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Sunday, 17 November, 2024
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उपराष्ट्रपति ने मैकाले की शिक्षा प्रणाली को खारिज करने का आह्वान किया

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हरिद्वार, 19 मार्च (भाषा) उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने शनिवार को कहा कि सरकार पर शिक्षा का भगवाकरण करने का आरोप लगाया जाता है, लेकिन ‘‘भगवा में गलत क्या है।’’ उन्होंने देश से मैकाले शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से खारिज करने का आह्वान किया।

उपराष्ट्रपति ने हरिद्वार स्थित देव संस्कृति विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई शांति और सुलह संस्थान का उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में कहा कि भारतीयों को ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ त्याग देनी चाहिए और अपनी भारतीय पहचान पर गर्व करना सीखना चाहिए। नायडू ने कहा कि शिक्षा प्रणाली का भारतीयकरण भारत की नई शिक्षा नीति का केंद्र है, जो मातृ भाषाओं को बढ़ावा देने पर बहुत जोर देती है।

उन्होंने पूछा, ‘‘हम पर शिक्षा का भगवाकरण करने का आरोप है, लेकिन भगवा में गलत क्या है।’’ स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में मैकाले की शिक्षा प्रणाली को खारिज करने का आह्वान करते हुए नायडू ने कहा कि इसने देश में शिक्षा के माध्यम के रूप में एक विदेशी भाषा थोप दी और शिक्षा को अभिजात वर्ग तक सीमित कर दिया।

नायडू ने कहा, ‘‘सदियों के औपनिवेशिक शासन ने हमें खुद को एक निम्न जाति के रूप में देखना सिखाया और हमें अपनी संस्कृति, पारंपरिक ज्ञान का तिरस्कार करना सिखाया गया। उन्होंने कहा कि इसने एक राष्ट्र के रूप में हमारे विकास को धीमा कर दिया, क्योंकि शिक्षा के माध्यम के रूप में एक विदेशी भाषा को लागू करने से शिक्षा सीमित हो गई।’’ उन्होने कहा कि समाज का एक छोटा वर्ग शिक्षा के अधिकार से एक बड़ी आबादी को वंचित कर रहा है।

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमें अपनी विरासत, अपनी संस्कृति और अपने पूर्वजों पर गर्व महसूस करना चाहिए। हमें अपने बच्चों को अपनी भारतीय पहचान पर गर्व करना सिखाना चाहिए और अपने शास्त्रों को जानने के लिए संस्कृत सीखनी चाहिए, जो ज्ञान का खजाना है।’’

युवाओं को अपनी मातृभाषा का प्रचार करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं जब सभी गजट अधिसूचनाएं संबंधित राज्य की मातृभाषा में जारी की जाएंगी। आपकी मातृभाषा आपकी दृष्टि की तरह है, जबकि एक विदेशी भाषा का आपका ज्ञान, आपके चश्मे की तरह।’’

नायडू ने कहा कि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का हमारे प्राचीन ग्रंथों में जो निहित दर्शन है, वही आज भी भारत की विदेश नीति के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत है। उन्होंने कहा कि भारत के लगभग सभी दक्षिण एशियाई देशों के साथ मजबूत संबंध रहे हैं जिनकी जड़ें समान हैं।

उन्होंने कहा कि सिंधु घाटी सभ्यता अफगानिस्तान से गंगा के मैदानों तक फैली हुई है। उन्होंने कहा, ‘‘किसी भी देश पर पहले हमला न करने की हमारी नीति का पूरी दुनिया में सम्मान किया जाता है। यह सम्राट अशोक जैसे महान योद्धाओं का देश है, जिन्होंने हिंसा पर अहिंसा और शांति को चुना।

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘एक समय था जब दुनियाभर से लोग नालंदा और तक्षशिला के प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए आते थे, लेकिन अपनी समृद्धि के चरम पर भी भारत ने कभी किसी देश पर हमला करने के बारे में नहीं सोचा, क्योंकि हम दृढ़ता से मानते हैं कि दुनिया को शांति की जरूरत है।’’ उन्होंने कहा कि शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को प्रकृति के करीबी संपर्क में रहना भी सिखाया जाना चाहिए, क्योंकि प्रकृति एक अच्छी शिक्षक है।

भाषा संतोष देवेंद्र

देवेंद्र

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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