नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे (आईआईटी-बी) में एक डाइनिंग हॉल की दीवारों पर ‘सिर्फ शाकाहारी’ के पोस्टर ने खाने को लेकर भेदभाव और जातिवाद के मुद्दे को उजागर कर दिया.
प्रतिष्ठित संस्थान के हॉस्टल 12 के भोजन क्षेत्र में लगे पोस्टरों की छात्र समूहों ने भी निंदा की है, जिसमें बताया गया है कि शाकाहारी और मांसाहारी भोजन खाने वालों के लिए अलग-अलग जगह है.
संस्थान के एक अधिकारी ने दावा किया कि उन्हें ऐसा एक पोस्टर लगा मिला है लेकिन इसे कैंटीन के बाहर किसने लगाया इसकी जानकारी अभी तक नहीं मिली है.
उन्होंने बताया कि अलग-अलग तरह का भोजन करने वाले लोगों के लिए संस्थान में कोई निश्चित सीटें नहीं हैं और संस्थान को इस बात की जानकारी नहीं है कि पोस्टर किसने लगाए हैं.
छात्र समूह आम्बेडकर पेरियर फुले स्ट्डी सर्किल (एपीपीएससी) के प्रतिनिधियों ने घटना की निंदा की और पोस्टरों को फाड़ दिया.
एपीपीएससी ने बताया, “छात्रावास के महासचिव को लिखी गई आरटीआई और ई-मेल के माध्यम से यह सामने आया है कि संस्थान में अलग-अलग भोजन के लिए कोई नीति नहीं है. कुछ छात्रों ने कैंटीन के कुछ हिस्सों को ‘सिर्फ शाकाहारी’ के रूप में नामित कर दिया, जिसकी वजह से दूसरे छात्रों को वहां से जाने के लिए मजबूर होना पड़ा.”
Even though RTIs and mails for hostel GSec shows that there is no institute policy for food segregation, some individuals have taken it upon themselves to designate certain mess areas as "Vegetarians Only" and forcing other students to leave that area.#casteism #Discrimination pic.twitter.com/uFlB4FnHqi
— APPSC IIT Bombay (@AppscIITb) July 29, 2023
घटना के बाद छात्रावास के महासचिव ने सभी छात्रों को यह कहते हुए एक ई-मेल भेजा कि, ”छात्रावास की कैंटीन में जैन वितरण का एक काउंटर है लेकिन जैन भोजन करने वाले लोगों के लिए ऐसी कोई निर्धारित जगह नहीं है.”
महासचिव ने लिखा कि ऐसी खबरें आ रही हैं कि कुछ छात्रों ने कैंटीन के कुछ हिस्सों को ‘जैन के बैठने वाली जगह’ के रूप में नामित कर दिया है और वे छात्र, जो मासांहारी हैं उन्हें उन जगहों पर बैठने नहीं दे रहे हैं.
महासचिव ने ईमेल में लिखा, “इस तरह का बर्ताव अस्वीकार्य है और किसी छात्र को किसी अन्य छात्र को कैंटीन के किसी भी हिस्से से भगाने का अधिकार नहीं है और वह भी इस आधार पर कि कोई जगह किसी विशेष समुदाय के लिए आरक्षित है. अगर ऐसी घटना दोहराई जाती है तो हम इसमें शामिल छात्रों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे.”
शाकाहार और इसके पवित्रता तथा जातिवाद लेकर पिछले कुछ समय से इंटरनेट पर बहस जोरो पर है. पिछले हफ्ते, समाज-सेवी सुधा मूर्ति ने एक यूट्यूब शो पर एक टिप्पणी करके सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी थी, जहां उन्होंने मेजबान से कहा था, “मेरा सबसे बड़ा डर यह है कि शाकाहारी और मांसाहारी दोनों के खाने के लिए एक ही चम्मच का इस्तेमाल किया गया होगा.”
शो “खाने में क्या है?” में इंफोसिस के संस्थापक एन.आर. की पत्नी नारायण मूर्ति ने खुद को “शुद्ध शाकाहारी” बताया जो अंडे भी नहीं खाती है.
ट्विटर यूज़र्स ने तुरंत इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ‘शुद्धता’ की अवधारणा को शाकाहारी या फिर मांसाहारी भोजन से तुलना की निंदा की.
कुछ लोगों ने प्रतिवाद पेश किया कि शाकाहारी होना जातिवादी होने से जुड़ा नहीं है, और भोजन एक व्यक्तिगत पसंद है जिसका सम्मान किया जाना चाहिए.
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