प्रयागराज, 21 मई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवाह पंजीकरण के फर्जी मामलों का स्वतः संज्ञान लेते हुए प्रदेश सरकार को उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम, 2017 में संशोधन करने का निर्देश दिया ताकि एक पुख्ता और सत्यापन योग्य विवाह पंजीकरण व्यवस्था अस्तित्व में आ सके।
न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने कहा कि यह कवायद छह महीने के भीतर पूरी होनी चाहिए।
अदालत ने घर से भागे जोड़ों द्वारा दायर 124 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह निर्देश दिया।
यह निर्देश ऐसे समय में आया है जब फर्जी दस्तावेजों के जरिए फर्जी विवाह का पंजीकरण कराने वाले दलालों के एक संगठित गिरोह को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं।
अदालत ने कहा, ‘‘विवाह पंजीकरण का काम देख रहे सभी उप पंजीयक 14 अक्टूबर 2024 को जारी अधिसूचना के तहत दिए गए निर्देशों का सख्ती से अनुपालन करेंगे।’’
अक्टूबर 2024 में जारी अधिसूचना में अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए थे कि उत्तर प्रदेश में विवाह पंजीकरण के लिए दूल्हा और दुल्हन का आधार प्रमाणन, बायोमेट्रिक डेटा और दोनों पक्षों तथा दो गवाहों के फोटो आवश्यक होंगे।
इसमें निर्देश दिया गया था कि आयु का सत्यापन डिजिलॉकर, सीबीएसई, उत्तर प्रदेश बोर्ड, सीआरएस, पासपोर्ट, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और सीआईएससीई जैसे आधिकारिक पोर्टलों के जरिए किया जाए।
इसके अलावा, विवाह संपन्न कराने वाले पंडित का पंजीकरण के दौरान रजिस्ट्रार के कार्यालय में उपस्थित होना आवश्यक है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि ये अंतरिम निर्देश उन विवाहों में खासतौर पर लागू होंगे जहां लड़का और लड़की घर से भागे हों और अपने परिजनों की सहमति के बगैर वैवाहिक सूत्र में बंधे हों।
अदालत ने कहा कि यदि दोनों पक्षों के परिजन पंजीकरण के समय मौजूद हों तो अधिकारी विवाह की यथार्थता से संतुष्ट होने के बाद अपने विवेकाधिकार से उक्त शर्तों में आंशिक या पूर्ण ढील दे सकता है।
अपने 44 पन्नों के आदेश में अदालत ने कहा कि कई मामलों में यह देखने में आया है कि विवाह प्रमाण पत्र ऐसी सोसाइटी द्वारा जारी किए जाते हैं जो अस्तित्व में नहीं हैं और ये फर्जी प्रमाणपत्र उच्च न्यायालय से सुरक्षा हासिल करने के लिए जारी किए जाते हैं।
अदालत ने 12 मई 2025 के अपने आदेश में कहा कि गवाह के तौर पर नामित व्यक्ति भी फर्जी पाए गए और आधार कार्ड सहित उनके विवरण फर्जी निकले। कई मामलों में वास्तव में कोई विवाह हुआ ही नहीं।
अदालत ने यह भी कहा, ‘‘कुछ याचिकाओं में वास्तविक वादी शामिल हैं जिन्हें सही मायने में न्यायिक संरक्षण और हस्तक्षेप की जरूरत है। हालांकि, ऐसे मामले अपेक्षाकृत कुछ ही हैं, जबकि ज्यादातर मामले में याचिकाएं मनगढ़ंत दस्तावेजों और फर्जी दावों पर आधारित हैं।’’
भाषा राजेंद्र खारी
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