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शुक्रवार, 25 अप्रैल, 2025
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वक्फ अधिनियम मुसलमानों की आवश्यक धार्मिक प्रथाओं का सम्मान करता है: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

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नयी दिल्ली, 25 अप्रैल (भाषा) केंद्र सरकार ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय को अवगत कराया कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 मुसलमानों की आवश्यक धार्मिक प्रथाओं का सम्मान करता है, क्योंकि इसमें आस्था एवं पूजा के मामलों को ‘नहीं छुआ’ गया है।

सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल प्रारंभिक हलफनामे में सरकार ने कहा कि इसके जरिये किए गए सुधार पारदर्शिता, जवाबदेही, सामाजिक कल्याण और समावेशी शासन के उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं, जो संविधान के मूल्यों और सार्वजनिक हित के अनुरूप हैं।

अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने का अनुरोध करते हुए केंद्र ने संशोधित कानून को ‘संवैधानिक रूप से वैध’ अधिनियम बताया, जिसने संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धर्म की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के साथ पहले से मौजूद वक्फ व्यवस्था को ‘औपचारिक, सामंजस्यपूर्ण और आधुनिक’ बनाया है।

इसमें कहा गया है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025, पारदर्शी, कुशल और समावेशी उपायों के माध्यम से भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को आधुनिक बनाने के उद्देश्य से पारित किया गया था।

हलफनामे में कहा गया है कि यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय की आवश्यक धार्मिक प्रथाओं का सम्मान करता है, क्योंकि इसमें आस्था और पूजा के मामलों के अछूता रखा गया है, जबकि संविधान द्वारा अधिकृत वक्फ प्रबंधन के धर्मनिरपेक्ष, प्रशासनिक पहलुओं को वैध रूप से विनियमित किया गया है।

इसमें कहा गया है कि ये सुधार केवल वक्फ संस्थाओं के धर्मनिरपेक्ष और प्रशासनिक पहलुओं, जैसे संपत्ति प्रबंधन, रिकॉर्ड रखने और शासन संरचनाओं पर केंद्रित हैं, तथा इस्लामी आस्था की किसी भी आवश्यक धार्मिक प्रथाओं या सिद्धांतों पर कोई प्रभाव नहीं डालेंगे।

हलफनामे में कहा गया है कि अनुच्छेद 25 और 26 किसी व्यक्ति या संप्रदाय के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और सामाजिक कल्याण एवं नियामक उपायों को लागू करने के राज्य के अधिकार के बीच संतुलन स्थापित करते हैं।

इसमें कहा गया है, ”पेश किए गए सुधार धर्मनिरपेक्ष और प्रशासनिक पहलुओं पर केंद्रित हैं, जो अधिक से अधिक धार्मिक विश्वासों से जुड़े हो सकते हैं, न कि स्वयं विश्वासों से।”

केंद्र ने संशोधित कानून का बचाव किया और संसद द्वारा पारित ”संवैधानिकता की धारणा वाले कानून” पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी भी ‘पूर्ण रोक’ का विरोध किया।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ अंतरिम आदेश पारित करने के मामले पर पांच मई को सुनवाई करेगी।

भाषा

पवनेश सुरेश

सुरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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