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बुधवार, 28 मई, 2025
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विश्वभारती के एमटीएस कर्मचारियों ने कुलपति के समर्थन में रैली के लिए मजबूर किए जाने का आरोप लगाया

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कोलकाता, तीन नवंबर (भाषा) विश्वभारती के सहायक कर्मचारियों (एमटीएस) के एक वर्ग ने दावा किया कि कुलपति विद्युत चक्रवर्ती ने उन्हें अपने कार्यकाल के विस्तार के समर्थन में शांतिनिकेतन परिसर में रैली निकालने के लिए मजबूर किया था।

एमटीएस सदस्यों ने अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को इस बारे में एक मेल भेजा था, जिससे एक नया विवाद शुरू हो गया।

विश्वभारती के अधिकारियों ने इस दावे को ‘‘निराधार और बेबुनियाद’’ बताया है क्योंकि बांग्ला और अंग्रेजी में भेजे गए गुमनाम मेल में किसी भी संगठन के नाम का इस्तेमाल नहीं किया गया है। केंद्रीय विश्वविद्यालय में चक्रवर्ती का कार्यकाल आठ नवंबर को समाप्त होने वाला है।

मेल में प्रधान का ध्यान ‘‘कुलपति के कार्यकाल के विस्तार की मांग को लेकर एमटीएस द्वारा रैली आयोजित करने के प्रयास’’ की ओर आकर्षित किया गया।

इसमें इस तरह के ‘‘प्रयास’’ पर निराशा भी व्यक्त की गयी क्योंकि 405 एमटीएस की भर्ती राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी(एनटीए) द्वारा योग्य उम्मीदवारों के एक पैनल में से की गई थी। मेल में कहा गया, ‘‘भर्ती कुलपति या किसी अन्य की दया पर नहीं की गई।’’

मेल में कहा गया है, ‘‘हालांकि विश्वभारती में शामिल होने के बाद से कुलपति ने हम पर अपने नियमित कर्तव्यों के इतर विभिन्न कार्यक्रमों में अनिवार्य रूप से भाग लेने के लिए दबाव बनाया। ऐसा लगता है जैसे उन्होंने हमें नौकरी देकर हम पर एहसान किया है और हमें उनकी मांगों का पालन करना चाहिए।’’

मेल में कहा गया, ‘‘आठ नवंबर को, कुलपति चक्रवर्ती का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। इन परिस्थितियों में उनकी प्रबल इच्छा है कि शांतिनिकेतन की सड़कों पर रैली निकलना चाहिए, जहां एकमात्र नारा होगा कि उन्हें कुलपति के रूप में एक और कार्यकाल या कम से कम एक वर्ष का विस्तार देना चाहिए।’’

यह पत्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जो केंद्रीय विश्वविद्यालय के ‘आचार्य’ या कुलाधिपति हैं, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, राज्यपाल सी वी आनंद बोस, इसके रेक्टर और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी भेजा गया था।

मेल में यह भी दावा किया गया है कि इसी तरह की मांग वाले पोस्टर पहले ही विश्वविद्यालय के एक संविदा कर्मचारी के माध्यम से शांतिनिकेतन में दीवारों पर चिपकाए जा चुके हैं।

एक नवंबर को केंद्रीय मंत्री को लिखे एक अन्य मेल में विश्वभारती के उसी ‘‘नवनियुक्त’’ एमटीएस ने कहा कि उन्हें छोड़कर विश्वविद्यालय के सभी वेतनभोगी कर्मचारियों को अक्टूबर का वेतन मिल गया है। उन्होंने कहा कि यह प्रधान को लिखे पहले के पत्र के ‘‘प्रतिशोध’’ में कुलपति द्वारा की गई ‘‘भेदभावपूर्ण’’ कार्रवाई का एक उदाहरण है।

बोलपुर के पूर्व सांसद और विश्वभारती के पूर्व शिक्षाविद अनुपम हाजरा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि कर्मचारियों के आरोप ‘‘गंभीर हैं और जांच की जानी चाहिए।’’ हाजरा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की केंद्रीय समिति के सदस्य हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘एक आश्रमवासी और विश्वभारती का पूर्व छात्र होने के नाते, मैं कुलपति के खिलाफ आरोपों के बारे में चिंतित हूं। हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी, जो विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं, आरोपों पर ध्यान देंगे।’’

हाजरा ने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि आठ नवंबर के बाद कुलपति की सेवा जारी रखने के मुद्दे पर आश्रमवासियों, विश्वभारती के छात्रों और संकाय सदस्यों और शांतिनिकेतन के निवासियों की भावना का सम्मान करते हुए निर्णय लिया जाएगा।’’

हाल के वर्षों में कुलपति के साथ तल्ख रिश्ते रखने वाले हाजरा ने अपने आधिकारिक फेसबुक अकाउंट पर एमटीएस कर्मचारियों के कथित मेल की तस्वीरें भी साझा कीं।

संपर्क करने पर विश्वभारती की प्रवक्ता महुआ बनर्जी ने कहा, ‘‘उक्त मेल में प्रेषक या किसी मान्यता प्राप्त संगठन का नाम नहीं है। इसमें बिना सबूत के बेबुनियाद आरोप लगाया गया है और एक जिम्मेदार संस्थान के रूप में हम इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे।’’

शांतिनिकेतन को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किए जाने के बाद संस्थान द्वारा लगाई गई पट्टिकाओं से गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का नाम गायब होने को लेकर इस सप्ताह की शुरुआत में विश्वविद्यालय में एक और विवाद खड़ा हो गया था। ममता बनर्जी ने विश्वविद्यालय को ‘अल्टीमेटम’ देते हुए मांग की थी कि टैगोर का नाम पट्टिकाओं पर लगाया जाए या तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के विरोध प्रदर्शन का सामना करने के लिए तैयार रहे।

भाषा आशीष नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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