नई दिल्ली: एक नए शोध पत्र में यह तर्क दिया गया है कि विजिलेंटिज्म (सतर्कतावाद) भारत में हिंदू दक्षिणपंथी समूहों के लिए उनको चुनावी राजनीति में मिल रही सफलता को और पक्का करने और ‘जमीनी स्तर पर उनके ‘वैचारिक दृष्टिकोण को तेजी से अमल में लाने’ की एक पद्धति के रूप में काम करता है.
‘राइट‐विंग पॉप्युलिज़म एंड विजिलांटे वाय्लेन्स इन एशिया’ शीर्षक से प्रकाशित यह पेपर भारत और इंडोनेशिया का एक तुलनात्मक विश्लेषण है, जो इस दोनों देशों में दक्षिणपंथी समूहों द्वारा ‘बहुसंख्यकवाद’ के खिलाफ अल्पसंख्यकों की मिली लोकतांत्रिक सुरक्षा’ के प्रावधानों को खत्म करने के लिए विजिलेंटिज्म के उपयोग के पीछे छिपे कारकों का पता लगाना चाहता है.
इसे सना जाफरी, जो जकार्ता में इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी एनालिसिस ऑफ कॉन्फ्लिक्ट की निदेशक हैं, के द्वारा लिखा गया है.
यह पेपर 30 जून को स्टडीस इन कंपॅरटिव इंटरनॅशनल डेवेलपमेंट नाम की पत्रिका के 56वें अंक में प्रकाशित हुआ था, जिसे आशुतोष वार्ष्णेय, जो इंटरनॅशनल स्टडीस एंड द सोशियल साइन्सस में सोल गोल्ड्मन प्रोफेसर और अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हैं, के द्वारा अतिथि संपादक के रूप मे संपादित किया गया था.
Open Access: In a new paper I explain why Indonesian Islamists and Indian Hindu Nationalists use vigilante violence for dismantling democracy from the bottom up. Thanks @ProfVarshney for including me in this SCID special vol and to anonymous reviewers for helpful comments. https://t.co/10HHz1fbQT pic.twitter.com/ty5jihkDIV
— Sana Jaffrey (@sdjaffrey) August 5, 2021
जाफरी ने 5 अगस्त को इस पेपर को सभी के लिए ओपन एक्सेस के साथ सार्वजनिक रूप से रिलीज करने की घोषणा की.
भारत के बारे में क्या कहता है यह पेपर?
भारत के मामले में दक्षिणपंथी लोकलुभावनवाद (पाप्यलिज़म) और विजलैन्टिज़म पर जाफरी का यह पेपर मुख्य रूप से 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता मे आने के बाद हिंदुत्व की भावना में उभार पर केंद्रित है.
हालांकि वे भारत के विभाजन, धर्मनिरपेक्षता के अपनाए जाने और 1990 के दशक में हिंदू राष्ट्रवाद की एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी प्रदान करती हैं मगर इस पेपर के भारत से संबंधित अधिकांश खंड (सेक्सन) और उद्धरण 2014 या उसके बाद के हीं हैं.
जाफरी भारत में ‘जमीनी स्तर पर अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कम करने के लिए’ एक व्यवस्थित रणनीति के रूप में विजलैन्टिज़म का इस्तेमाल किए जाने के अपने दावों की गहराई में जाने से पहले कुछ डेटा पायंट्स भी प्रदान करती हैं.
डेटा जर्नलिज़म प्लॅटफॉर्म इंडियास्पेंड द्वारा दिए गये आंकड़ो का हवाला देते हुए जाफ़री लिखती हैं, ‘भारत से मिले आँकड़ों के अनुसार 2009 और 2018 के बीच धार्मिक अल्पसंख्यकों को लक्षित करके भीड़ द्वारा की गई हिंसा की 254 घटनाएं दर्ज की गई, जिसके परिणामस्वरूप 91 मौतें हुई और 579 लोग घायल हुए. इन सभी दर्ज किए गये मामलों में से लगभग 90% मई 2014 में भाजपा की चुनावी जीत के बाद हुए.’
जाफरी का कहना है कि व्यापक पैमाने पर सांप्रदायिक दंगों की वजे काउ विजलैन्टिज़म , वेलेंटाइन डे पर मोरल पुलिसिंग, एंटी-लव जिहाद स्क्वॉड और घर वापसी पहल जैसी गतिविधियों का चलन बदलाव के रूप में सामने आया है. हालांकि 2020 के दिल्ली दंगों का जिक्र इस पेपर में कहीं नहीं है.
गोमांस से संबंधित विजलैन्टिज़म पर इंडियास्पेंड के आंकड़ों का हवाला देते हुए जाफरी ने लिखा है, ‘पीट-पीट कर मार दिए जाने की सांप्रदायिक घटनाओ (कम्यूनल लिन्चिंग) के शिकार हुए लोगों में ज़्यादातर संख्या (74%) मुस्लिम लोगों की हैं, जबकि इसके बाकी शिकार दलित वर्ग से हैं.’
विजलैन्टिज़म से संबंधित हिंसा में इस बढ़ोत्तरी में राज्य की भूमिका के बारे में जाफरी कहती हैं, ‘भारत में, दक्षिणपंथी विजलैन्टिज़म कहीं अधिक क्रूर और घातक हो जाती है क्योंकि इसकी पुलिस संरचना इस तरह की विजलैन्टिज़म में लिप्त लोगों की माफी की मांगों के प्रति अतिसंवेदनशील है. ऐसा इसलिए है क्योंकि दक्षिणपंथी लोकलुभावनवाद में लिप्त लोग वहां की अत्यधिक विकेन्द्रीकृत पुलिस बल पर अपना सीधा नियंत्रण रखते हैं.’
इंडोनेशिया के साथ तुलना और निष्कर्ष में दिए गये तर्क
अपने पेपर के मुख्य ध्यान बिंदु को देखते हुए, जाफरी यह मानती हैं कि भारत और इंडोनेशिया दोनों में एक जैसे तरीके से हीं विजलैन्टिज़म का चलन बढ़ रहा है फिर भी उनका कहना है कि इन दोनों देशों के बीच एक ‘महत्वपूर्ण वैचारिक मतभेद’ मौजूद है.
जाफरी लिखती हैं, ‘जहां भारत में हिंदुत्व समर्थकों का मुख्य उद्देश्य ‘गैर-हिंदू अल्पसंख्यकों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना’ है, वहीं इंडोनेशिया के इस्लामवादी तत्व न केवल गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ, बल्कि ‘धर्मनिरपेक्ष राज्य में अच्छा प्रदर्शन करने वाले उदार मुस्लिम संगठनों’ के साथ भी लड़ रहे हैं.
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हालांकि, इंडोनेशियाई इस्लमपंथियो की चुनावी ताक़त पर पकड़ भारत के हिंदू राष्ट्रवादी ताकतों से बहुत अलग है, फिर भी जाफरी का तर्क इस विचार पर टिका हुआ है कि दोनों देशों में दक्षिणपंथी समूहों द्वारा विजलैन्टिज़म के बढ़ावा देने के कारक एक समान हैं
जाफरी ने अपने पेपर के निष्कर्ष वाले भाग में इन कारकों को दोहराते हुए यह दावा किया कि ‘विजलैन्टिज़म के व्यवस्थित उपयोग’ के लिए बहुसंख्यकवाद एकमात्र स्पष्टीकरण कतई नहीं हैं.
वह लिखती हैं, “सबसे पहले, चूंकि बहुलतावादी (प्लूरलिस्ट) संविधानों ने उपरी स्तर पर बने कानून के माध्यम से अल्पसंख्यक अधिकारों को कम करने का काम मुश्किल बना दिया है, इसी कारण से विजलैन्टिज़म नीचे से ऊपर की ओर इन अधिकारों को कम करने के लिए एक अतिरिक्त एवम् आकर्षक रणनीति के रूप में उभरा है.’
वह आगे कहती हैं, ‘दूसरा कारण यह है कि रोज़मर्रा की जिंदगी से जुड़े विजलैन्टिज़म के विभिन्न स्वरूपों के प्रति व्यापक सामाजिक वैधता मौजूद है, जो दक्षिणपंथी लोकलुभावन नीतियों वाले लोगों को अपने राष्टव्यापी लक्ष्यों की पूर्ति के लिए हिंसा के स्थानीय टेम्पलेट्स को आगे करने की अनुमति देता है. तीसरे, दोनों देशों के मामले में राज्य-निर्माण से संबंधित एकसमान विकृतियों ने दक्षिणपंथी विजलैन्टी को राज्य के अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके उनकी हिंसा के लिए मिलने वाले दण्ड से माफी पाने में सक्षम बनाया है.’
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