scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशजिस राज्य में करना हो काम वहां की भाषा आने पर ही मिले सरकारी नौकरी: वेंकैया नायडू

जिस राज्य में करना हो काम वहां की भाषा आने पर ही मिले सरकारी नौकरी: वेंकैया नायडू

उपराष्ट्रपति ने कहा की देश की 50 प्रतिशत आबादी की उम्र 25 साल से कम की है. अगर ये अबादी मम्मी की जगह घर में मां बोलने लगे तभी बनेगा 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' बनेगा.

Text Size:

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि राज्यों में मातृभाषा आधारित नौकरी की नीति बनाई जानी चाहिए. उपराष्ट्रपति ने कहा कि राज्य में मौजूद सरकारी नौकरियां उन्हीं को दी जानी चाहिए, जिन्हें वहां की भाषा आती हो. उन्होंने एक नई किस्म की नीति बनाए जाने पर ज़ोर दिया. उन्होंने ये बातें 21 फरवरी को पड़ने वाले मातृभाषा दिवस से जुड़े एक कार्यक्रम के दौरान कही.

उन्होंने कहा, ‘मैं यहां मौजूद मंत्रियों से कहना चाहता हूं कि लोगों के लिए प्रशासन उनकी भाषा में ही होना चाहिए. महान गांधीवादी काका साहेब काकेलकर ने भी यही बात कही थी कि लोगों पर प्रशासन की भाषा उनकी मातृभाषा होनी चाहिए.’

इसके बाद उन्होंने कहा कि भारत में अंग्रेजों का शासन रहा. इस वजह से भारतीय भाषाओं की अनदेखी की गई. उपराष्ट्रपति नायडू के मुताबिक ये अनदेखी आज़ादी के बाद भी जारी रही, जिसे ठीक करने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने शुरू से अपनी नौकरियों को अपनी भाषा से जोड़े रखा है. इसकी वजह से अंग्रेज़ी समृद्ध है.

हिंदी समेत अन्य भारतीय भाषाओं को समृद्ध बनाने का उपाय बताते हुए उन्होंने कहा कि भारत को भी ऐसा ही करना चाहिए और नौकरियों को मातृ भाषाओं से जोड़ा जाना चाहिए. राज्यों को सरकारी नौकरियों के लिए वहां की मातृभाषा के ज्ञान को ज़रूरी कर देना चाहिए. राज्यों में सरकारी नौकरियों के लिए नई नीति बनाते हुए ये उन्हीं को दी जानी चाहिए जिन्हें वहां की भाषा आती हो.

मातृभाषा को समृद्ध बनाने के अन्य उपायों पर ज़ोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा की देश की 50 प्रतिशत आबादी की उम्र 25 साल से कम की है. अगर ये अबादी मम्मी की जगह घर में मां बोलने लगे तभी बनेगा ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ बनेगा. आपको बता दें कि ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ पीएम नरेंद्र मोदी का एक बेहद अहम कार्यक्रम है. इसके तहत देश के विभिन्न राज्यों की भाषाओं और संस्कृति के समागम की कोशिश की जा रही है.

उपराष्ट्रपति नायडू ने ये भी कहा कि जब फ्रांस, रूस और जर्मनी के राष्ट्र प्रमुख यहां आते हैं तो वो अंग्रेज़ी की जगह अपनी भाषा बोलते हैं. उन्होंने कहा, ‘मैंने स्वर्गीय सुषमा स्वराज से पूछा था कि क्या इन लोगों को अंग्रेज़ी नहीं आती तो उन्होंने जवाब दिया, ‘इन्हें अंग्रेज़ी ख़ूब आती है पर ये अपनी भाषा में बात करना पसंद करते हैं.’ उपराष्ट्रपति ने सवाल किया कि जब वो ऐसा कर सकते हैं तो भारत के लोग क्यों नहीं?

उन्होंने नई शिक्षा नीति के ड्राफ़्ट में भारतीय भाषाओं पर ज़ोर दिए जाने की बात का ज़िक्र करते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद है कि मातृभाषाओं पर विशेष ध्यान दिया जाएगा. साथ ही ये भी उम्मीद जताई कि देश में किसी ख़ास भाषा को नहीं बल्कि तमिल से तेलगू समेत तमाम भाषाओं को सामान्य दर्जा दिया जाएगा और कहा कि मातृभाषा पर ख़ास ध्यान होना चाहिए. लेकिन तमाम और भाषाएं भी सीखी जानी चाहिए.

इस कार्यक्रम के दौरान उन्होंने अपने भाषण की शुरूआत संविधान में शामिल भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं में लोगों को मातृभाषा दिवस की शुभकामना देकर की और बताया 1999 में यूनेस्को द्वारा बांग्लादेश के एक प्रस्ताव पर मातृभाषा दिवस को शुरू किया गया था. फिर उन्होंने प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में दिए जाने के लिए भी नीति बनाने की सलाह दी.

उन्होंने देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का ज़िक्र करते हुए कहा, ‘लौह पुरुष पटेल ने कहा था मातृभाषा में सीख नहीं मिलने से बच्चे सिर्फ़ रटता है, सीखता नहीं है. अगर मातृभाषा में सीख दी जाती है तो बच्चा सीधे विषय पर जाता है, उस पर भाषा सीखने का दबाव नहीं रहता.’

इस दौरान मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल भी मौजूद थे. उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों से ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ कार्यक्रम को बल मिलेगा और मातृभाषाएं मज़बूत होंगी.

उन्होंने जानकारी दी कि यूनेस्को द्वारा शुरू किए गए मातृभाषा दिवस का ध्येय मातृभाषाओं को सीमाओं को पार ले जाना है और कहा कि जब देश भर की भाषाएं एक साथ आती हैं तो भारत उठ खड़ा होता है. उन्होंने जानकारी दी कि भारत की 196 भाषाएं लुप्त होने की कगार पर हैं, जो भारत समेत यूनेस्को तक के लिए चिंता का विषय है.

उन्होंने कहा सबको भारत की 22 भाषाओं को मज़बूत करने का प्रण लेना होगा. उन्होंने इस दौरान राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (एनटीएम) के ज़रिए इसे और सशक्त करने की बात कही. उन्होंने अगले 25 वर्षों तक भारत के युवा देश रहने का हवाला देते हुए जापान और जर्मनी की अपनी भाषाओं में किए गए विकास से सीख लेने की सलाह दी.

कार्यक्रम में मौजूद संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने अपने भाषण की शुरुआत हिंदी में की. उन्होंने कहा, ‘मातृभाषा दिवस के लिए हम सब 21 फ़रवरी का इंतज़ार करते हैं लेकिन उपराष्ट्रपति जहां जाते हैं वहां की मातृभाषा का इस्तेमाल करते हैं.’

उन्होंने कहा कि सैंकड़ों ऐसे अध्ययन हैं जो साबित करते हैं कि शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए. लेकिन ये स्वीकार करना चाहिए कि भारत इसमें सफल नहीं रहा है. मातृभाषा में सीखना सरल है क्योंकि बच्चा सांस भी इसी भाषा में लेता है.

कार्यक्रम में मौजूद शिक्षा राज्य मंत्री धोत्रे ने अपने स्वागत भाषण की शुरुआत मराठी में की. उन्होंने कहा, ‘मातृभाषा व्यक्ति की पहली भाषा होती है जो वो अपने मां-बाप से सीखता है.’ उपराष्ट्रपति की तर्ज पर उन्होंने भी कहा कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए और कहा कि मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाना मानवाधिकार का मामला है.

शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक भारत में मातृभाषा दिवस के आयोजन की शुरुआत 2015 में हुई थी. इस साल इसे इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू) से लेकर केंद्रीय विद्यालय समेत अन्य सरकारी स्कूलों में एक से तीन दिन तक मनाया जाएगा.

share & View comments