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Sunday, 8 December, 2024
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उत्तरकाशी सुरंग हादसा: ऑगर मशीन खराब होने के कारण बचाव अभियान रुका, अब सारा ध्यान वर्टिकल ड्रिलिंग पर

रेस्क्यू ऑपरेशन गुरुवार को रोक दिया गया था, क्योंकि बचाव कार्य में लगी टीमों को हॉरिजेंटल तरीके से ड्रिलिंग करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था. हालांकि, अब केवल 15 मीटर ही और मलबा बचा है.

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उत्तरकाशी: दिप्रिंट को जानकारी मिली है कि उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 41 मज़दूरों को हॉरिजेंटल रास्ते से बाहर निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन दो दिन बाद तकनीकी कठिनाइयों के कारण रोक दिया गया है, लेकिन सबका ध्यान अब दोबारा सुरंग के ऊपर पहाड़ की चोटी से वर्टिकल ड्रिलिंग करने पर लौट आया है.

मौके पर मौजूद सरकारी अधिकारियों के अनुसार, ड्रिल मशीनें एक रास्ता तैयार करेंगी, जिनके ज़रिए बचावकर्मी (एनडीआरएफ) एक ट्रॉली को मज़दूरों तक भेजने की कोशिश करेंगे. हालांकि, बचाव कार्य शनिवार शाम तक भी रुका हुआ था.

ऑपरेशन के 14वें दिन वर्टिकल ड्रिलिंग से रास्ते बनाने पर एक बार फिर से विचार किया जा रहा है. बता दें कि पांच दिन पहले भी इसी तरीके पर विचार किया गया था.

इससे पहले मलबे में चल रहे हॉरिजेंटल ड्रिंलिंग का काम प्रभावित हो गया क्योंकि ड्रिल करने के लिए इस्तेमाल की जा रही अमेरिकन ऑगर मशीन किसी भारी धातु से टकरा गई जिसके बाद गुरुवार को ड्रिलिंग का पूरा काम बंद करना पड़ा था. शुक्रवार की रात को दोबारा मशीन खराब हो गई और इसके ब्लेड मलबे में फंस गए.

शनिवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने कहा कि आगर मशीन के ब्लेड मलबे के अंदर फंस गए हैं, इसलिए इसे निकालने के लिए एक प्लाज्मा कटर की ज़रूरत है, जिसे हैदराबाद से मंगवाया जा रहा है. उनके मुताबिक, प्लाज्मा कटर के शनिवार रात तक बचाव स्थल पर पहुंचने की उम्मीद है.

सिल्क्यारा सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर को बीच से ढह गया था. बता दें कि यह नरेंद्र मोदी सरकार की प्रमुख चार धाम ऑल वेदर रोड परियोजना का एक हिस्सा है, जिसका उद्देश्य उत्तराखंड के प्रमुख तीर्थ स्थलों को आपस में जोड़ना है. 

रात में चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन का दृश्य | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

सरकारी अधिकारियों के अनुसार, वर्टिकल ड्रिलिंग की मशीनें शनिवार की सुबह राड़ी टॉप पर भेज दी गई हैं. यह वह जगह है, जहां से सुरंग ढह गई थी. बचाव दल मलबे से ऑगर मशीन को वापस बाहर निकालने के बाद काम दोबारा शुरू कर देंगे.


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Graphic: Soham Sen | ThePrint
चित्रण: सोहम सेन/दिप्रिंट

हालांकि, अधिकारियों ने अभी भी फंसे हुए लोगों तक हॉरिजेंटल रास्ते से पहुंचने की संभावना से इनकार नहीं किया है. इसमें मौजूद कुल 60 मीटर मलबे में से सिर्फ 15 मीटर और मलबे को हटाया जाना बाकी है. जबकि, अगर ऊपर से वर्टिकल ड्रिल किया जाता है तो मज़दूरों तक पहुंचने के लिए लगभग 86 मीटर तक ड्रिल करना होगा.

भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ और सार्वजनिक क्षेत्र के निगम जैसे रेल विकास निगम लिमिटेड, तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी), एसजेवीएन और कुछ अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ फिलहाल बचाव अभियान में मजबूती के साथ लगे हुए हैं.


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‘अभी भी 3-4 दिन और लग सकते हैं’

एक सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि मलबे के बीच से रास्ता निकालने की कोशिश के दौरान ऑगर मशीन का एक ब्लेड टूट जाने के बाद गुरुवार को काम रोकना पड़ा. उन्होंने यह भी माना कि रणनीति में अब बदलाव किया गया है जिसके चलते पूरे बचाव कार्य में अब 3-4 दिन और लग सकते हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि मशीनों के कंपन को अधिक नुकसान से बचाने के लिए बचावकर्मियों को हर कुछ मिनटों में ड्रिलिंग रोकनी होगी.

चारधाम परियोजना से जुड़े पीएमओ के पूर्व सलाहकार भास्कर खुल्बे ने माना कि बचाव अभियान की रणनीति में बदलाव हुआ है. उन्होंने कहा कि “हॉरिजेंटल प्वाइंट पर काम जल्द से जल्द शुरू किया जाएगा”.

धामी ने शुक्रवार को मीडिया से कहा था कि बचाव अभियान “अपने अंतिम चरण में” है.

उन्होंने कहा था, “पीएम मोदी मज़दूरों को आने वाली कठिनाइयों के बारे में सभी अपडेट लेते हैं और उसके समाधानों पर चर्चा करते हैं. केंद्र और राज्य सरकार की सभी एजेंसियां ​​बचाव अभियान के लिए मिलकर काम कर रही हैं.” बता दें कि  धामी गुरुवार से उत्तरकाशी के मालती में डेरा डाले हुए हैं. उन्होंने संवाददाताओं से आगे कहा था, “हमें उम्मीद है कि जल्द ही यह ऑपरेशन पूरा हो जाएगा और सभी मज़दूर बाहर आ जाएंगे.”

पहिए वाले स्ट्रेचर के साथ NDRF ने किया रिहर्सल

एनडीआरएफ ने शुक्रवार को फंसे हुए मज़दूरों को बाहर निकालने के लिए एक मॉक ड्रिल भी की, जिसके दौरान एनडीआरएफ कर्मियों ने 800 मिमी नकली रास्ते के माध्यम से हॉरिजेंटल रूप से पहिएदार स्ट्रेचर चलाने का अभ्यास किया.

एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि टीम बचाव के लिए “पूरी तरह से तैयार” थी, लेकिन यह पूछे जाने पर कि ऑपरेशन में इतना समय क्यों लग रहा है एक अन्य कर्मी ने कहा कि एजेंसी ने अभी तक अपना काम शुरू नहीं किया है, हालांकि वह “पहले दिन से” ही साइट पर मौजूद है.

दूसरे कर्मी ने दिप्रिंट को आगे बताया, “हम अपना काम तभी शुरू करेंगे जब अन्य एजेंसियां ​​अपना काम पूरा कर लेंगी.”

उन्होंने बताया कि एनडीआरएफ ने 10 मिनट में मज़दूरों को निकालने की योजना बनाई थी.

‘सुरंग के अंदर के गर्म तापमान से मिलती है ताकत’

मज़दूरों के स्वास्थ्य लेकर डर बढ़ रहा है, एक भूविज्ञानी ने दिप्रिंट को बताया कि बाहर के ठंडे मौसम के बावजूद सुरंग के अंदर का तापमान गर्म रहता है, जिससे उन्हें सुरक्षित रहने में मदद मिल रही है.

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में वानिकी कॉलेज में बुनियादी और सामाजिक विज्ञान विभाग के प्रमुख एसपी सती ने दिप्रिंट को बताया कि अंदर फंसे लोग लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं, जब तक वे गर्म स्रोत के पास रहते हैं.

उन्होंने कहा, “यहीं कारण है कि आज 14वें दिन भी सभी लोग ठीक हैं.”

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सती संभावित पारिस्थितिक मुश्किलों का हवाला देते हुए शुरू से ही चारधाम परियोजना का विरोध कर रहे थे.

इस बीच, अधिकारी फंसे हुए मज़दूरों को भोजन और पानी भेज रहे हैं और स्वास्थ्य विशेषज्ञ उनके स्वास्थ्य की लगातार निगरानी कर रहे हैं. साइट पर मौजूद डॉक्टर अभिषेक शर्मा जो रोज़ाना मज़दूरों का हालचाल लेने जाते हैं, का कहना है कि मज़दूरों ने “किसी भी प्रकार की दवा लेने से इनकार कर दिया है”, क्योंकि वो अब पूरी तरह से सुरक्षित हैं.

उन्होंने कहा, “कुछ दिन पहले मज़दूरों ने अनिद्रा, पेट दर्द और दस्त की शिकायत की थी, लेकिन पका हुआ खाना अंदर जाने से उनके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है और वे सभी सुरक्षित हैं.”

यह पूछे जाने पर कि क्या कोई मज़दूर तनाव जैसी समस्याओं से भी पीड़ित है, उन्होंने कहा कि उनकी वास्तविक स्थिति का आकलन बचाव के बाद ही किया जा सकता है. उन्होंने कहा, “हालांकि, इस समय हर कोई अपना मनोबल बनाए हुए है. चूंकि अंदर 41 लोग हैं, इसलिए वे एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते रहते हैं और यह ताकत हमारे लिए काम कर रही है.”

लेकिन मज़दूरों के परिवारों के लिए हर गुज़रता दिन नई दहशत लेकर आता है. जब रजनी अपने पति बीरेंद्र किश्कु के बारे में बात करती है, जो अंदर फंसे लोगों में से एक है, तो उनकी आंखें भर आती हैं. रजनी और उनके जीजा देवेन्द्र किस्कू को बिहार के बांका जिले से उत्तरकाशी आए तीन दिन से अधिक हो गए हैं.

वह कहती हैं, “जैसे ही वह बाहर आएंगे, मैं उन्हें घर ले जाऊंगी. चार पैसे कम कम कमाएंगे, लेकिन सुरक्षित रहेंगे.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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