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Wednesday, 10 December, 2025
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‘वेद तुम्हारी रक्षा करेंगे’ से लेकर ‘जाति पक्षपात’ तक: जस्टिस स्वामीनाथन का विवादों से पुराना नाता

विपक्षी सांसदों ने मद्रास हाई कोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया है, जिसमें कहा गया है कि उनका व्यवहार 'न्यायपालिका की निष्पक्षता, पारदर्शिता और धर्मनिरपेक्ष कामकाज के बारे में गंभीर सवाल खड़े करता है'.

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नई दिल्ली: मद्रास हाई कोर्ट के जज जस्टिस जीआर. स्वामीनाथन कई बार विवादों में घिर चुके हैं.

पहली पीढ़ी के इस वकील ने हाल के महीनों में, अदालत के भीतर दिए आदेशों और अदालत के बाहर दिए बयानों—वेदों की प्रशंसा से लेकर यह कहने तक कि संविधान देश की “जनसांख्यिकीय प्रोफाइल” पर आधारित है—के कारण खुद को विवादों के केंद्र में पाया है.

अब, द्रमुक (DMK) की कनिमोझी करुणानिधि के नेतृत्व में 100 से अधिक INDIA गठबंधन के सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के सामने स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव रखा है. सांसदों ने कहा कि उनके आचरण से “निष्पक्षता, पारदर्शिता और न्यायपालिका के धर्मनिरपेक्ष कामकाज को लेकर गंभीर सवाल उठते हैं.”

इसमें यह भी आरोप है कि मामलों के फैसले में वरिष्ठ अधिवक्ता एम. श्रीचरण रंगनाथन को “अनुचित पक्षपात” दिखाया गया और “एक खास समुदाय के वकीलों का पक्ष लिया गया.”

मोशन में, जिसे दिप्रिंट ने देखा, यह भी कहा गया कि वे “किसी खास राजनीतिक विचारधारा के आधार पर और भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ जाकर फैसले देते हैं.”

जस्टिस स्वामीनाथन की आलोचना खुद न्यायपालिका के भीतर से भी हुई है.

इस साल अक्टूबर में, मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस के. चंद्रू ने आरोप लगाया कि जस्टिस स्वामीनाथन ने धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन पर बयान देकर अपने संविधानिक शपथ का उल्लंघन किया है.

जस्टिस चंद्रू की टिप्पणी हरियाणा में एक RSS कार्यक्रम में जस्टिस स्वामीनाथन के उस बयान के बाद आई, जिसमें उन्होंने कहा था कि संविधान, 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट से “कॉपी” किया गया है.

एक कार्यक्रम में बोलते हुए, जस्टिस चंद्रू ने उन्हें “अजीब व्यक्ति” बताया और कहा कि एक मौजूदा हाई कोर्ट जज की ऐसी बातें, डॉ. बीआर. आंबेडकर द्वारा कल्पित संविधान व्यवस्था पर प्रहार करती हैं.

मोशन पर बात करते हुए, जस्टिस चंद्रू ने दिप्रिंट को बताया कि किसी जज को उसके “दुर्व्यवहार” के लिए हटाने का एकमात्र तरीका संसद में महाभियोग प्रस्ताव है. उन्होंने कहा कि पहला चरण शुरू हो गया है, लेकिन प्रस्ताव की प्रक्रिया अभी लंबी है.

उन्होंने कहा, “उनके द्वारा दिए गए न्यायिक आदेशों से ज़्यादा, एक जज के रूप में उनका आचरण अनुचित है. वह ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे RSS और उसके संगठनों के प्रचार सचिव हों. वह उनके कार्यक्रमों में खुले तौर पर जाते हैं और संविधान को नीचा दिखाने वाले भाषण देते हैं, जिसके तहत उन्होंने पद की शपथ ली है.”

पूर्व जज ने कहा, “वेदों में आस्था रखने को लेकर विभिन्न मंचों पर दिए गए उनके भाषण, एक बैठे हुए जज से बिलकुल उम्मीद नहीं किए जाते. अगर कोई उनके न्यायिक आचरण का निष्पक्ष आकलन करे, तो वह आसानी से समझ जाएगा कि न्यायपालिका वह स्थान नहीं है जहां उन्हें सेवा करने की अपेक्षा थी.”

हालांकि, एक एक्स पोस्ट में, भाजपा के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अरविंद मेनन ने इस महाभियोग प्रस्ताव को “छिपा हुआ ‘हिंदू-विरोधी’ पूर्वाग्रह” बताया.

‘वेद आपकी रक्षा करेंगे’

इस साल की शुरुआत में, जस्टिस स्वामीनाथन विवादों में आ गए जब एक वकील एस. वांचिनाथन ने कथित तौर पर “आपत्तिजनक आरोप” लगाया कि वह अपने न्यायिक कार्य में “साम्प्रदायिक और जातिगत पक्षपात” दिखा रहे हैं.

दो जजों की बेंच, जिसमें जस्टिस स्वामिनाथन भी शामिल थे, ने कहा कि वकील के आरोप पहली नज़र में कोर्ट की आपराधिक अवमानना ​​हैं.

लेकिन इस आदेश के बाद वकीलों ने विरोध किया और आठ सेवानिवृत्त जजों, जिनमें जस्टिस चंद्रू भी शामिल थे, ने वकील के समर्थन में पत्र लिखा.

इसके बाद दोनों जजों ने मामला हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया, लेकिन उससे पहले जस्टिस स्वामीनाथन ने अपने खिलाफ “बदनाम करने की साज़िश” का आरोप लगाया.

एक सुनवाई के दौरान, जज ने वकील को संबोधित करते हुए कहा, “आप कॉमेडी पीस हैं. मुझे नहीं पता किसने आपको क्रांतिकारी कहा. आप सब कॉमेडी पीस हैं.”

जुलाई में, जज ने एक घटना याद की जब वह वकालत कर रहे थे. उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने एक ‘शास्त्रिगल’ मित्र को सड़क दुर्घटना मामले में बरी करवाया, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. ‘शास्त्रिगल’ का मतलब होता है हिंदू शास्त्रों के विद्वान या पुजारी.

उनके मित्र, जिन्होंने कई वर्षों तक वेदों का अध्ययन किया था, ने स्वीकार किया कि वाहन वह चला रहे थे, हालांकि वास्तव में उनकी बहन चला रही थी. घटना में एक व्यक्ति की मौके पर ही मौत हो गई थी.

जज ने बताया कि चूंकि किसी चश्मदीद ने उन्हें वाहन चलाते नहीं देखा था, इसलिए वह अपील में अपने मित्र को बरी करवाने में सफल रहे.

उन्होंने कहा, “उस दिन मुझे यह कहावत समझ आई: ‘यदि आप वेदों की रक्षा करेंगे, तो वेद आपकी रक्षा करेंगे.’ तब तक मैं इन बातों को बहुत गंभीरता से नहीं लेता था.”

प्रदर्शन रिपोर्ट

जस्टिस स्वामीनाथन को 2023 में आलोचना का सामना करना पड़ा था, जब उन्होंने कहा था कि देश का संविधान राष्ट्र की “जनसांख्यिकीय प्रोफ़ाइल” पर टिका हुआ है.

उन्होंने कहा था, “अगर यह संविधान हमेशा इसी रूप में बना रहना है, तो मैं इस बात पर जोर दे रहा हूं कि जब संविधान बना था, तब हमारी एक जनसांख्यिकीय प्रोफ़ाइल थी. जब तक यह प्रोफ़ाइल बनी रहती है, संविधान चलेगा. अगर यह प्रोफ़ाइल बदल गई, तो संविधान अस्तित्व में नहीं रहेगा.”

उन्होंने यह भी कहा था कि संविधान के बने रहने के लिए “भारतीय धर्म और संप्रदाय” से जुड़े लोगों का इसके दायरे में बने रहना जरूरी है.

उनकी टिप्पणी पर उस समय कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी. वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने एक्स पर लिखा था, “अगर जजों की सोच ऐसी होगी, तो संविधान शायद बच नहीं पाएगा.”

जस्टिस स्वामीनाथन ने पिछले साल तब भी ध्यान खींचा था, जब उन्होंने बतौर जज सात साल पूरे होने पर वकीलों के लिए अपनी “प्रदर्शन रिपोर्ट” जारी की थी.

अपने ऊपर 64,700 से अधिक मामलों को निपटाने का श्रेय देते हुए उन्होंने लिखा था, “मेरे विचार में सभी सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों, जिसमें जज भी शामिल हैं, को जवाबदेह होना चाहिए और जजों का भी उनके प्रदर्शन के आधार पर मूल्यांकन होना चाहिए.”

उन्होंने इसी तरह की एक रिपोर्ट 2019 में भी जारी की थी, जब उन्होंने हाई कोर्ट जज के रूप में दो साल पूरे किए थे.

मोशन में क्या कहा गया है

महाभियोग याचिका जस्टिस स्वामीनाथन के उस आदेश के ठीक बाद आई है जिसमें उन्होंने तिरुप्परंकुंदरम पहाड़ी पर स्थित सुब्रमण्य स्वामी मंदिर के “दीपथून” स्तंभ पर पारंपरिक कार्तिकै दीपम प्रज्वलित करने की अनुमति दी थी. यह स्तंभ पहाड़ी पर स्थित एक दरगाह के पास की चोटी पर है.

मदुरै के अधिकारियों ने कानून-व्यवस्था की चिंताओं का हवाला देते हुए आदेश को लागू करने से इनकार कर दिया, जिसके कारण इलाके में हिंदू समर्थक समूहों ने विरोध प्रदर्शन किया.

थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर सुब्रमण्य स्वामी मंदिर और एक दरगाह दोनों हैं. यह विवाद महीनों से चल रहा है, लेकिन ताज़ा विवाद तब शुरू हुआ जब भक्तों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर यह मांग की कि उन्हें मंदिर में पारंपरिक जगह के बजाय पहाड़ी पर दरगाह के पास मौजूद दीपस्तंभ पर दीया जलाने की इजाज़त दी जाए.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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