नैनीताल : उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद भी अग्रिम जमानत दी जा सकती है. यह निर्णय उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने बहुमत के आधार पर सुनाया जिसमें मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी, न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी शामिल थे.
अदालत का फैसला कई अग्रिम जमानत अर्जियों पर आया, जिसमें एक वकील की याचिका भी शामिल है, जो दहेज हत्या के मामले में आरोपी है.
दो न्यायाधीश जहां इस निर्णय के पक्ष में थे वहीं एक न्यायाधीश का मत इसके खिलाफ था.
पिछले वर्षों में कई मामलों में इस बात को लेकर बहस होती रही है कि जांच के बाद किसी आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल होने के बाद क्या उसे अग्रिम जमानत दी जा सकती है.
तीन न्यायाधीशों की पीठ ने आरोपी को आरोप पत्र दायर होने के बाद भी अग्रिम जमानत का अधिकार देकर इस बहस पर विराम लगा दिया है.
मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति मनोज तिवारी इस बात पर सहमत हुए कि ऐसी स्थिति में आरोपी को अग्रिम जमानत दी जा सकती है, वहीं न्यायमूर्ति रवींद्र मैथानी ने इस मामले पर अपनी असहमति दर्ज की.
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