नई दिल्ली: कवि वरवरा राव और कार्यकर्ता अखिल गोगोई व शरजील इमाम के भीड़ भरी जेलों में, कोविड पॉज़िटिव निकलने के बाद, कोविड महामारी में जेलों के अंदर क़ैदियों, और जेल स्टाफ की सुरक्षा को लेकर, गंभीर चिंता जताई जा रही है. देश भर की जेलों से संक्रमण के बढ़ते मामलों की ख़बरें आ रही हैं, और कुछ जगहों पर स्थिति चिंताजनक हो रही है.
दिप्रिंट के हाथ लगे सरकारी आंकड़ों से पता चलता है, कि 22 जुलाई तक 17 राज्यों की जेलों में, 3,355 क़ैदी और जेल स्टाफ, कोविड पॉज़िटिव पाए जा चुके थे. इनमें कम से कम 2,341 ठीक हो चुके हैं, और 14 अपनी जान से हाथ दो चुके हैं.
आसमान छूते राष्ट्रीय आंकड़ों के सामने, ये संख्या भले ही ज़्यादा न लगे, लेकिन एक्सपर्ट्स चेतावनी दे रहे हैं, कि स्थिति कभी भी बिगड़ सकती है, क्योंकि भारतीय जेलें भीड़ के लिए बदनाम हैं, और सुप्रीम कोर्ट के अनुरोध के बाद भी, राज्यों ने इस दबाव को कम करने की दिशा में कुछ नहीं किया है.
23 मार्च को शीर्ष अदालत ने, राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों को ऐसे उपाय करने का निर्देश दिया था, जिनसे जेलों के अंदर वायरस न फैले. इन उपायों में कुछ श्रेणी के क़ैदियों को, ज़मानत और पेरोल पर छोड़ना भी शामिल था.
इसके पीछे विचार ये था कि देश की मौजूदा 1,339 जेलों (प्रिज़न स्टैटिस्टिक्स इन इंडिया 2018 के अनुसार) के अंदर, भीड़ को कम किया जाए. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) 2018 के आंकड़ों से पता चलता है, कि जेलों के अंदर 4,40,000 क़ैदी थे, जो उनकी स्वीकृत क्षमता से क़रीब 60,000 अधिक है.
इस साल मई में आई नेशनल लीगल सर्विसेज़ अथॉरिटी की रिपोर्ट के मुताबिक़, महामारी शुरू होने के बाद से, देश भर की जेलों से रिहा किए जाने वालों में, 42,000 विचाराधीन क़ैदी, और 1,80,000 सज़ायाफ्ता क़ैदी थे.
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भीड़ की समस्या
टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (टिस) के सेंटर फॉर क्रिमिनॉलोजी एंड जस्टिस के प्रोफेसर, डॉ विजय राघवन के अनुसार, राज्यों के कुछ हद तक सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानने के बाद भी, जेलें अभी भी ख़तरनाक हद तक भीड़ भरी हैं.
उन्होंने बताया कि जेलें जो पहले 114 प्रतिशत क्षमता पर काम रहीं थीं, अब 102 प्रतिशत पर चल रही हैं, जिसकी वजह से उनके लिए, कोविड-19 गाइडलाइन्स का पालन करना लगभग असंभव है.
राघवन, जो जेल सुधारों के लिए काम करने वाली एक एनजीओ, प्रयास के प्रोजेक्ट डायरेक्टर भी हैं, ने कहा, ‘सोशल डिस्टेंसिंग मुमकिन नहीं है, चूंकि तक़रीबन 5 लाख क़ैदियों में से लगभग 12 प्रतिशत (60,000) को ही, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, ज़मानत पर रिहा किया गया था’.
उन्होंने कहा कि राज्यों को स्वास्थ्य के मानकों के आधार पर, क़ैदियों की श्रेणियां बनाकर उसी हिसाब से उन्हें छोड़ना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘अपराध की बजाय लोगों की इस हिसाब से श्रेणियां बनानी चाहिएं, कि संक्रमण का ख़तरा किसे ज़्यादा है, चाहे वो 60 वर्ष से अधिक हो, गर्भवती महिला हो, या बच्चे के साथ आम महिला हों’.
रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर प्रकाश सिंह, जिन्होंने उत्तर प्रदेश के डीजीपी के पद पर काम किया है, ने दिप्रिंट से कहा कि कुछ क़ैदियों को शिफ्ट करने के लिए, खुली जेलें इस्तेमाल की जा सकती हैं. ‘ये सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि विचाराधीन क़ैदी, ख़ासकर जो छोटे अपराधों के लिए बंद हैं, रिहा किए जाएं चूंकि ये किया जा सकता है.’
दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने, बड़ी संख्या में क़ैदियों को रिहा किया है, लेकिन महाराष्ट्र जैसे अन्य सूबे अभी भी बेहद भीड भरी जेलें चला रहे हैं. मसलन, मुम्बई की आर्थर रोड जेल में, लगभग 2,500 क़ैदी बंद हैं, जबकि इसकी क्षमता क़रीब 800 की है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने हाल ही में कहा था कि, ‘सिर्फ क़ैदियों को रिहा कर देना, जेलों में भीड़ की समस्या का हल नहीं है’ और स्पष्ट किया कि भारतीय जेलों में व्याप्त स्वाथ्य के वातावरण पर ध्यान देने की ज़रूरत है, जो बहुत अच्छा नहीं है. आयोग ने एक 11 सदस्यीय कमिटी का गठन किया है, जो राज्यों के अधिकारियों को गाइड करेगी, कि जेलों में व्याप्त गंदगी, और मेडिकल स्टाफ तथा कोविड-19 जांच में कमी की समस्या से कैसे निपटा जाए.
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महाराष्ट्र, असम की जेलें सबसे अधिक प्रभावित
वो राज्य जहां राव, इमाम, और गोगोई क़ैद हैं- महाराष्ट्र और असम- उनकी जेलों के अंदर कोविड-19 मामलों की संख्या में सबसे आगे हैं.
22 जुलाई तक महाराष्ट्र में 885 मामले दर्ज थे, जबकि असम की 10 जेलों में 538 केस थे.
महाराष्ट्र के कुल मामलों में, 219 केस के साथ नागपुर सेंट्रल जेल सबसे आगे है, जिसके बाद 182 मामले मुम्बई सेंट्रल जेल में हैं, जिसे आर्थर रोड जेल के नाम से ज़्यादा जाना जाता है.
इसके अलावा, 200 से अधिक जेल स्टाफ भी पॉज़िटिव पाया गया है.
सरकारी अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया, कि कुल मिलाकर पॉज़िटिव पाए गए 50 प्रतिशत केस ठीक हो चुके हैं, जबकि 14 जून को मुम्बई हाईकोर्ट में, एडीशनल डीआईजी (जेल) सुनील रामानंद की ओर से दाख़िल हलफनामे के मुताबिक़, 4 क़ैदियों की इस बीमारी से मौत हुई है.
असम में, 31 में से 10 जेलों में, कुछ क़ैदी कोविड पॉज़िटिव पाए गए हैं. अभी तक कुल 538 मरीज़ों में से, 50 प्रतिशत से कम ठीक हो गए हैं, जो गुवाहाटी सेंट्रल जेल में बंद हैं.
असम के आईजी (जेल) दसरथ दास ने दिप्रिंट को बताया, कि सेंट्रल जेल के अंदर कंटेनमेंट ज़ोन में, क़रीब 440 क़ैदी और तीन गार्ड्स हैं, जो नॉवल कोरोनावायरस से संक्रमित हैं.
उन्होंने ये भी बताया कि 1,200 से अधिक क़ैदियों के सैम्पल लिए गए थे, जिसके बाद पॉज़िटि पाए गए क़ैदियों को, उनके लक्षणों के आधार पर, अस्पतालों या कोविड केंद्रों में भेज दिया गया.
दास ने दिप्रिंट से कहा,’हम उन्हें इलाज के लिए अलग अलग केंद्रों पर भेजते हैं, और ठीक हो जाने के बाद ही, उन्हें वापस लाया जाता है.’
दास ने कहा, ‘हम जेल वॉर्ड्स को भी नियमित रूप से सानिटाइज़ करते हैं, और हमने नए क़ैदियों को लेना बंद कर दिया है’. उन्होंने आगे कहा कि पहला केस 4 जून को सामने आया था.
मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, राज्य सरकार सेंट्रल जेल में 200 बेड्स का एक कोविड केयर सेंटर भी बना रही है.
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दिल्ली में स्टाफ में संक्रमण दर क़ैदियों से ज़्यादा
जेल विभाग के अनुसार, दिल्ली की तिहाड़, रोहिणी और मंडोली जेलों में, 20 जून से 22 जुलाई के बीच एक महीने में, कोविड मामलों की संख्या 68 से बढ़कर 179 हो गई है.
लेकिन डीजी (जेल) संदीप गोयल ने पुष्टि की, कि राष्ट्रीय राजधानी में कोविड के शिकार 59 क़ैदियों की अपेक्षा, संक्रमित होने वाले जेल स्टाफ की संख्या अधिक (120) है.
जेल अधिकारियों का मानना है कि पिछले एक महीने में मामलों में आए उछाल का कारण, नए क़ैदियों का आना, और 13 मई को पहला केस सामने आने के बाद, आक्रामक टेस्टिंग है.
गोयल ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम नियमित रूप से क़ैदियों की जांच करते हैं, और यदि किसी में ईली (इनफ्लुएंज़ा जैसी बीमारी) और सारी (सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी इनफेक्शंस) के हल्के से भी लक्षण हों, तो उन्हें तुरंत आईसोलेशन में भेज देते हैं’. उन्होंने ये भी कहा कि इसके लिए साफ-सफाई, और सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर निरंतर जागरूकता बनाए रखना बहुत ज़रूरी है.
तिहाड़ के अंदर 2,500 से अधिक क़ैदियों के लिए, रैपिड एंटीजन टेस्टिंग कैम्प भी स्थापित किया गया है. बल्कि गोयल ने इस पर भी ज़ोर दिया, कि एंटीजन टेस्टिंग स्टाफ के लिए थी, जबकि क़ैदियों के आरटी-पीसीआर टेस्ट किए गए.
दिल्ली के एक जेल अधीक्षक ने नाम बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा: ‘हर कोई डेटा के सहारे रहता है, लेकिन जेलों के अंदर कौन देखने जा रहा है, कि क्या क़ैदी अस्ल में मास्क लगाकर, सफाई का ध्यान रख रहे हैं.’ उन्होंने आगे कहा कि अगर वो क़ैदियों को मास्क लगाने के लिए कहते हैं, तो उनमें से कुछ बग़ावत पर उतर आते हैं, जिसमें अकसर झगड़े हो जाते हैं.
जम्मू-कश्मीर की एक ही जेल में सभी मामले
केंद्र-शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर की कुल 14 जेलों के 94 मामले, अकेली अनंतनाग डिस्ट्रिक्ट जेल में हैं.
10 जुलाई को वहां हालात बहुत नाज़ुक हो गए, जब जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक मक़बूल भट्ट के छोटे भाई, ज़हूर भट्ट का टेस्ट पॉज़िटिव निकल आया.
हालांकि ज़हूर को अस्पताल भेज दिया गया, लेकिन तब तक जेल में संक्रमण फैल चुका था, जिसके अंदर 60 की क्षमता की जगह 193 क़ैदी बंद हैं. 16 जुलाई तक इनमें से 93 क़ैदी और एक स्टाफ मेम्बर टेस्ट में पॉज़िटिव आ चुके हैं.
लेकिन शंका जताई जा रही है, कि दूसरे क़ैदियों को भी ख़तरा हो सकता है, क्योंकि अप्रैल और मई में 250 क़ैदी रिहा करने के बाद भी, 14 जेलों में कुल 3,628 क़ैदी बंद हैं, जबकि इनकी क्षमता 3,234 की है.
उनमें से हज़ारों, पिछले अगस्त में धारा 370 रद्द किए जाने से पहले, हिरासत में लिए गए थे, और जिन्हें लेकर प्रशासक अब दुविधा में हैं, कि उन्हें जेलों में ही रखा जाए, या महामारी के चलते छोड़ दिया जाए.
सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा कि गृह विभाग के अधिकारियों को चिंता है, कि रिहा किए जाने के बाद ये क़ैदी अवैध गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं.
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राजस्थान संक्रमितों में डीजी भी शामिल
राजस्थान डीजी (जेल) एनआरके रेड्डी भी, राज्य की जेलों से जुड़े उन 450 से अधिक लोगों में थे, जिनका कोविड-19 टेस्ट पॉज़िटिव आया था. वो अब ठीक हो गए हैं.
सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि रेड्डी को ये इनफेक्शन शायद जयपुर डिस्ट्रिक्ट जेल में मिला, जहां वो मई में गए थे, जब वहां 125 क़ैदी कोविड-19 से संक्रमित थे.
लेकिन एडीशनल डीजी (जेल) मालिनी अग्रवाल ने दिप्रिंट से कहा, कि कोविड संकट से निपटने के लिए, अब सभी उपाय किए जा रहे हैं, जिनमें नियमित सैनिटाइज़ेशन और संदिग्ध मामलों के लिए आईसोलेशन वॉर्ड्स की सुविधाएं शामिल हैं.
प्रतापगढ़ ज़िला जेल भी बुरी तरह प्रभावित हुई है, जहां पिछले हफ्ते तक 122 मामले हो चुके थे, जिनमें चार क़ैदी कोविड से मारे जा चुके हैं.
मध्यप्रदेश में, कुल 121 क़ैदी और 14 जेल स्टाफ पॉज़िटिव पाए गए हैं. इनमें से 64 क़ैदी और तीन गार्ड्स रायसेन ज़िले की बरेली उप-जेल में पॉज़िटिव पाए गए. 20 जुलाई तक जेल अधिकारियों ने तय कर लिया था, कि अब किसी नए क़ैदी को अंदर नहीं लिया जाएगा.
उस राज्य की दूसरी जेलों से 57 और पॉज़िटिव मामले सामने आए हैं, जिनमें दो जेल भोपाल में हैं, और एक हॉटस्पॉट इंदौर में है.
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दक्षिण और पूर्व में भी यही कहानी
दक्षिण में, कर्नाटक में 170 क़ैदी कोविड-19 से संक्रमित हैं, और डीजीपी प्रवीण सूद ने कहा, कि क़ैदियों को 24 घंटे के अंदर जेल भेजना होता है. टेस्ट के नतीजों में देरी से, ये तय करना मुश्किल हो जाता कि कौन क़ैदी संक्रमण का कैरियर हो सकता है.
डीजी (जेल) आलोक मोहन ने भी यही विचार व्यक्त किए. उन्होंने कहा, “हम सभी नए क़ैदियों के टेस्ट कराते हैं, लेकिन कभी कभी रिपोर्ट्स तब आती हैं, जब वो जेल परिसर में दाख़िल हो चुके होते हैं”.
पड़ोसी सूबे तमिलनाडु में भी क़ैदियों में, कोविड के 150 मामले दर्ज हुए हैं, हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, 35,000 क़ैदियों को जेल से छोड़ दिया गया था. एक प्रोबेशन ऑफिसर की तो मौत ही हो गई.
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश, जो कोविड मामलों में उछाल को लेकर सुर्खियों में बने रहे हैं, जेलों के अंदर महामारी प्रकोप के मामले में, अपेक्षाकृत स्थिर हैं. आंध्र की जेलों से कोरोनावायरस के 20 मामले सामने आए हैं, जबकि तेलंगाना में डीजी (जेल) केएलएन राव ने पुष्ट किया, कि अभी तक केवल चार क़ैदी पॉज़िटिव निकले हैं.
बिहार की जेलों से 77 कोविड मामले आए हैं, जिनमें 46 जेल स्टाफ हैं. भागलपुर जेल में 4 क़ैदियों की मौत हुई, लेकिन बिहार आईजी (जेल) मिथिलेश मिश्रा ने बताया कि, उनकी पॉज़िटिव रिपोर्ट मरने के बाद ही पता चली.
अभी तक के प्रयास
क़ैदियों को छोड़ने के अलावा कुछ बड़े राज्यों ने, जिनके यहां क़ैदियों की संख्या अधिक है, स्थिति से निपटने के लिए और भी उपाय किए हैं.
मसलन, महाराष्ट्र ने भी तक 27 ज़िलों में 36 जगहों को, बाक़ायदा पार्टीशन के साथ अस्थाई जेल-कम-क्वारंटीन, और कोविड सुविधाएं घोषित किया है, जिनमें अधिकतर स्कूल और नगर पालिका सम्पत्तियां हैं.
राज्य के जेल विभाग के एक अधिकारी ने कहा, कि इन अस्थाई जेलों को हर क़ैदी का रिकॉर्ड रखना होता है, कि वो कोविड पॉजिटिव है कि नहीं.
राष्ट्रीय राजधानी में, दिल्ली की जेलों के लिए एक पन्ने की गाइडलाइन जारी की गई, जिसमें क़ैदियों की बार बार स्क्रीनिंग, एनजीओज़ समेत सभी बाहरी एजेंसियों के आने पर रोक, हर जेल में आईसोलेशन वॉर्ड्स, आने वाले नए क़ैदियों को केवल दो मर्दानी जेल, एक ज़नानी तेल, और एक किशोर जेल तक सीमित रखना, और उन्हें 14 दिन तक अलग रखने जैसे उपाय शामिल हैं.
कर्नाटक ने तो सुप्रीम कोर्ट की दख़लअंदाज़ी से पहले ही, नए क़ैदियों को अलग करना शुरू कर दिया था.
ये समझाते हुए कि उन्होंने क्वारंटीन के अतिरिक्त सिस्टम्स कैसे स्थापित किए, तमिलनाडु के डीजीपी सुनील कुमार सिंह ने बताया, कि उन्होंने राज्स की 105 उप-जेलों की निशानदेही की है, जहां नए क़ैदियों को पहले जांच और क्वारंटीन से गुज़ारा जाता है, और फिर रिपोर्ट आने पर ही, उन्हें सेंट्रल जेल भेजा जाता है.
असम में, गुवाहाटी सेंट्रल जेल के एक वॉर्ड को, कोविड-19 अस्पताल में तब्दील कर दिया गया है. जेल अधिकारियों के मुताबिक़, ये क़दम तब उठाया गया जब दो क़ैदी, शहर से बाहर कोविड केयर सेंटर से फरार हो गए, जहां उन्हें ले जाया गया था.
इस बीच एमपी ने नए क़ैदियों को लाना बिल्कुल बंद कर दिया है.
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(मानसी फडके, रोहिनी स्वामी, अज़ान जावेद, मधुपर्णा दास, चितलीन सेठी और प्रशांत श्रीवास्तव के इनपुट्स के साथ)