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Friday, 1 November, 2024
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वायरल फोटो, अहंकार, कट्टरपंथी छात्र समूह : कर्नाटक हिजाब संकट की अंदरूनी कहानी

कर्नाटक में हिजाब को लेकर जो विवाद फैला है, उसकी सांप्रदायिक जड़ें इस समुद्री किनारे वाले इलाके में फैली हुई हैं. यह कट्टरपंथी संगठनों के वर्चस्व की लड़ाई है.

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उडुपीः अब्दुल शुकूर चिक्की के एक टुकड़े के साथ पानी की घूंट लेते हैं. यह उनके दिन भर के उपवास के बाद पहला खाना है और वे कर्नाटक के उडुपी की जामिया मस्जिद में प्रार्थना करने के लिए आए हैं. सुकूर की बेटी मुस्कान जैनब, शहर की सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में पढ़ती है. यह उन तमाम छात्राओं में शामिल है जिन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट में, कैंपस में हिजाब पहनने के लिए याचिक दायर कर रखी है.

माल्पे में एक छोटा सा कारोबार करने वाले 46 वर्षीय शुकूर कहते हैं कि जबसे कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है, तबसे मेरा पूरा परिवार उपवास कर रहा है. मैं तो कल भी उपवास रखूंगा.

हिजाब का मामला जनवरी से ही सुर्खियों में है, लेकिन शुकूर का दावा है कि यह मामला उस समय चर्चा में आया जब अक्टूबर में कुछ फोटो वायरल हुईं जिनमें दिखाया गया था कि आरएसएस से जुड़ी छात्रों की शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की ओर से किए जा रहे एक आंदोलन में मुस्लिम लड़कियों को दिखाया गया था.

उडुपी के एबीवीपी के फेसबुक पेज पर पिछले 30 अक्टूबर को यह संदेहास्पद फोटो पोस्ट की गई थीं. इसमें मुस्लिम लड़कियों को एबीवीपी का झंडा पकड़े दिखाया गया था, जो मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की छात्रा के कथित बलात्कार का विरोध प्रदर्शन कर रही थीं. सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील कर्नाटक के इस समुद्री इलाके में तस्वीरों ने विवाद पैदा कर दिया.

शुकूर कहते हैं कि इस फोटो में अपनी बेटी को देखकर मैं सन्न रह गया, क्योंकि वह एबीवीपी की सदस्य नहीं है. इसके अलावा, फोटो में मुस्कान ने हिजाब भी नहीं पहन रखा था.

जब मैंने उससे पूछा कि उसने हिजाब क्यों नहीं पहना है तो उसने बताया कि कॉलेज की क्लास में हिजाब पहनने पर मनाही है. यह बात शुकूर को नहीं जंची और उन्होंने कॉलेज की प्रिंसिपल से विरोध जताने का फैसला किया.

फोटो कैप्शनः अक्टूबर 2021 में एबीवीपी के प्रदर्शन में मुस्लिम लड़कियां। फोटोः एबीवीपी उडुपी के फेसबुक के स्क्रीन से लिया हुआ

सिर्फ शुकूर का ध्यान इस फोटो पर गया हो ऐसा न था. राज्य सरकार को उडुपी पुलिस ने जो जांच रिपोर्ट सौंपी है, उसमें कहा गया है कि इस्लामिक संगठन, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की छात्र इकाई कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) ने कॉलेज मैनेजमेंट से निपटने के लिए लड़कियों के परिवारजनों से संपर्क किया था.

सीएफआई के एक सूत्र ने दिप्रिंट को नाम छपने की शर्त पर बताया, ‘एबीवीपी के प्रदर्शन वाली घटना को लेकर उनके संगठन में काफी आक्रोश था. उसके बाद उसने मुस्लिम महिलाओं को प्रोत्साहित किया कि वे एबीवीपी के कार्यक्रमों में न जाएं. उन्होंने क्लास में हिजाब पहनने के अधिकार की बात भी कही. छात्राओं के अभिभावकों ने भी यह मांग कॉलेज के सामने रखी.’

शुकूर ने कहा कि ‘जब मैंने प्रिंसिपल से पूछा कि छात्राओं को बिना उनकी मर्जी से क्यों प्रदर्शन में भेजा गया और वह भी बिना हिजाब के, तो उन्होंने इसको मामूली मुद्दा बताया.’

कॉलेज के प्रिंसिपल रूद्रे गौड़ा ने इस आरोप को खारिज करते हुए दिप्रिंट को बताया, वर्षों से छात्राएं कैंपस में हिजाब पहनकर आती हैं, लेकिन क्लास में उतार देती हैं. ये छात्राएं भी ऐसा ही कर रही थीं लेकिन दिसंबर से उन्होंने मांग करनी शुरू कर दी कि वे क्लास में भी हिजाब पहनेंगी.

इस मामले से छह मुस्लिम छात्राओं के परिवारों और कॉलेज के मैनेजमेंट के बीच मतभेद शुरू हो गया. सीएफआई ने यह भी आरोप लगाया कि प्रतिरोध के फलस्वरूप उन्होंने लड़कियों और उनके परिवारों के ब्यौरों को सार्वजनिक कर दिया.

हालांकि, उडुपी में छात्राओं और कॉलेज अधिकारियों के बीच मतभेद दूर करने के कई प्रयास हुए लेकिन मामले ने तूल पकड़ लिया. बाद में, इसमें राजनीतिक संगठन भी कूद पड़े और सोशल मीडिया ने भी आग को हवा देने का काम किया.

मामला के पूरी तरह से सुर्खियों में आने के बाद, जनवरी में छात्राओं ने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की. इसके बाद, कर्नाटक के दूसरे कॉलेज में भी सांप्रादायिक माहौल पैदा हो गया.

अंहकार और सोशल मीडिया ने मामले को तूल दिया

हिजाब के मुद्दे को सुर्खियों में आने से पहले कई हफ्तों तक परिवारजनों और कॉलेज के बीच समझौते के प्रयास किए गए.

उडुपी डिस्ट्रिक्ट मुस्लिम ओक्कूटा (मस्जिदों, जमातों और इस्लामिक संगठनों के साझा संगठन) के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम न छपने की शर्त पर प्रिंट को बताया, ‘उन्होंने परिवारजनों को मनाने की बहुत कोशिश की कि क्लास में हिजाब न पहनने की बात स्वीकार कर लेनी चाहिए.’

‘हमने छात्राओं को सलाह दी कि वे क्लास में हिजाब पहनने की बात को बड़ा मुद्दा न बनाएं. हम उन्हें और उनके परिवारजनों को लेकर धार्मिक मौलानाओं के पास भी गए और समझाने की कोशिश की कि क्लास में हिजाब हटाया जा सकता है.’

उन्होंने कहा, ‘छात्राएं मानने को तैयार न थीं, क्योंकि उन्हें सीएफआई से समर्थन मिल रहा था. यह इस्लामिक संगठन पीएफआई की शाखा है जिसका गठन केरल में 2006 में हुआ था. इसकी कथित कट्टरपंथी हरकतों के कारण भारतीय जनता पार्टी, इस पर बैन लगाना चाहती है.’

मुस्लिम ओक्कूटा के एक नेता ने कहा कि ‘सीएफआई ने अपना आधार बढ़ाने के लिए पूरे मामले को एक अवसर के रूप में देखा. तटीय कर्नाटक क्षेत्रों में एबीवीपी और सीएफआई मुख्य छात्र संगठन हैं, जबकि नेशनल यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) का स्थानीय कॉलेजों में कोई दखल नहीं है.’

उडुपी के सीएफआई सदस्यों ने दिप्रिंट से हुई बातचीत में कहा, ‘उन्होंने तभी मामले में दखल दिया जब 27 दिसंबर को पीयू कॉलेज की छात्राओं ने उनसे संपर्क किया था. डिस्ट्रिक्ट कमिश्नर और शिक्षा विभाग के अधिकारियों को ज्ञापन देने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला. संघर्ष कर रही छात्राएं, सीएफआई की सदस्य नहीं हैं. हालांकि, तीन अभिभावक पीएफआई की राजनीतिक शाखा, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के सदस्य हैं.’

मुस्लिम ओक्कूटा के नेता के अनुसार दिसंबर के अंत तक कोई पक्ष समझौते के मूड में नहीं दिखा. मुस्लिम छात्राओं के प्रदर्शन और सोशल मीडिया पर मामले के तूल पकड़ने के कारण, कॉलेज डेवलेपमेंट कमेटी (सीडीसी) गुस्से में आ गई. सीडीसी को सरकार की ओर से यह अधिकार मिला है कि वह सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों में प्रशासनिक निर्णय ले.

दिसंबर और जनवरी में छात्रों के प्रदर्शन को सोशल मीडिया और प्रेस में सुर्खियां मिलने लगीं. उन्हें क्लास के बाहर खड़े हुए और नोट्स लेते दिखाया गया. इससे कमेटी के सदस्यों के अहंकार को ठेस पहुंची.

उन्होंने बताया, ‘इस बॉडी के सभी वरिष्ठ सदस्य भाजपा और आरएसएस के सदस्य हैं. 21 सदस्यों वाली सीडीसी में एक भी सदस्य मुस्लिम नहीं है.’

ग्राफिकः सोहम सेन/दिप्रिंट

मुस्लिम ओक्कूटा के सदस्य ने बताया, ‘पूरा मामला अब भाजपा और दूसरे हिंदूवादी संगठनों और पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों के बीच अहं का मुद्दा बन चुका है.’


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BJP बनाम PFI

हिंदू और मुस्लिम संगठनों, दोनों को यह बात माननी पड़ेगी कि जैसे ही उडुपी के मामले का वीडियो वायरल हुआ, वैसे ही दूसरे जिलों में भी प्रदर्शनों की बाढ़ आ गई. पूरे जनवरी और फरवरी में कर्नाटक के कॉलेजों में छात्र-छात्राएं भगवा और हिजाब पहने प्रदर्शन करते नजर आए. दोनों ही पक्ष मामले के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं.

भाजपा नेताओं का कहना है कि पीएफआई के तूल देने के कारण ही विरोध प्रदर्शनों की झड़ी लग गई.

कर्नाटक के ऊर्जा, कन्नड़ और संस्कृति मंत्री, वी सुनील कुमार ने दिप्रिंट से हुई बातचीत में कहा, ‘जनवरी महीने में छात्राओं के दो दिनों के प्रदर्शन के भीतर ही हजारों सोशल मीडिया पोस्ट जारी कर दी गईं. बिना पूर्व तैयारी और रणनीतिक तरीके के क्या ऐसा संभव है.’

‘जब मुस्लिम छात्राओं ने मामले को तूल देना शुरू किया तो हिंदू समुदाय के छात्रों को भी आक्रोश में आना स्वाभाविक था. यह पूरा मसला क्रिया-प्रतिक्रिया का है.’ कुमार उडीपी के करकाला क्षेत्र से विधायक भी हैं.

फोटो कैप्शनः करकाला के विधायक और कर्नाटक के कैबिनेट मंत्री वी.सुनील कुमार।फोटो ट्वीटर- सुनील कुमार करकाला

बासवराज बोम्मई की कैबिनेट के दूसरे भाजपा मंत्रियों ने भी पीएफआई के खिलाफ ऐसे ही आरोप लगाए हैं. कर्नाटक के प्राइमरी और सेकेंडरी शिक्षा मंत्री, बीसी नागेश ने कहा है कि ‘छात्राओं को हिजाब पहनने के लिए उकसाया जा रहा है. पीएफआई और उसकी छात्र शाखा सीएफआई की भूमिका की गहराई से जांच की जाएगी.’

पीएफआई ने इन आरोपों को निराधार बताया है और इस विवाद से अपने को दूर रखने की कोशिश की है.

दिप्रिंट से बातचीत करते हुए पीएफआई के राष्ट्रीय जनरल सेक्रेटरी, अनीस अहमद ने कहा, ‘हमारा संगठन हाशिए पर आए लोगों की स्थिति सुधारने की दिशा में काम कर रहा है. हमारी भूमिका इस विवाद में कहीं नहीं है. हमारी छात्र शाखा सीएफआई सिर्फ दुखी छात्राओं को नैतिक समर्थन दे रही है. सांप्रदायिक उन्माद बढ़ाने का फायदा सिर्फ भाजपा को मिलेगा.’

सीएफआई ने माना कि उसने उडीपी के पीयू कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं के प्रदर्शन में मदद जरूर की है, लेकिन किसी राजनैतिक उद्देश्यों की बात को खारिज कर दिया.

सीएफआई उडीपी के कमेटी मेंबर मसूद मन्ना ने दिप्रिंट को कहा, ‘हमारा, छात्र संगठन है. राजनीतिक दलों से हमारा कोई संबंध नहीं है. हम उन छात्राओं के साथ हैं जो अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं. सालों से यह संस्थान मुस्लिम छात्राओं को प्रताड़ित करता रहा है. यह प्रतिक्रिया एक ही दिन में घटी हो ऐसा नहीं है.’


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PFI और उसके सहयोगी इतने विवाद में क्यों

पीएफआई केरल के नेशनल डेवलेपमेंट फ्रंट(एनडीएफ) से जुड़ा संगठन है. संगठन का दावा है कि वह मुसलमानों के लिए सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ता है, विशेषकर केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में.

सोशल डिमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के राजनीतिक धड़े पीएफआई ने 2010 में चुनाव आयोग में अपना रिजिस्ट्रेशन करवाया था. तबसे वह कर्नाटक के तटीय इलाकों में अपनी पकड़ बनाने में जुटा है. कर्नाटक में 58 शहरी स्थानीय निकायों (यूएएलबी) के 2021 में हुए चुनावों में उसे 6 सीटें मिली थीं.

सीएफआई तटीय कर्नाटक के तीन जिलों- उडीपी, दक्षिण कन्नडा और उत्तर कन्नडा में छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय है. तीनों जिलों में सीएफआई ने कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई की लोकप्रियता को बिल्कुल खत्म कर दिया है.

हालांकि, भाजपा ने पीएफआई के ऊपर कट्टरपंथी होने का आरोप लगाया है. पिछले साल अप्रैल में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह पीएफआई पर बैन लगाने की सोच रही है. सरकार का दावा था कि इसके कई सदस्यों के संबंध प्रतिबंधित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के साथ है. पीएफआई के तमाम आंदोलनों में कथित रूप से हिस्सेदारी को लेकर उसके खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की गई है. जबकि इन सब आरोपों को बेबुनियाद बताया है.

गौरतलब है कि कुछ मुस्लिम समुदाय के नेताओं ने पीएफआई और उसकी शाखाओं को लेकर अपना संदेह जताया है. ओक्कूटा के एक वरिष्ठ नेता ने आरोप लगाया था कि हिजाब के इस आंदोलन का लाभ लेने की कोशिश संगठन की राजनीतिक शाखा कर रही है.

ओक्कूटा के मुस्लिम नेता ने दावा किया कि सभी मुस्लिम छात्राओं की शब्दावली, मूलभूत अधिकार, संवैधानिक मुद्दा, हिजाब इस्लाम में अनिवार्य, एक जैसी है. हो सकता है कि वे हिजाब कई सालों से पहन रही हों मगर जो शब्द और मुहावरे सार्वजनिक रूप से बोले जा रहे हैं उनका स्रोत एक ही है.

मामले को तूल देने के आरोप हिंदुत्व संगठनों पर भी लगे हैं, जिन्होंने प्रतिक्रिया में भगवा शाल और दुपट्टे पहनने शुरू किए थे. इनमें वे लोग भी कॉलेजों में घुस गए थे जो छात्र भी नहीं हैं.

फोटो कैप्शनः कुंडापुर गवर्नमेंट पीयू कॉलेज के अधिकारी सोमवार को ड्रेस कोड पर सरकारी आर्डर की कॉपी दिखाते हुए। फोटोः अनषा रवि सूद- दिप्रिंट

हिजाब की संख्या में काफी तेजी से वृद्धि हुई

कुंडापुर के विधायक हालाडी श्रीनिवास पूजारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘पहले कॉलेज में एक या दो मुस्लिम लड़कियां हिजाब पहनती थीं, लेकिन अब इस संख्या में काफी तेजी से वृद्धि हुई है. ऐसा वे अपनी धार्मिक पहचान बनाने के लिए कर रही हैं.’

उनकी बातों में कुछ हद तक सच्चाई भी है, लेकिन छात्राएं ऐसा क्यों कर रही हैं इसको लेकर अलग-अलग विचार हैं.

उडुपी डिस्ट्रिक्ट मुस्लिम ओक्कूटा के संगठन सचिव अब्दुल अज़ीज उदयावर कहते हैं कि हिजाब पहनने के अधिकार को लेकर जो लड़ाई हुई है उससे दूसरी छात्राओं को भी प्रेरणा मिली है कि वे अपने संवैधानिक स्वतंत्रता का उपयोग करें. अगर वे पहले अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर रही थीं तो इसका मतलब यह नहीं होता कि वे भविष्य में ऐसा नहीं कर सकतीं.

कुंडापुर के तीन कॉलेजों के प्रिंसपल ने दिप्रिंट को बताया कि कई मुस्लिम छात्राएं क्लास में हमेशा से हिजाब पहनती आई हैं, लेकिन जनवरी में इस इस घटना के बाद इसमें इजाफा हुआ है.

आरएन शेट्टी कॉलेज के प्रिंसिपल नवीन शेट्टी ने कहा, ‘ऐसा कोई नियम नहीं है जिससे कि कॉलेज में हिजाब पर बैन हो, लेकिन ऐसा कोई नियम भी नहीं है जो इसकी अनुमति देता हो.’

शेट्टी ने कहा, ‘पहले छात्राओं ने हिजाब पहनने की अनुमति मांगी थी, तो उनसे कहा गया था कि अगर कोई परेशानी नहीं होती तो वे पहन सकती हैं. लेकिन अब इससे परेशानी हो रही है इसलिए कॉलेज प्रशासन ने हिजाब और भगवा दुपट्टे पहनने पर रोक लगा दी है. मैनेजमेंट ने साफ तौर पर इन दोनों पर तब तक के लिए बैन लगा दिया, जबतक हाईकोर्ट का निर्णय नहीं आ जाता.’

फोटो कैप्शनः उडीपी गवर्नमेंट पीयू कॉलेज की वे छात्राएं जिन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की. फोटोःअनुषा रवि सूद- दिप्रिंट

कोर्ट में याचिका दायर करने वाली, उडुपी पीयू कॉलेज की छात्राओं ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें शिक्षा और हिजाब पहनने के बीच में चुनाव नहीं करना चाहिए था, लेकिन उन्हें यह कदम मजबूरी में उठाना पड़ा.

मुस्कान के पिता अब्दुल शुकूर ने कहा, ‘वे अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं.’ एक अन्य छात्र एएच अल्मास ने दिप्रिंट को बताया, ‘उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘जब हमने विरोध प्रदर्शन शुरू किया तब हमारे बारे में बातें लीक कर दी गईं और अनजाने लोग हमारा पीछा करने लगे. सीएफआई के सदस्य हमारी सुरक्षा कर रहे हैं.’

मुस्लिम ओक्कूटा जो अब तक हिजाब का समर्थन खुले तौर पर करने से हिचक रहा था अब खुलकर सामने आ गया है. उडुपी मुस्लिम ओक्कूटा के अध्यक्ष इब्राहिम साहिब कोटा ने कहा, ‘जब मुस्लिम छात्राएं को-एड कॉलेजों में पढ़ रही हैं जिसने कई सालों तक हिजाब पहनने की छूट दे रखी थी, उनको लक्ष्य बनाया जा रहा है. उनके खिलाफ अन्याय हो रहा है इसलिए हम उनकी मदद करना चाहते हैं.’

वरिष्ठ वीएचपी, बजरंग दल, हिंदू जागरण वेदिके के नेता भगवा स्कार्फ बांटते दिखे

जब दिप्रिंट ने उडीपी के महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) कॉलेज का दौरा किया, तो पाया कि जिन छात्राओं ने हिजाब पहन रखा था वे भगवा स्कार्फ और पगड़ी बांधे छात्रों से लड़ाई कर रही हैं. जब दिप्रिंट ने कई हिंदू प्रदर्शनकारियों से बात की तो पता चला कि वे कॉलेज के छात्र नहीं हैं.

दिप्रिंट से बातचीत करते हुए एबीवीपी सदस्य सुशांत ने बताया, ‘मैंने यहां पर कॉमर्स पढ़ा था और 2016-17 में पास हुआ था. मुस्लिम छात्राएं कई सालों से क्लास में हिजाब पहनती आ रही हैं, लेकिन अब उन्होंने इसे मजबूती से अपना धार्मिक अधिकार बताना शुरू कर दिया है, तो क्या ऐसी स्थिति में हम हिंदुओं को अपनी धार्मिक पहचान नहीं बतानी चाहिए.’ उन्होंने कहा, ‘प्रदर्शनकारी हिंदू छात्र खुद भगवा गमछे और शाल लेकर आए थे.’

फोटो कैप्शनः उडीपी के एमजीएम कॉलेज के छात्र भगवा पगड़ी पहने हुए. फोटोः अनुषा रवि सूद- दिप्रिंट

हालांकि, दिप्रिंट ने पाया कि पुरूष प्रदर्शनकारी कॉलेज में प्रवेश करने वाली छात्राओं को भगवा शाल बांट रहे हैं. यह बात इस महीने वायरल हुए कुछ वीडियो में दिखी थी जो वायरल हुए थेः एक वीडियो में दिखाया गया था कि हिंदू छात्र किसी हिंदू जागरण वेदिके के सदस्य को अपनी भगवा लौटा रहे हैं. दूसरे वीडियो में इनोवा कार से आए एक व्यक्ति को कोडागु के एक कॉलेज में भगवा दुशाले बांटते हुए दिखाया गया था.

प्रदर्शन में शामिल अक्षत पई ने कहा, ‘उसने 2014 में कॉलेज से स्नातक किया था और यहां वह हिंदू जागरण वेदिके के नेता के रूप में आया है. हमने छात्रों पर प्रदर्शन करने का कोई दबाव नहीं डाला. वे अपने आप ऐसा कर रहे हैं. इसी समय भगवा सामानों के साथ पई को घेर लेते हैं और पूछते हैं कि उन्हें रूकना है या जाना है.’

बीकॉम प्रथम वर्ष की एक हिंदू छात्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘कई प्रदर्शनकारी कॉलेज के छात्र नहीं हैं. बाहरी लोग हमारे कॉलेज में आकर छात्रों को क्यों भगवा दुशाले बांट रहे हैं.’

उसने कहा, ‘उसे मुस्लिम दोस्तों के हिजाब पहनने से कोई परेशानी नहीं है, जैसे उन्हें माथे पर बिंदी लगाने से कोई समस्या नहीं है.’

एमजीएम कॉलेज की एक अन्य हिंदू छात्रा हर्षिता के विचार अलग हैं. पांच फरवरी को सरकार ने आदेश दिया था कि ऐसे कपड़े न पहने जाएं जिनसे सार्वजनिक कानून और नियम को बाधा पहुंचती हो. अगर मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहन सकती हैं, तो हिंदुओं को भगवा दुशाले पहनने पर रोक क्यों.

मंगलेरू के हिंदू जागरण वेदिके के महासचिव प्रकाश कुक्केहल्ली एमजीएम कॉलेज की सड़क के दूसरे ओर खड़े होकर प्रदर्शन को देख रहे थे. कैंपस के छात्र बीच-बीच में आकर उनसे सलाह लेते दिख रहे थे.

दिप्रिंट से अपनी बातचीत में कुक्केहल्ली ने कहा, ‘हम छात्रों के उकसा नहीं रहे .हम उन्हें सिर्फ नैतिक समर्थन दे रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि ‘पीएफआई, एसडीपीआई और दूसरे मुस्लिम संगठन अपने राजनैतिक लाभ के लिए छात्रों को भड़का रहे हैं. उन्होंने भारत को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया पर एक मुहिम चला रखी है. आज वे हिजाब की मांग कर रहे हैं, कल वे शरिया कानून की मांग करेंगे फिर अलग देश की मांग करेंगे.’

फोटो कैप्शनः हिंदू जागरण वेदिके के मैंगलूरू इकाई के महासचिव, प्रकाश कुक्केहल्ली. फोटोः अनुषा रवि सूद- दिप्रिंट

एबीवीपी के पूर्व पदाधिकारी ने नाम न छपने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि किस तरह से हिंदुत्ववादी संगठन भगवा दुशाले के विरोध को सहयोग दे रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘भगवा दुशाले पदाधिकारियों की ओर से लाए और वितरित किए जा रहे हैं. वीएचपी, बजरंग दल, हिंदू जागरण वेदिके के वरिष्ठ नेता प्रदर्शन की जगहों पर जाकर देख रहे हैं कि किसे नेता के रूप में तैयार करना है. वे यह भी देख रहे हैं कि कहीं कोई चर्चा किए गए नारों से या बयानों से दूर तो नहीं जा रहा है.’

इस पूर्व एबीवीपी नेता ने यह भी कहा कि वह ऐसे सांप्रदायिक गतिविधियों के पक्ष में नहीं है, चाहे वह हिंदुओं का हो या मुस्लिमों का. इससे सिर्फ छात्रों का भविष्य खराब हो रहा है.

उन्होंने कहा, ‘छात्र कार्यकर्ताओं को अच्छे कॉलेजों, प्रोफेशनल कोर्स और रोजगार की बातें उठानी चाहिए. हिजाब या भगवा दुशाले की लड़ाई से कुछ नहीं होने वाला है.’

उडीपी के उपाधिक्षक रैंक के पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि पुलिस को पता था कि भगवा दुशाले छात्रों को वितरित किए जा रहे हैं, लेकिन यह कोई अपराध नहीं है. कॉलेज में आने वाले छात्रों को भगवा दुशाला देना कोई अपराध की श्रेणी में नहीं आता.

कुछ दिनों से विरोध प्रदर्शन ने और ज्यादा उग्र रूप ले लिया है. मंगलवार को पुलिस ने शिवामोगा और बालाकोट जिलों से 15 लोगों को गिरफ्तार किया था. पिछले हफ्ते पुलिस ने उडीपी के कुंडापुर से अब्दुल मजीद और राजब नाम के दो युवकों को कुंडापुर गवर्नमेंट पीयू कॉलेज के पास से चाकू के साथ पकड़ा था.


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कर्नाटक का सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाका

कर्नाटक के तीन तटीय जिलों- दक्षिण कन्नडा, उत्तर कन्नडा और उडुपी को भारत के संवेदनशील इलाकों में गिना जाता है. इन तीनों जिलों में मुस्लिमों और ईसाइयों की अच्छी-खासी आबादी है.

कर्नाटक कम्यूनल हार्मोनी फोरम (जो कोस्टल कर्नाटक के सांप्रादायिक दंगों की घटनाओं का लेखाजोखा रखती है) के कार्यकर्ता, सुरेश भट बकराबेल ने दिप्रिंट से बातचीत में बताया, ‘सालाना तौर पर उडीपी और दक्षिण कन्नडा में कम से कम सौ सांप्रदायिक दंगों की घटनाएं होती हैं.’ साल 2021 में चार सालों का रिकार्ड टूट गया जब सिर्फ दो जिलों में ही 120 से अधिक दंगों की घटनाएं हुईं.

सामाजिक कार्यकर्ता का मानना है कि ‘हिंदुत्व की इस प्रयोगशाला’ में अक्सर सांप्रदायिक दंगे होते रहते हैं. जिसका पूरा श्रेय कट्टरपंथी हिंदू और मुस्लिम संगठनों को जाता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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