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Tuesday, 7 May, 2024
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वायरल वीडियो, राजनीतिक तंज- तमिलनाडु में उत्तर भारतीय कामगारों के खिलाफ आक्रोश बढ़ रहा है

चेन्नई में आयोजित रेलवे भर्ती बोर्ड की परीक्षा में उत्तर भारत के उम्मीदवारों की भारी भीड़ पर बात करने वाला वीडियो क्लिप YouTube पर अपलोड होने कुछ ही मिनटों में वायरल हो गया.

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चेन्नई: पुरानी तमिल कहावत ‘वंधराई वाझा वैक्कुम तमिझगम’ (तमिलनाडु राज्य में जो आता है उसे आजीविका प्रदान की जाती है) का सार धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है, राज्य के प्रवासियों को नौकरी खोने का डर सता रहा है.

तमिलनाडु के एक गांव के रेलवे नौकरी के अभ्यर्थियों का एक वीडियो क्लिप, जिसमें 19 जनवरी को चेन्नई में आयोजित रेलवे भर्ती बोर्ड परीक्षा में कथित तौर पर उत्तर भारत के उम्मीदवारों की भारी भीड़ पर अपने अविश्वास के बारे में बात की गई थी, उसी दिन यूट्यूब पर अपलोड होने के कुछ ही मिनटों के भीतर वायरल हो गया, जिसे 12,000 बार देखा गया.

वीडियो में युवक फिजिकल एग्जामिनेशन के अपने अनुभव बताता नजर आ रहा. उसने कहा, ‘मैं हैरान होकर सोच में पढ़ गया था कि यह सच में तमिलनाडु है या फिर मैं उत्तर प्रदेश की किसी जगह पहुंच गया हूं. मानों उत्तर भारतीयों ने इस जगह को पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लिया है.’

उसी दिन व्हाट्सएप ग्रुप्स में कई वीडियो भी शेयर किए गए, जिसमें कथित तौर पर देश भर के प्रवासियों की भीड़ दिखाई दे रही थी, जो फिजिकल एग्जामिनेशन में भाग लेने के लिए अवाडी में तमिलनाडु विशेष पुलिस बल प्रशिक्षण मैदान के बाहर लाइन में खड़े थे.

व्हाट्सएप ग्रुपों पर शेयर एक पोस्ट में लिखा था, ‘फिटनेस टेस्ट में प्रत्येक 100 उम्मीदवारों में से केवल 5 तमिलनाडु से थे.’

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तमिलनाडु में स्थानीय कार्यबल से अवसरों को ले जाने को लेकर प्रवासियों के बारे में चिंता व्यक्त करने वाले ऐसे सार्वजनिक बयानों की सीरीज में वीडियो और व्हाट्सएप टिप्पणियां ताजी हैं. मजदूर वर्ग से लेकर राजनीतिक वर्ग तक, जीवन के हर क्षेत्र के लोग प्रवासी मुद्दे पर मुखर रहे हैं.


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एक महीने पहले तमिलनाडु में चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन के एक प्लेटफॉर्म पर तथाकथित प्रवासियों के आने का एक और वीडियो क्लिप वायरल हुआ था. इसके वॉयसओवर में कहा जा रहा था, ‘प्रवासियों का हमारे राज्य में आना तमिलनाडु और तमिलों के लिए खतरा है. बिना ज्यादा देरी के यहां हर किसी को इस बात का एहसास होगा.’

अप्रैल 2022 में प्रकाशित प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2011 की जनगणना के आधार पर, राज्य में 34.87 लाख से अधिक प्रवासी मजदूर हैं और इनमें से 7.13 लाख महिलाएं हैं.

आर गीता, असंगठित श्रमिक महासंघ और निर्माण मजदूर पंचायत संगम की अखिल भारतीय अतिरिक्त सचिव ने दावा किया, ‘राज्य में बहुत सारे शिक्षित बेरोजगार हैं. कुछ राज्यों के विपरीत, जिनके पास स्थानीय लोगों को तवज्जो देने के सरकारी आदेश हैं, तमिलनाडु ऐसा नहीं हो रहा है, जिसको लेकर विरोध बढ़ रहा है क्योंकि बहुत सारे लोग इन अवसरों को छीन रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘पूर्व अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) के शासन के दौरान एक सरकारी आदेश में संशोधन किया गया था, जिससे तमिलनाडु के बाहर के लोगों को यहां राज्य और केंद्रीय की नौकरियां मिल सकें.’

प्रवासी जिक्र के साथ राजनीतिक तंज

राजनीतिक वर्ग के बयानों ने राज्य में प्रवासी विवाद को और बढ़ा दिया है.

कुछ दिन पहले राज्य में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) की संगठन सचिव आर.एस. भारती ने राज्यपाल आर.एन. रवि के एक प्रवासी मजदूर के साथ तुलना की, ‘मैंने पहले कहा था कि जो लोग सोन पापड़ी और पानी पुरी बेचते हैं, वे तमिलनाडु के गौरव को नहीं जानते हैं … मुझे पता चला है कि कई लोग बिहार से आए हैं और मुझे लगता है कि राज्यपाल भी ऐसी ही ट्रेन से आए हैं.’

हिंदी थोपने के प्रयासों की निंदा करते हुए, तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री के. पोनमुडी ने पिछली मई में टिप्पणी की थी, ‘वे कहते थे कि यदि आप हिंदी पढ़ते हैं, तो आपको नौकरी मिलेगी? ऐसा है क्या! आप कोयम्बटूर में देख सकते हैं कि अब कौन पानी पुरी बेच रहा है?’

राज्य के व्यवसाय विकास प्रबंधक चंद्रप्रसाद वी.बी. ने कहा कि प्रवासी मजदूरों को राज्य में कई निजी कंपनियों में स्थाई काम मिल रहा है, जो कि उन्हें विश्वसनीय मानती हैं. उन्होंने कहा कि दरअसल वे मेहनती हैं, लंबे समय तक काम करने के लिए तैयार हैं और अधिक किफायती श्रमिक हैं.

चंद्रप्रसाद ने आगे कहा, ‘इन मजदूरों की पहचान का सटीक सत्यापन करने का एकमात्र जरिया, पुलिस सत्यापन और सरकार द्वारा सुझाए गए अन्य उपाय किए जाने चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि काम पर रखे गए मजदूर विश्वसनीय हैं. दुर्भाग्य से, आजकल लोगों को आसानी से नकली आईडी मिल जाती है.’

असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय, ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों से आने वाले अधिकांश श्रमिक निर्माण, कपड़ा और यहां तक कि मछली पकड़ने और कृषि जैसे पारंपरिक कार्यों में लगे हुए हैं.

नियोक्ताओं द्वारा ‘अतिथि श्रमिकों’ का इस्तेमाल करने को तरजीह देने से, स्थानीय लोगों से उनका विरोध भी बढ़ रहा है. अक्टूबर 2022 में, करूर जिले में, कपड़ा श्रमिकों ने एक विरोध प्रदर्शन किया था, जिसमें मांग की गई थी कि प्रवासी उत्तर भारतीय मजदूरों के बरक्स स्थानीय श्रम को अधिक तवज्जो दी जाए.

प्रवासी विरोध को बढ़ाने वाले खास समूह

जहां हाल के महीनों में हिंदी थोपने के खिलाफ विरोध और तमिल गौरव जैसे कई मुद्दों ने तमिलनाडु में केंद्रीय जगह बनाई है, वहीं राज्य में प्रवासी मजदूरों के साथ काम करने वाले एक्टिविस्टों का कहना है कि प्रवासी विरोधी आंदोलन में शामिल होने वाले खास तरह के समूह हैं.

वंचित शहरी समुदायों के लिए, सूचना और संसाधन केंद्र के संस्थापक वैनेसा पीटर ने कहा, ‘तमिलनाडु राज्य का कोई ऐसा अतीत नहीं है जहां ज़ेनोफोबिक या प्रवासी-विरोधी प्रवृत्ति रही हो. यह एक खास गुट का काम हो सकता है.’

ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (AICCTU) के सदस्य बालासुब्रमण्यन ने कहा: ‘ऐसे लोग हैं जो तमिल देशभक्ति के नाम पर इस तरह की सोच को प्रचारित करने की कोशिश करते हैं, उनका किसी भी मजदूर या श्रमिक संघ से कोई संबंध नहीं है.’

अक्टूबर 2021 में, सत्तारूढ़ DMK के एक सहयोगी – तमिझागा वझवुरिमई काची (TVK) के नेता और विधायक टी. वेलमुरुगन ने प्रवासी श्रमिकों के लिए एक परमिट प्रणाली शुरू करने और यह सुनिश्चित करने के लिए राज्य की दखल का आह्वान किया कि प्रवासी श्रमिक मूल तमिलों से नौकरी न छीनें. उन्होंने कहा कि बढ़ते अल्पसंख्यक क्षेत्रीय दलों को पीछे धकेल देंगे.

पूर्व एआईएडीएमके मंत्री मा फोई के. पांडियाराजन, जो अब मानव संसाधन (एचआर) के व्यापार में हैं, ने राज्य में राजनीतिक समूहों की चिंताओं के बारे में बात करते हुए कहा, ‘तमिलनाडु में लगभग 25 से 30 लाख प्रवासी मजदूर हैं और यह तमिलनाडु के नैरेटिव को बदल सकते हैं और आप अब ज्यादा विश्वसनीयता के साथ स्थानीय व्यापार के बारे में बात नहीं कर सकते हैं, अगर ये सभी अन्य भाषा बोलने वाले लोग आबादी का 25 प्रतिशत हो जाते हैं. तब आप जीवन को लेकर इस तरह के पैराक्वेल (नरैटिव, जो कहानी के एक अलग दृष्टिकोण को दिखाता हो) के बारे में नहीं सोच सकते.

2022 के राज्य के बजट में, वित्त मंत्री पी.टी.आर. पलानीवेल त्यागराजन ने घोषणा की थी कि राज्य में मोबाइल सूचना-सह-सहायता केंद्र स्थापित किए जाएंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रवासी मजदूरों की सरकारी कल्याणकारी योजनाओं तक पहुंच हो और वे अपने कानूनी अधिकारों से वाकिफ हों. वैनेसा ने कहा, हालांकि इस तरह की नीतियां और व्यापक डेटा उपलब्ध हैं, ‘प्रवासियों के मुद्दों को शुरुआती चरण में ही देखने की जरूरत है नहीं तो भविष्य में इसका तेजी से गंभीर होने वाला प्रभाव होगा.’

(खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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