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Monday, 4 November, 2024
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उत्तर प्रदेश: बुंदेलखंड की 4 नदियों का पानी इंसानों के पीने लायक नहीं

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में बुंदेलखंड में बह रहीं चार नदियां यमुना, केन, बेतवा और मंदाकिनी का पानी जहरीला पाया गया है.

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लखनऊ/बांदा : उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में बह रहीं चार नदियां यमुना, केन, बेतवा और मंदाकिनी का पानी अब इंसानों के पीने लायक नहीं रहा. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की आई एक रपट में इन नदियों का पानी जहरीला पाया गया है. इन नदियों का पानी पीने से इंसानों को कई बीमारियां घेर सकती हैं.

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा नवंबर माह में की गई जांच में पाया गया है कि बुंदेलखंड की धरती पर बह रहीं नदियों यमुना, केन, बेतवा और मंदाकिनी के पानी में टोटल डिजॉल्वड सॉलिड (टीडीएस) की मात्रा 700 से 900 पॉइंट प्रति लीटर और टोटल हार्डनेस (टीएच) 150 मिलीग्राम प्रति लीटर से ऊपर पहुंच गया है.

बुंदेलखंड के चित्रकूटधाम मंडल में कुछ छोटी नदियों बागै, रंज और बाणगंगा के अलावा बड़ी नदिया यमुना, केन, बेतवा और मंदाकिनी बह रही हैं, जिनके पानी का उपयोग इंसान करते आए हैं.

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी ने रपट के हवाले से बुधवार को बताया, ‘इन नदियों के पानी में टीडीएस की मात्रा काफी बढ़ गई है, जिससे इनका पानी पीने लायक नहीं रह गया है. प्रदूषित पानी पीने से पथरी, किडनी और पेट संबंधी कई बीमारियां इंसानों को अपने आगोश में ले सकती हैं.’

उन्होंने बताया, ‘हमीरपुर जिले में यमुना नदी के पानी में टीडीएस 792 पॉइंट, बेतवा नदी में 964 पॉइंट, बांदा की केन नदी में 327 और चित्रकूट जिले की मंदाकिनी नदी के पानी में 364 पॉइंट टीडीएस पाया गया है. 300 पॉइंट से ऊपर टीडीएस की मात्रा बेहद नुकसानदायक होती है.’


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उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा इन नदियों के पानी में टोटल हार्डनेस (टीएच) की मात्रा भी बढ़ गई है. यमुना में 236.68, केन में 176.54, बेतवा में 159.08 और मंदाकिनी में 192.6 मिलीग्राम प्रति लीटर टीएच पाया गया है.’

अधिकारी ने बताया कि आरओ लगाकर शुद्ध किए गए पानी में भी 100 से 200 टीडीएस रह जाता है. 300 के भीतर टीडीएस की मात्रा आमतौर पर नुकसानदायक नहीं होती है.

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बांदा स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में तैनात सहायक वैज्ञानिक आर.के. वर्मा ने कहा, ‘पानी में टोटल डिजॉल्वड सॉलिड (टीडीएस) व टोटल हार्डनेस (टीएच) बढ़ जाने से नदियों का पानी सीधे पीने योग्य नहीं रह जाता. फिलहाल बुंदेलखंड में उद्योग और बड़े नाले न होने से नदियों का पानी ज्यादा प्रदूषित नहीं है, लेकिन पीने लायक भी नहीं कहा जा सकता. बारिश में नदियों का जलस्तर बढ़ने और बालू खनन से पानी गंदा हो जाता है.’

जिला सरकारी अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डॉ. किशोरीलाल ने बताया कि प्रदूषित और खारा पानी पीने से शरीर में वे तत्व भी पहुंच जाते हैं, जिनकी आवश्यकता नहीं होती. ऐसे में पेट संबंधी बीमारी की शिकायतें ज्यादा होती हैं. इससे लोग गैस्ट्रोएंजाइटिस, डिहाईड्रेशन, उल्टी और बुखार के शिकार ज्यादा होते हैं. इसके अलावा अधिक दिनों तक दूषित पानी पीने से पथरी की बीमारी और किडनी में संक्रमण का खतरा भी रहता है.

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