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Friday, 26 April, 2024
होमदेशकिसान संकट खत्म करने के लिए वाजपेयी के कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री ने मोदी सरकार को दी यह सलाह

किसान संकट खत्म करने के लिए वाजपेयी के कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री ने मोदी सरकार को दी यह सलाह

उन्होंने कहा कि सरकार पर किसानों का भरोसा घटा है, उनकी आय में लगातार गिरावट आ रही है और यही कारण है कि वे आंदोलन कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: पूर्व कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री, जिन्होंने वाजपेयी के शासनकाल में यह पद संभाला था ने नरेंद्र मोदी सरकार से कहा है कि गतिरोध तोड़ने के लिए वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर आंदोलनकारी किसान संगठनों की मांग को मान लें. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

सप्ताहांत में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मिले शास्त्री ने सरकार को सलाह दी कि इसे सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त एक स्वतंत्र समिति के माध्यम से लागू किया जा सकता है.

किसानों को डर है कि एक बार निजी मंडियां आने के बाद एमएसपी लागू नहीं होगा.

भाजपा सूत्रों ने बताया कि बैठक के दौरान शास्त्री ने इस बात पर जोर दिया कि सरकार और किसानों के बीच भरोसे की कमी है, उनकी नजर में यही मौजूदा विरोध प्रदर्शन का मूल कारण है और बातचीत की प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट को शामिल करके इस खाई को पाटा जा सकता है.

शास्त्री ने दिप्रिंट से बातचीत के दौरान भी कहा कि तीन कृषि कानूनों में कुछ विसंगतियां हैं, और वह इसलिए कि इन्हें जल्दबाजी में तैयार किया गया है.

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उन्होंने सवाल उठाया, ‘क्या किसी देश का कोई कानून इस तरह से बनाया जा सकता है कि वह अदालतों में अपील करने से रोकता हो? अधिकारियों ने ऐसे किसी क्लॉज का मसौदा कैसे तैयार किया कि जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) और सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) का फैसला अंतिम होगा?’ उन्होंने कहा, ‘जब किसानों ने विरोध जताया तो यह बात सरकार की नजर में आई और इसका हल निकालने का फैसला किया लेकिन यह तो पहले ही किया जाना चाहिए था.’

शास्त्री ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से लेकर किसानों की आय तक के साथ-साथ मौजूदा आंदोलन समेत कई मुद्दों पर तोमर से बात की.


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भरोसे का अभाव

शास्त्री, वाजपेयी शासनकाल के दौरान शुरू हुई किसान क्रेडिट कार्ड योजना के पीछे उन्हीं का दिमाग था, ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था को तभी फिर से पटरी पर लाया जा सकता है जब किसानों की आय बढ़ाई जाए.

उन्होंने कहा, ‘उनकी क्रय शक्ति काफी घट गई है. सरकार की अपनी समिति ने कहा है कि लगातार कमी आने के कारण हाल के वर्षों में किसानों की आय 25-30 प्रतिशत घट गई है. डीजल, पेट्रोल, यूरिया और बीज के दाम बढ़ने से उनकी इनपुट लागत लगातार बढ़ रही है. उन्हें अपनी उपज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहा है, ऐसे में उनकी आय अचानक दोगुनी कैसे होगी?’

पूर्व कृषि मंत्री ने कहा कि किसानों के पास कानूनी तौर पर एमएसपी की मांग करने के वैध कारण हैं. उन्होंने कहा, ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के लिए अधिकतम समर्थन मूल्य बन गया है. हम इनपुट लागत की सही गणना नहीं कर रहे हैं, इसलिए इनपुट लागत के ठीक से आकलन के लिए एक इनपुट कमीशन की जरूरत है. यही वजह है कि किसान कानूनी रूप में एमएसपी की मांग कर रहे हैं, क्योंकि इससे कम से कम उन्हें न्यूनतम इनपुट लागत तो मिलेगी.’

यह समझाने के लिए कि किसानों की आय घट रही है, शास्त्री ने सुपर बासमती चावल का हवाला दिया, जिसका निर्यात किया जाता है. उन्होंने कहा कि 2013-14 में सुपर बासमती 4,800 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन 2014-15 में इसके दाम घटकर 3,500 रुपये रह गए. 2017-18 में यह 2,400 रुपये और 2018-19 में 2,200-2,400 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गया.

शास्त्री ने पूछा, ‘किसानों की आय कैसे बढ़ेगी?’ उन्होंने कहा, ‘अगर हम स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को सी2 कास्ट (भुगतान में आई कुल लागत, स्वामित्व वाली पूंजीगत संपत्ति के मूल्य पर ब्याज, पारिवारिक श्रम का मूल्य, पट्टे पर दी भूमि के लिए किराये के भुगतान और स्वामित्व वाली भूमि पर किराये का मूल्य) के आधार पर लागू करें तो एमएसपी गेहूं के लिए 2,800-3,000 रुपये और चावल के लिए 2,600-2,800 रुपये होगा, लेकिन अभी यह गेहूं के लिए 1,925 रुपये और चावल के लिए 1,868 रुपये है.’

उन्होंने कहा, ‘सरकार कहती है कि उसने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू कर दिया है लेकिन उसने इसे केवल ए2 (केवल भुगतान पर आई लागत) और पारिवारिक श्रम लागत पर के आधार पर लागू किया है न कि सी2 के साथ 50 प्रतिशत इनपुट कास्ट के आधार पर.’

यह स्पष्ट करते हुए कि प्रदर्शनकारी किसान क्यों नहीं झुक रहे हैं, शास्त्री ने कहा, ‘सरकार कह रही है कि मंडियां खत्म नहीं होंगी, लेकिन वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा था कि मंडी व्यवस्था पुरानी और निरर्थक है. इसलिए किसान सरकार पर भरोसा नहीं कर रहे हैं.’

‘दुनियाभर में कृषि को सबसे ज्यादा सब्सिडी दी जाती है’

शास्त्री ने सरकार से पीएम-किसान सम्मान निधि योजना के तहत और अधिक पैसा जारी करने का भी आह्वान किया. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले शुरू की गई इस योजना के तहत किसानों को सालाना 6,000 रुपये मिलते हैं.

पूर्व कृषि मंत्री ने कहा, ‘सरकार कहती है कि यह शानदार योजना है लेकिन दुनियाभर में कृषि पर सबसे ज्यादा सब्सिडी दी जाती है. अमेरिका और यूरोप कृषि जीडीपी का 30-40 प्रतिशत हिस्सा किसानों के लिए सुनिश्चित करते हैं लेकिन हम उन्हें कृषि जीडीपी का केवल 3-5 प्रतिशत देते हैं. यह कृषि जीडीपी का न्यूनतम 10 प्रतिशत होना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘हम आमतौर पर यह भूल जाते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था निवेश नहीं बल्कि मांग पर आधारित है.’

शास्त्री ने कहा कि लगभग 46 प्रतिशत औद्योगिक मांग ग्रामीण क्षेत्र की है. ‘अगर उनके पास क्रय शक्ति नहीं होगी तो पूरा चक्र ध्वस्त हो जाएगा. इसलिए हमें किसानों को सब्सिडी या एमएसपी की गारंटी देनी होगी ताकि उनका जीवन चल सके.’

उन्होंने कहा कि एमएसपी किसानों को अपनी फसलों के बेहतर दाम दिलाने में मददगार होता है. शास्त्री ने कहा, ‘किसान कई बार टमाटर और आलू एक रुपये किलो में क्यों बेचते हैं जबकि इनपुट लागत कई गुना अधिक होती है? ऐसा इसलिए है क्योंकि जैसे ही फसलों का उत्पादन होता है, किसानों को शादी और अन्य खर्चों के लिए ली गई रकम साहूकारों को चुकानी होती है. यदि एमएसपी की गारंटी होती है, तो किसान इंतजार करेंगे, नहीं तो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए औने-पौने दाम पर बेचेंगे.’

वाजपेयी के समय किसानों के आंदोलन पर

78 वर्षीय पूर्व मंत्री और किसान आयोग के पहले अध्यक्ष ने अपने कार्यकाल के दौरान किसानों के विरोध प्रदर्शन पर भी बात की.

शास्त्री ने बताया, ‘उस समय रबी की फसल का एमएसपी बढ़ाने को लेकर प्रदर्शन किया गया था. यह तब गेहूं के लिए 460 रुपये प्रति क्विंटल था. मैंने अधिकारियों से इनपुट लागत की गणना करने को कहा और यह 510 रुपये प्रति क्विंटल आई. सचिव ने 510 रुपये की सिफारिश की, लेकिन मैंने अटलजी (पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी) से सलाह ली और 610 रुपये प्रति क्विंटल की घोषणा की. किसान नेता मेरे पास आए और मुझसे बोले कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि यह वृद्धि उनकी उम्मीद से ज्यादा होगी.’

उन्होंने कहा, ‘हमने पूरी कैबिनेट के इसके खिलाफ होने के बावजूद चीनी उद्योग का लाइसेंस खत्म किया जबकि चीनी लॉबी की तरफ से काफी दबाव था.’

उन्होंने इसके बाद तीखी बयानबाजियों के दौर को भी याद किया.

उन्होंने बताया, ‘अटलजी ने मुझसे पूछा-‘चीनी वाले प्रेशर डाल रहे हैं, क्या करें.’ तो मैंने जवाब दिया किसानों का भला भोगा. इस पर अटलजी ने कहा ‘करिए’.’

उन्होंने आगे जोड़ा कि यह एक ऐतिहासिक सुधार था.

शास्त्री ने कहा, ‘1997-98 में निजी मिलें प्रतिदिन 5-7 लाख टन गन्ने की पेराई की सहकारी क्षेत्र की क्षमता की बराबरी नहीं कर सकती थीं. आज निजी क्षेत्र की पेराई क्षमता 16 लाख टन प्रतिदिन से अधिक हो गई है, जबकि सहकारी मिलें आठ लाख टन प्रतिदिन के करीब ही पेराई कर रही हैं.

उन्होंने कहा, ‘सीधा-सा सार यही है कि आपको किसानों की समस्याओं को समझना होगा और उनकी जायज चिंताएं दूर करने के बारे में गंभीरता से सोचना होगा. इतनी कड़ाके की ठंड में किसी के पास सिर्फ विरोध के लिए विरोध करने के लिए न तो समय है और न ही संसाधन. सरकार पर किसानों का भरोसा घटा है, उनकी आय में लगातार गिरावट आ रही है और यही कारण है कि वे आंदोलन कर रहे हैं.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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