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Saturday, 21 December, 2024
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उत्तर प्रदेश सरकार नहीं करेगी पिछड़ी जातियों का बंटवारा

उत्तर प्रदेश पिछड़ावर्ग सामाजिक न्याय समिति ने प्रदेश की 79 पिछड़ी जातियों को तीन हिस्से में बांटकर रिज़र्वेशन देने की सिफारिश की है.

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नई दिल्ली: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आने के बाद एक बड़ा कदम उठाते हुए पिछड़ी जातियों के विभाजन के लिए एक कमेटी का गठन किया था. उत्तर प्रदेश पिछड़ावर्ग सामाजिक न्याय समिति का गठन जून, 2018 को किया गया था और रिपोर्ट देने के लिए उसे दो महीने का समय दिया गया था. इसकी अध्यक्षता रिटायर्ड जस्टिस राघवेंद्र कुमार को सौंपी गई. इस समिति ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है, इसने उत्तर प्रदेश की 79 पिछड़ी जातियों को तीन हिस्से में बांटकर रिज़र्वेशन देने की सिफारिश की है. उत्तर प्रदेश सरकार के सूत्रों ने जानकारी दी है कि इस रिपोर्ट पर अगले लोकसभा चुनाव तक कोई फैसला नहीं किया जाएगा.

समिति ने अपनी रिपोर्ट में पिछड़ी जातियों को पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग तीन कटेगरी में बांटा है. पहली कटेगरी में कुर्मी, यादव, चौरसिया को रखा गया है, दूसरी श्रेणी में कुशवाहा, शाक्य, लोध, शाहू, तेली, गुज्जर, माली आदि जातियां हैं, तीसरी कटेगरी में राजभर, मल्लाह, बिंद घोसी, कुरैशी आदि जातियां हैं. पहली कटेगरी को 7 प्रतिशत , दूसरी कटेगरी को 11 प्रतिशत और तीसरी कटेगरी को 9 प्रतिशत रिज़र्वेशन देने की सिफारिश की गई है.

बीजेपी ने कहा है कि इस आयोग के बनने से अति पिछड़ी जातियों को न्याय मिल पाएगा. इस आयोग के गठन के पीछे तर्क यह है कि ओबीसी में शामिल पिछड़ी जातियों में पिछड़ापन समान नहीं है. इसलिए ये जातियां आरक्षण का लाभ समान रूप से नहीं उठा पातीं. कुछ जातियों को वंचित रह जाना पड़ता है. इसलिए ओबीसी श्रेणी का बंटवारा किया जाना चाहिए. देश के सात राज्यों में पिछड़ी जातियों में पहले से ही बंटवारा है.

ऐसी ही एक कवायद केंद्र सरकार भी कर चुकी है. 2 अक्टूबर, 2017 को केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत एक आयोग के गठन की अधिसूचना जारी की. इस आयोग को तीन काम सौंपे गए हैं- एक, ओबीसी के अंदर विभिन्न जातियों और समुदायों को आरक्षण का लाभ कितने असमान तरीके से मिला, इसकी जांच करना. दो, ओबीसी के बंटवारे के लिए तरीका, आधार और मानदंड तय करना, और तीन, ओबीसी को उपवर्गों में बांटने के लिए उनकी पहचान करना. इस आयोग को अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए 12 हफ्ते का समय दिया गया.

आयोग की अध्यक्षता पूर्व न्यायाधीश जी. रोहिणी को सौंपी गई हैं. लेकिन जिस रोहिणी कमीशन को अपनी रिपोर्ट 12 हफ्ते में दे देनी थी, वो रिपोर्ट 12 महीने बाद भी नहीं आई है. अब इस आयोग को रिपोर्ट देने के लिए 31 मई, 2019 तक का समय दे दिया गया है.

ज़ाहिर है कि केंद्र सरकार भी ओबीसी के बंटवारे पर कोई फैसला नहीं करना चाहती. यूपी सरकार इस मामले में केंद्र सरकार के रास्ते पर चल रही है.

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