अयोध्या: सूर्योदय से पहले उठना, योगाभ्यास करना, भगवान राम के मंत्र और स्तुति सीखना – अयोध्या में राम मंदिर में अर्चक (पुजारी) बनने के लिए प्रशिक्षण ले रहे 21 युवाओं का एक पूरा कार्यक्रम है जो सुबह ब्रह्म मुहूर्त में शुरू होता है और रात 8 बजे रात्रिभोज के साथ समाप्त होता है.
20 से 30 वर्ष की आयु के सभी पुजारियों को रामानंद पद्धति के अनुसार राम की पूजा करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जो कि 14वीं सदी के संत रामानंद को द्वारा बताई गई कर्मकांड की एक पद्धति है, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपना जीवन राम की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित कर दिया था. ये पुजारी वर्तमान में नवनिर्मित तीन मंजिला तीर्थ क्षेत्र भवन के पीछे एक इमारत, रंग वाटिका में रह रहे हैं, और पहले पारंपरिक गुरुकुल में अध्ययन कर चुके हैं.
दिप्रिंट से बात करते हुए, आचार्य दुर्गा प्रसाद, जिनकी देखरेख में पुजारियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है, ने कहा कि सभी युवा पुजारियों को पारंपरिक वैदिक शिक्षा में प्रशिक्षित किया गया है.
उन्होंने कहा, “उन्होंने आचार्य पद (गुरुकुल प्रणाली में स्नातकोत्तर) तक की पढ़ाई की है. उनमें से अधिकांश ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली में पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की है.”
इस साल की शुरुआत में, एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि 21 पुजारियों में से कुछ अनुसूचित जाति (एससी) और अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) से थे. हालांकि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष आचार्य गोविंद देव गिरि ने इससे इनकार किया है.
दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘मीडियाकर्मियों की प्रवृत्ति निरर्थक बातें फैलाने की होती है.’
“किसी को अब ऊंची जाति और निचली जातियों के बारे में चर्चा छोड़ देनी चाहिए. जब हिंदू धर्मग्रंथों ने ब्राह्मणों को कर्मकांड आवंटित किया है…तब ब्राह्मण ही इसे करते हैं. समाज इसके अलावा कुछ और स्वीकार नहीं करता है.”
अर्चक के रूप में औपचारिक रूप से शामिल होने से पहले, प्रशिक्षण प्राप्त पुजारियों को एक परीक्षा देनी होगी.
आचार्य प्रसाद ने कहा, “पाठ्यक्रम समाप्त होने के बाद एक परीक्षण होगा जिसके बाद उनकी भूमिका को अंतिम रूप दिया जाएगा. अब तक, आने वाले दो-तीन दिनों में उनमें से 10 को राम मंदिर में नियुक्त करने की योजना है ताकि वे कर्मकांडों और पूजा पद्धतियों से परिचित हो सकें.”
उनका चयन कैसे किया गया
आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने दिप्रिंट को बताया कि पुजारी 3,000 लोगों में से चुने गए उन 24 लोगों में से हैं, जिन्होंने अर्चक पद के लिए पिछले साल श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा जारी आवेदन पत्र भरा था. उनमें से एक बाहर हो गए, जबकि दो अन्य, ट्रस्ट द्वारा नीतिगत निर्णय के फलस्वरूप नहीं चुना गया क्योंकि उनके परिवार के सदस्य राम मंदिर से जुड़े पाए गए थे. शरण विशिष्ट शब्दों की उत्पत्ति और उसकी अवधारणा पर ट्रेनिंग ले रहे अर्चकों के लिए विशेष कक्षाएं लेते हैं.
जिस फॉर्म को दिप्रिंट ने देखा है, उसमें आवेदकों को अपना नाम, जन्मतिथि, कॉन्टैक्ट डिटेल्स और शैक्षिक योग्यता जैसे बुनियादी विवरण भरने के लिए कहा गया था. साथ ही उनका गोत्र, उस गुरुकुल का नाम जहां उन्होंने अध्ययन किया था और उन आचार्य का नाम भी लिखने को कहा गया था जिनके अधीन उन्होंने अपनी वैदिक शिक्षा प्राप्त की.
आवेदकों में से एक, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात की, ने कहा कि आवेदन पत्र भरने के बाद, उन्हें 25 नवंबर को ट्रस्ट से एक मैसेज मिला, जिसमें उन्हें अयोध्या के रामकोट क्षेत्र में तीर्थ क्षेत्र भवन में साक्षात्कार के लिए आने के लिए कहा गया था.
उन्होंने कहा, “मैसेज में मुझे अपने साथ एक फोटो, शैक्षणिक प्रमाण पत्र और अपना आधार कार्ड लाने के लिए कहा गया था. साक्षात्कार तीन दिनों तक चला.”
दिप्रिंट ने जिस मैसेज को देखा उसमें कहा गया था कि साक्षात्कार में भारतीय संस्कृति से संबंधित सामान्य ज्ञान की जांच, वैदिक मंत्रों का सस्वर उच्चारण और संध्या मंत्रों (गोधूलि के समय भगवान की पूजा) का ज्ञान शामिल होगा.
एक अन्य आवेदक, जिसका साक्षात्कार हुआ था, लेकिन वह अंतिम रूप से सफल नहीं हो सके, ने दिप्रिंट को बताया कि साक्षात्कार के दौरान, उनसे यह भी पूछा गया था कि वे किस श्रेणी के ब्राह्मण हैं.
उन्होंने कहा, “ब्राह्मण कई प्रकार के होते हैं जैसे सारस्वत, कान्यकुब्ज, गौड़, उत्कल, मैथिल और सरयूपारीण. हमसे पूछा गया कि हम किस श्रेणी में आते हैं.”
कई प्रशिक्षु अयोध्या जिले की सीमा के 25 किलोमीटर के भीतर के क्षेत्रों से आते हैं. आचार्य शरण ने दिप्रिंट से कहा, अयोध्या और आसपास के इलाकों के पुजारियों को प्राथमिकता दी गई.
पिछले साल 7 दिसंबर को शुरू हुआ प्रशिक्षण मई तक पूरा हो जाएगा, जिसके बाद उन्हें राम मंदिर में पुजारी के रूप में समायोजित किया जाएगा.
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उन्हें कैसे प्रशिक्षित किया जा रहा है
प्रसाद के अनुसार, पुजारियों की दिनचर्या काफी सधी हुई होती है जो सुबह लगभग 4 बजे ब्रह्ममुहूर्त (सूर्योदय से पहले) में जागने से शुरू होती है उसके बाद आचमनम (शुद्धीकरण अनुष्ठान) और प्राणायाम (सांस पर ध्यान केंद्रित करने वाला योग अभ्यास) करना होता हैं. फिर वे सूर्य को अर्घ्य (भगवान सूर्य को जल अर्पित करना) देते हैं, उसके पश्चात वे स्वाध्याय करते हैं. यह सब उनकी पहली क्लास से पूर्व होता है, जो सुबह 9 बजे से शुरू होती है.
प्रसाद ने कहा, “कक्षा में, उन्हें भगवान राम की स्तुति सिखाई जाती है. यह दोपहर तक चलती है, जिसके बाद लंच ब्रेक दिया जाता है. फिर दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक फिर क्लास होती है. शाम को खेल और आपस में चर्चा के लिए कुछ समय दिया जाता है, जिसके बाद वे कक्षाओं में पढ़ाए गए विषयों को फिर से दोहराते हैं और उसके बाद रात 8 बजे भोजन करते हैं.”
उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण कार्यक्रम भगवान राम की पूजा के लिए ट्रस्ट द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम का पालन करता है.
उन्होंने कहा, “इसमें पुरुष सूक्त (ऋग्वेद भजन ब्रह्मांड के मूल तत्व पुरुष को समर्पित श्लोक), भगवान राम की स्तुति और षोडशोपचार (16 पदार्थों के साथ पूजा अनुष्ठान) के मंत्र शामिल हैं.”
दिप्रिंट से बात करते हुए आचार्य शरण ने कहा कि पुजारियों को भगवान राम की पूजा के लिए तय की गई वैदिक संहिता और रामानंद पद्धति के मंत्रों के अनुसार प्रशिक्षित किया जा रहा है.
पुजारियों को प्रशिक्षित करने वाले दो अन्य आचार्यों में एक हैदराबाद के आचार्य केशव शामिल हैं, जो वेदों के बारे में पढ़ाते हैं, और दूसरे अयोध्या के आचार्य सत्य नारायण दास हैं, जो उन्हें पूजा अनुष्ठानों व कर्मकांडों के बारे में ट्रेनिंग दे रहे हैं.
इन सबके कारण व्यक्तिगत जीवन के लिए बहुत कम समय बचता है.
शरण ने कहा कि पुजारी का अपना कोई निजी जीवन नहीं होता और उसकी पूरी दिनचर्या भगवान के हिसाब से तय होती है.
उन्होंने कहा, “पुजारी की दिनचर्या भगवान की दिनचर्या के अनुसार शुरू होती हैं. एक पुजारी भगवान के उठने के साथ उठता है, भगवान के समयानुसार खाता है और भगवान के सोने के साथ ही सोता है. उन्हें भगवान को नहलाना होगा, उन्हें ढंकना होगा और भगवान की दिनचर्या के अनुसार उनकी देखभाल करनी होगी, न कि अपनी इच्छा के अनुसार.”
उन्होंने कहा कि प्रशिक्षित किए जा रहे पुजारियों को जल्द ही राम मंदिर में वर्तमान में पूजा करने वाले पुराने पुजारियों के साथ अटैच किया जाएगा ताकि वे अपनी दिनचर्या में खुद को समायोजित कर सकें और कर्मकांडों से परिचित हो सकें.
उन्होंने कहा, “किसी को भी एक बार में सब कुछ पता नहीं चल सकता, यही कारण है कि उन्हें सबसे पहले पुराने पुजारियों के साथ अटैच किया जाएगा. पूजा का संचालन करने वाले बड़े पुजारी तब तक ऐसा करते रहेंगे जब तक कि छोटे पुजारी पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं हो जाते. उनका अनुभव युवा पुजारियों को सीखने में मदद करेगा.”
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