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Saturday, 2 November, 2024
होमदेशविजय दिवस पर अरुण खेत्रपाल की कहानी, 21 साल का वीरपुत्र जो आखिरी सांस तक लड़ा और फिर परमवीर बन गया

विजय दिवस पर अरुण खेत्रपाल की कहानी, 21 साल का वीरपुत्र जो आखिरी सांस तक लड़ा और फिर परमवीर बन गया

21 साल के द्वितीय लेफ्टिनेंट अरुण कुमार ने 1971 के युद्ध में जिस साहस परिचय दिया, उस पर हर भारतीय का सीना गर्व से फूल उठता है. भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान घायल अवस्था में अरूण ने पाकिस्तानी टैंकरों को नष्ट किया था.

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नई दिल्ली: साल 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध को आज 50 साल पूरे हो गए हैं. पूरे देश में आज जीत के 50 साल पर विजय पर्व मनाया जा रहा है. यही वह युद्ध जिसमें पाकिस्तान ने भारत के आगे घुटने टेक दिए थे. पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारत के आगे आत्म समर्पण कर दिया था. इस युद्ध की ऐसी कई वीरगाथाएं हैं जिन्हें सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. ऐसी ही वीरता की कहानी है लेफ्टिनेट अरुण खेत्रपाल की.

21 साल के द्वितीय लेफ्टिनेंट अरुण कुमार ने 1971 के युद्ध में जिस साहस परिचय दिया, उस पर हर भारतीय का सीना गर्व से फूल उठता है. भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान घायल अवस्था में अरूण ने पाकिस्तानी टैंकरों को नष्ट किया था. युद्ध के दौरान अरुण खेत्रपाल के टैंक फेमागुस्टा को चलाने वाले रिसलादार प्रयाग सिंह ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत के दौरान युद्ध के आखिरी समय की जानकारी शेयर की.

रिसालदार बताते हैं कि खेत्रपाल मां जंगदम्बा के भक्त थे. ‘जगदम्बा की जय हो’ पाकिस्तान के टैंकरों को नष्ट करने वाले खेत्रपाल ने ये शब्द कहे थे.

अफसरों से लड़कर युद्ध में जाने की बात मनवाई

21 साल के अरुण खेत्रपाल को युद्ध में भेजे जाने की इजाजत नहीं मिली थी, अधिकारियों का कहना था कि वे अभी युद्ध की बारीकियों को नहीं जानते हैं. लेकिन खेत्रपाल ने अफसरों से लड़कर युद्ध में जाने की बात मनवाई. उनकी वीरता और साहस को देखते हुए पाकिस्तानी अफसर भी उन्हें सलाम करने लगे थे.

अरुण खेत्रपाल भारत के ऐसे वीरपुत्र जिसने आखिरी सांस तक पाकिस्तान से लड़ाई लड़ी और फिर परमवीर बन गए.

16 दिसबंर का ही वह दिन था जब 50 साल पहले भारत ने पाकिस्तान को हराकर बांग्लादेश को जीत दिलाई थी. लेकिन इसी दिन भारत के वीर पुत्र अरुण खेत्रपाल को भी खो दिया था.

इस ऐतिहासिक युद्ध में खेत्रपाल ने पंजाब-जम्मू सेक्टर के शकरगढ़ में शत्रु सेना के 10 टैंक नष्ट किए थे. इसी वीरता के लिए अरुण खेत्रपाल को परमवीर चक्र से नवाजा गया.

14 अक्टूबर 1950 को अरुण खेत्रपाल ने एक सैनिक के घर जन्म लिया था.


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खेत्रपाल को सौंपी गई 47वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड की कमान

अरुण के टैंक चालक बताते हैं, 17 पूना हॉर्स को 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान 47वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड की कमान सौंपी गई थी. यह शकरगढ़ सेक्टर में बसंतर की लड़ाई में शामिल थे. 1971 के युद्द में भारत-पाकिस्तान के बीच लड़ी गई लड़ाइयों में बसंतर की लड़ाई बेहद अहम थी.

रिसालदार बताते हैं.’ ब्रिगेड की बसंतर नदीं के पार ब्रिजहेड का निर्माण करना था. 15 दिसंबर को पूना हॉर्स के टैंकों की तैनाती को रोकने के लिए पाकिस्तान ने खदानों को भर दिया लेकिन इसके बावजूद भी हमने अपने लक्ष्य पूरा किया.’

वो बताते हैं, यह एक संयुक्त ऑपरेशन था जिसे 17 हॉर्स, 4 हॉर्स (दो बख्तरबंद रेजिमेंट), 16 मद्रास और 3 ग्रेनेडियर्स ने मिलकर शुरू किया था. इंजीनियरों ने खदानों को आधा साफ किया था, भारतीय सैनिकों ने दुश्मन के कवच की डेंजर गतिविधि का भांपकर 17 पूना हॉस ने खदान से आगे बढ़ने का फैसला किया.

16 दिसबंर को पाकिस्तान ने अपना पहला जवाबी हमला शुरू किया था. इसके जवाब में लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने क्रूरता के साथ जवाबी हमला दिया.

वह अपने टैंकों के साथ दुश्मन पर सफलता पाने में कामयाब रहे थे. लड़ाई के दौरान दूसरे टैंक का कमांडर घायल हो गया. इसके बाद खेत्रपाल ने दुश्मन पर अपना हमला लगातार जारी रखा.

पीछे नहीं हटे खेत्रपाल

दुश्मन के बड़ी संख्या में हताहत होने के बावजूद भी खेत्रपाल पीछे नहीं हटे. खेत्रपाल ने आने वाले पाकिस्तानी सैनिकों और उनके टैंकरों पर लगातार हमले किए जिसके बाद दुश्मन के टैंक नीचे गिर गए.

ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान ने हमला नहीं किया, पाकिस्तान ने जवाबी में हमले भी किए. टैंक युद्ध में खेत्रपाल ने बचे दो टैंकों के साथ अपनी जमीन पर कब्जा कर लिया और दुश्मन के 10 टैंकों को नष्ट कर दिया.

अरुण खेत्रपाल के अंतिम समय की वीरता हो याद करते हुए रेसलदार कहते हैं, टैंकों की इस लड़ाई में खेत्रपाल का टैंक भी आग की चपेट में आ गया था. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने टैंक को नहीं छोड़ा. वह लगातार लड़ते रहे. टैंक में आग लगी थी और उनके पैर जख्मी हो गए थे. मैं टैंक पर चढ़ गया और आग बुझी थी. लेकिन इस बीच. वह शहीद हो गए.

‘मैं अपना टैंक नहीं छोड़ूंगा. मेरी बंदूक अभी चल रही है’

जब उनसे रेडियो पर टैंक खाली करने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा, ‘नहीं सर, मैं अपना टैंक नहीं छोड़ूंगा. मेरी बंदूक अभी चल रही है’ अरुण खेत्रपाल के पिता ने उन्हें युद्ध के लिए विदा करते हुए कहा, ‘तुम्हारे दादा एक जाबाज सैनिक थे, तुम्हारे पिता भी. जाओं और एक शेर की तरह आखिर तक लड़ना.’

अरुण खेत्रपाल ने हिमाचल प्रदेश के कसौली पहाड़ियों में स्थित लॉरेंस स्कूल, सनावर से पढ़ाई की. खेत्रपाल ने जून 1967 में नेशनल डिफेंस एकेडमी जॉइन की थी. वह फॉक्सट्रॉट स्क्वाड्रन से संबंधित थे और 38वें कोर्स के स्क्वाड्रन कैडेट कैप्टन थे. बाद में वह भारतीय सैन्य अकादमी में शामिल हो गए और 13 जून 1971 को 17 पूना हॉर्स में शामिल हो गए. ठीक छह महीने बाद, 03 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ गया था. जिसनें जिद्द करके खेत्रपाल ने हिस्सा लिया था.


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