यापक विचार-विमर्श का हवाला दिया, जिसमें 96 बैठकें हुईं, 97 लाख अभ्यावेदन प्राप्त हुए और 25 वक्फ बोर्डों तथा कई राज्य सरकारों से प्राप्त प्रतिक्रिया को शामिल किया गया।
उन्होंने कहा कि विधेयक को जल्दबाजी में या यंत्रवत् पारित नहीं किया गया, बल्कि इसमें खंड-दर-खंड गहन समीक्षा शामिल थी।
मेहता ने कहा, ‘‘अभूतपूर्व स्तर पर परामर्श लिया गया। यह ऐसा मामला नहीं है, जिसे बंद दरवाजे के पीछे निपटाया गया। पक्षकारों से प्राप्त बहुत से सुझावों को शामिल किया गया या खारिज कर दिया गया।’’
मेहता ने पीठ का ध्यान सार्वजनिक या निजी भूमि पर बिना किसी दस्तावेज के स्वामित्व का दावा करने के लिए ‘वक्फ बाई यूजर’ सिद्धांत के ‘ऐतिहासिक दुरुपयोग’ की ओर भी आकर्षित किया।
उन्होंने कहा, ‘‘यह समस्या 1923 से ही मौजूद है। वक्फ संपत्ति से संबंधित पहला कानून इसी मुद्दे पर अंकुश लगाने के लिए बनाया गया था।’’
इस सवाल पर कि क्या यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 (धर्म की स्वतंत्रता और धार्मिक मामलों का प्रबंधन) का उल्लंघन करता है, उन्होंने कहा कि वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है, लेकिन यह एक अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है। मेहता ने कहा कि हिंदू और जैन धार्मिक न्यासों के विपरीत (जो धार्मिक पहलुओं, मंदिरों, पुजारियों और उनके प्रबंधन से संबंधित हैं) वक्फ में स्कूल, कॉलेज आदि शामिल हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 25 के तहत किसी भी संवैधानिक संरक्षण का दावा करने से पहले डॉ. बी.आर. आंबेडकर द्वारा बताए गए आवश्यक धार्मिक प्रथा की शर्त पूरी होनी चाहिए।
मेहता ने कहा, ‘‘जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि वक्फ इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा है, तब तक बाकी तर्क आगे नहीं बढ़ सकते।’’
केंद्र ने इस दावे का विरोध किया कि कानून वक्फ संपत्तियों के बड़े पैमाने पर अधिग्रहण को सक्षम बनाता है। उन्होंने कहा, ‘‘यहां कोई समग्र कब्जा नहीं है। नामित अधिकारी कब्जा नहीं कर सकता। पहले राजस्व प्रविष्टि में परिवर्तन होता है, जो स्वयं चुनौती और अपील के अधीन है। मालिकाना विवाद अदालतों में हल होते रहेंगे।’’
मेहता ने कहा कि सरकार सार्वजनिक भूमि की रक्षा कर सकती है, भले ही उसे गलती से वक्फ के रूप में दर्ज कर दिया गया हो, और वक्फ रजिस्टर में केवल प्रविष्टि होने से स्वामित्व नहीं मिल जाता।
मेहता ने कहा कि किसी भी प्रभावित पक्ष ने अदालत का रुख नहीं किया। उन्होंने कहा कि संशोधित कानून भविष्य में ‘वक्फ बाई यूजर’ सिद्धांत की अनुमति नहीं देता है।
केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि सीडब्ल्यूसी के कुल 22 सदस्यों में अधिकतम चार गैर-मुस्लिमों को शामिल करने की अनुमति दी गई है।
राज्य बोर्डों में कुल 11 सदस्यों में से अधिकतम तीन गैर-मुस्लिम सदस्य नियुक्त किए जा सकते हैं – सिवाय इसके कि यदि पदेन सदस्य गैर-मुस्लिम हो तो दो गैर-मुस्लिम नियुक्त किए जा सकते हैं।
मेहता ने कहा, ‘‘गैर-मुस्लिम भी पीड़ित या प्रभावित या लाभार्थी हो सकते हैं और यही कारण है कि गैर-मुस्लिमों को शामिल किया गया है।’’
सुनवाई बृहस्पतिवार को भी जारी रहेगी।
भाषा संतोष सुरेश
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