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Wednesday, 16 July, 2025
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उत्तराखंड : गोरी नदी खतरनाक रूप से गांवों की तरफ बह रही

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पिथौरागढ़, सात अगस्त (भाषा) गोरी नदी में वर्षों से बड़ी मात्रा में गाद इकट्ठा होने के कारण इसका प्रवाह बदल गया है और यह खतरनाक रूप से आसपास के गांवों की तरफ बहने लगी है, जिससे वहां के निवासी चिंतित हैं।

बंगापानी उपमंडल के गट्टाबगड़, चामी, लुम्टी, मोरी, मनमकोट, तोली, चोरीबगड़ समेत लगभग एक दर्जन गांवों के निवासियों ने जिला प्रशासन से नदी के प्रकोप से जान-माल की रक्षा करने की गुहार लगाई है।

चौना गांव के पूर्व ग्राम प्रधान हीरा चिराल ने कहा, “वर्ष 2013 में आई आपदा के दौरान गोरी नदी के पास स्थित भदेली गांव की 15 एकड़ से ज्यादा खेती योग्य भूमि बह गई थी। बरसात के मौसम में ज्यादातर समय नदी उफान पर रहती है और इसका बहाव केवल 300 मीटर की दूरी पर स्थित रिहायशी इलाके तक पहुंच सकता है।”

समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता और गोरी घाटी के उमारगारा गांव के निवासी मदन राम सान्याल ने कहा कि 2013 में आई बाढ़ में गोरी नदी के पास स्थित गोविंद राम, हयात राम और भरन राम की उपजाऊ जमीन पानी में बह गई और वे भूमिहीन हो गए।

चोरीबगड़ गांव के एक किसान दिलीप सिंह ने बताया कि नदी के किनारे सुरक्षा दीवार न होने की वजह से 2017 में आई बाढ़ में उनकी तथा दो अन्य किसानों, माधो राम और दिवानी राम की 10 एकड़ से ज्यादा भूमि बह गई। उन्होंने कहा कि मानसून के चलते नदी अब उनके घर के और पास पहुंच गई है।

पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी आशीष चौहान ने बताया कि जिला प्रशासन ने गोरी नदी के किनारे सुरक्षा दीवार बनाने का प्रस्ताव उच्चाधिकारियों को भेज दिया है। उन्होंने कहा कि जिले की अन्य नदियों के मुकाबले गोरी नदी रिहायशी इलाकों के ज्यादा नजदीक बहती है।

घौरी मनकोट गांव की प्रधान मुन्नी देवी ने चेताया कि 2013 के बाद से गांवों से नदी की तरफ मृदा क्षरण हो रहा है और अगर जल्द ही सुरक्षात्मक उपाय नहीं किए गए तो कई गांव बर्बाद हो जाएंगे।

पिथौरागढ़ निवासी भूगर्भशास्त्री प्रदीप कुमार ने कहा, “गोरी नदी के किनारे स्थित गांव हजारों साल पहले नदी द्वारा लाई गई रेत पर बसे हैं। नदी के बीच में गाद इकट्ठा होने से नदी का बहाव गांवों की तरफ हो गया है।”

उन्होंने कहा कि नदी तल पर कोई कठोर चट्टान न होने के कारण सुरक्षा दीवारों के लिए बहुत गहराई तक खुदाई करनी पड़ेगी।

कुमार के मुताबिक, नदी में से रेत निकालना और इसे गहरा बनाना भी एक विकल्प हो सकता है, ताकि उसे गांवों की तरफ बहने से रोका जा सके। हालांकि, यह प्रक्रिया काफी महंगी और जटिल है।

भाषा

सं दीप्ति

दीप्ति पारुल

पारुल

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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