scorecardresearch
Thursday, 18 April, 2024
होमदेश'हमारे ही जानवर हमारी ही फ़सलें तबाह कर रहे हैं'

‘हमारे ही जानवर हमारी ही फ़सलें तबाह कर रहे हैं’

Text Size:

पशुओं की ख़रीद-बिक्री और बूचड़खानों के बंद होने के चलते उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं की बाढ़ आ गई है. वे किसानों की फसलें तबाह कर रहे हैं.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले का नगदही गांव. यहां की किसना मिश्रा बेवा हैं. उनके तीन बेटे सूरत और दिल्ली में दिहाड़ी नौकरी करते हैं. वे घर पर अकेली रहती हैं और अपने खेतों की देखभाल खुद करती हैं. वे खेती इसलिए कर पा रही हैं क्योंकि खेती में लगने वाली लागत के लिए लड़के पैसा भेज देते हैं. खेती का सब काम लगभग वे खुद कर लेती हैं. जो उनसे नहीं हो सकता, वह मज़दूरों से करवा लेती हैं. इस तरह उनके करीब छह बीघे खेत में उनकी ज़रूरत से ज़्यादा फसल हो जाती है.

मात्र दो बीघे गेहूं की खेती में से इस बार किसना ने 5 हज़ार का गेहूं बेचा भी है. लेकिन अब उनके सामने नई मुसीबत खड़ी हो गई है. ये मुसीबत हैं आवारा जानवर. उन्होंने खेतों में ब्लेड वाला तार लगवाया है. जिसके लिए अलग से पैसे खर्च हुए. किसना बताती हैं, सबसे बड़ी दिक्कत हो गई है कि अब रात में खेत जाओ तो ब्लेड से फंस कर साड़ी फट जाती है. इसलिए दिन में ही खेत जाने की मजबूरी है.

किसना की समस्या ब्लेड के तार ने कमोबेश सुलझा दी है, लेकिन यह अकेले उनकी समस्या नहीं है. आवारा जानवर पूरे उत्तर प्रदेश की समस्या हैं. हर गांव में दो-चार सौ या अधिक संख्या में आवारा जानवर घूमने लगे हैं जो फसलों को तबाह कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के किसानों की सबसे बड़ी मुसीबत आवारा जानवर हैं. प्रदेश में करीब दो करोड़ गोवंश यानी गायें और बैल हैं. इनमें से बड़ी संख्या में जानवरों के आवारा घूमने से तरह-तरह की मुश्किलें पेश आ रही हैं.

किसना के परिवारिक कुनबे के ननके मिश्र ने बताया, ‘जिसने तार घेरा, उसी का खेत बचा. जिसने नहीं घेरा, उसका सत्यानाश हो गया. आवारा जानवरों ने सब खा लिया. एक दाना नहीं मिला. उन्होंने दो बीघा मक्का बोया था, लेकिन कुछ नहीं मिला.’ हालांकि वे खुद तार नहीं घेर पाए हैं. उन्होंने कहा, ‘एक तो पहले से इतनी भर्ती लगती है खेती में. अब यह नया तमाशा है. कम से कम हज़ार दो हज़ार रुपया हो, तो खेत का घेराव हो, लेकिन जेब मे फूटी कौड़ी नहीं है.’ अब वे लड़की की बाड़ लगाने के लिए पसीना बहा रहे हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

सबसे बड़ी परेशानी

ग्रामीण इलाकों में आजकल जहां भी चार लोग एकत्र हों, वहां पर चर्चा का विषय आवारा जानवर हैं. गदापुरवा गांव के बाहर चाय की दुकान पर हम पहुंचे तो वहां पहले से ही यही चर्चा चल रही थी. लोग अपनी-अपनी जानवर-पीड़ा बयान कर रहे थे. रासबिहारी पाठक का कहना था, ‘भैया, वे सरकार हैं. हम सब तो सोचते हैं कि सरकार हमारी समस्या सुनेगी. अब सरकार ही समस्या खड़ी कर दे तो क्या कर सकते हैं.’

इस गांव में एक खूंखार सांड़ है जिससे सिर्फ फसलों को ही नहीं, लोगों को भी खतरा है. अगर वह खेत खा रहा हो, तो उसे भगाने के लिए एक या दो आदमी नहीं जा सकता, वरना सांड़ खदेड़ कर मारेगा. करीब 15 दिन पहले उसे लोगों ने घेरकर पकड़ लिया और डीसीएम (छोटे ट्रक) पर लाद कर दूर किसी इलाके में छोड़ने ले गए. जहां पर वे लोग उसे छोड़ना चाहते थे, वहां के ग्रामीणों ने इन्हें डीसीएम समेत लाठी भाला लेकर घेर लिया. इन लोगों ने बहाना बनाकर किसी तरह जान छुड़ाई.


यह भी पढ़ें: मेहुल चोकसी हीरे ढोते हैं गायें नहीं, उनको मॉब लिंचिंग का डर कैसा?


अगर किसी गांव के लोग चाहें कि वे अपने गांव के आवारा जानवरों को दूसरे इलाके में खदेड़ दें तो ग्रामीणों में आपस में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.

इसी गांव के दो लड़के गुल्लू और आदेश गए थे उनके खेत में खा रहे सांड़ भगाने. वापस उसने इन्हीं लोगों को खदेड़ लिया. दोनों भाग कर एक बड़े पेड़ पर चढ़ गए. काफी देर तक वे पेड़ पर ही बैठे रहे और सांड़ नीचे आसपास मंडराता रहा. उन्होंने पेड़ पर से ही आवाज़ लगाकर कुछ और लोगों को बुलाया. फिर पेड़ से नीचे उतर कर भाले से मारकर उसे भगाया. गुल्लू हंसकर कहते हैं, ‘यहां आदमी आवारा जानवर से खेत की रखवाली में जितना मेहनत कर रहा है, उतनी मेनहत तो पूरे साल की किसानी में नहीं लगती. गांव के लिए इससे बड़ी कोई परेशानी है ही नहीं.’

समस्या विकराल है और सरकार सुस्त. जब दिप्रिंट ने इस विकट समस्या पर उत्तर प्रदेश के पशुपालन राज्यमंत्री जयप्रकाश निषाद से बात की. उन्होंने माना कि ये गंभीर समस्या है. निषाद ने कहा, ‘आवारा जानवरों की वजह से लोगों को परेशानी आ रही है. यह सरकार के संज्ञान में है. राज्य में 495 गोशालाएं चल रही हैं. नगर निगमों के स्तर पर गोपालन केंद्र खोले जा रहे हैं. जो गोशालाएं या पशुपालन केंद्र चल रहे हैं उन्हें राज्य सरकार की ओर से पैसा भेज दिया गया है. इसके अलावा हम खराब नस्ल के आवारा सांड़ों का बंध्याकरण करवा रहे हैं ताकि उनकी संख्या न बढ़े.’

आपको याद होगा उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद सरकार ने गायों के लिए एंबुलेंस सेवा शुरू की थी जिसका उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने उद्घाटन किया था. लेकिन गाय के लिए एंबुलेंस सेवा और गौशाला जैसे उपाय क्या लाखों अवारा पशुओं की समस्या का निदान है? समस्या कितनी​ गंभीर है. यह जानने के लिए हम फिर से गांवों की ओर लौटते हैं.

योगी जी का सांड़

गोंडा ज़िले के मौजा डेहरास और सिसई में चार सांड़ ऐसे हैं जो बहुत उग्र हैं. उनको खेत से भगाने का मतलब है जल्लीकट्टू खेलना. युवाओं के लिए यह रोज़ रोज़ खेलने वाला एक रोमांचक खेल बन गया है. लेकिन बुजुर्गों के लिए चिंता का सबब. दिन भर जहां चार लोग इकट्ठा होंगे, बस आवारा जानवरों की चर्चा शुरू हो जाती है. इन दोनों ब्लॉक के हर गांव में सैकड़ों की संख्या में छुट्टा जानवर से लोग त्रस्त हैं.

लोगों के खेत में अगर जानवर आ गए हों तो कोई चश्मदीद खेत मालिक तक इसकी सूचना इन शब्दों में पहुंचाता है- ‘जल्दी जाओ. आपके खेत में योगी जी का सांड़ निराई कर रहा है.’ छुट्टा सांड़ किसानों के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पर्याय बन गया है.

पिछले सीज़न में गांव के शिवेंद्र सिंह का चार बीघा उड़द आवारा जानवर खा गए. उनका कहना था, ‘गांव के लोगों ने अपने-अपने जानवर खुले छोड़ दिए हैं. दिलचस्प ये है कि गांव में लगभग सबका खेत या तो पूरा साफ हो गया है, या फिर थोड़ा बहुत बचा है. इसका क्या समाधान होगा, किसी को नहीं पता.’

ब्लेड वाले तार की ब्लैक मार्केटिंग

शिवेंद्र की तरह हर आदमी के पास अपनी फसलों की तबाही की कहानी है. आवारा जानवरों का खौफ इतना है कि लोगों को जल्दी से जल्दी ब्लेड वाले तार चाहिए. मांग बढ़ जाने के कारण सप्लाई नहीं हो पा रही, जिससे ब्लेड वाले तार ग्रामीण बाज़ारों में ब्लैक में बिक रहे हैं.

टेंट का बिज़नेस करने वाले संदीप ने बताया, ‘गोंडा में ब्लेड वाले और कंटीले तार की ब्लैक मार्केटिंग हो रही है. ट्रक का ट्रक उतरते ही खत्म हो जाता है. यह नया धंधा चमक गया है. जो तार तीस रुपये के आसपास बिकता था, वह अब 80 रुपये किलो से अधिक दाम में बिक रहा है.’


यह भी पढ़ें: भारत में मुसलमानों से ज़्यादा सुरक्षित लगती हैं गायें


प्राइमरी में अध्यापन करने वाले गदापुरवा गांव के युवा अमित पाठक जानवरों के इस आतंक से बहुत गुस्से में हैं. वे कहते हैं, ‘ये सरकार में बैठे लोग धर्म के नाम पर हम लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं. हमारा ही खेत, हमारे ही जानवर खा रहे हैं. जानवर भी किसान के, नुकसान भी किसान का. ये अपनी राजनीति चमकाते हैं, हमारा हर सीज़न हज़ारों का नुकसान हो रहा है. ये सरकार किसान विरोधी तो है ही, हिंदू विरोधी भी है. मैं हिंदू हूं लेकिन मैं किसान भी हूं. हमारे नुकसान की भरपाई कौन करेगा?’

गांव के रमाकांत ने फोन पर बताया, ‘आजकल गांव से कुछ जानवरों को आसपास के इलाकों में भगा दिया गया है, लेकिन अब वे दूसरे इलाके में हैं. एक इलाके में कम हो जाएंगे तो दूसरे इलाके में बढ़ जाएंगे. लोगों में इन जानवरों को भगाने को लेकर आपस में झगड़े हो रहे हैं. गांव के लोगों और आवारा पशुओं में संघर्ष की स्थिति है. इसका अभी कोई समाधान किसी को सूझ नहीं रहा है.’

पूरे प्रदेश की समस्या

ऐसा नहीं है कि यह समस्या सिर्फ गोंडा ज़िले की है. पूरे प्रदेश में जानवरों से उपजी तबाही पिछले सालों में आई है. केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद देश भर में जो गोरक्षा अभियान शुरू हुआ था, उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने उसे बूचड़खानों पर प्रतिबंध लगाकर आगे बढ़ाया.

पशुओं की संख्या और दूध उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में सबसे आगे हैं. 19वीं पशुगणना 2012 के मुताबिक, यहां पर सिर्फ गोवंशीय जानवरों यानी गायों और बैलों की संख्या 1,95,57,067 है. इनमें से 4907144 नर हैं और 1,46,49,923 मादा हैं.

बूचड़खानों पर पाबंदी और केंद्र के पशुओं की ख़रीद बिक्री संबंधी क़ानून पास होने के बाद उत्तर प्रदेश में गाय, बैल, बछड़ों की ख़रीद बिक्री एकदम बंद हो गई. पहले ग्रामीण इलाकों में पशु बाज़ार लगते थे, जहां पर जानवरों, खासकर बैलों की खरीद-फरोख्त होती थी. लेकिन वे बाज़ार कब के बंद हो चुके हैं. अब किसानों के पास जो भी जानवर काम के नहीं होते, लोग उन्हें खुला छोड़ दे रहे हैं.

बेकार जानवरों का होगा क्या

बेकार जानवरों की खरीद बिक्री तो सरकार ने गोरक्षा के नाम पर बंद करवा दी, लेकिन उन बेकार जानवरों का होगा क्या, यह न तो सरकार को पता है, न ही किसानों को पता है. प्रवचनकर्ता पंडित रामबिहारी पाठक कहते हैं, ‘हम लोगों का गाय बैलों से भावनात्मक रिश्ता है. हम खुद उन्हें मार नहीं सकते. हम उन्हें भूखा नहीं रख सकते. अगर कोई जानवर हमारे काम नहीं आ रहा है तो उसे बेच दिया जाता था, ताकि जिसे ज़रूरत हो उसके काम आए.’

बूचड़खानों पर प्रतिबंध के सवाल पर वे कहते हैं, ‘अंत में तो आपको किसी एक को चुनना पड़ता है. हम खुद गोवंश की हत्या नहीं कर सकते, लेकिन अगर गांव में कोई ऐसा सांड़ हो जो लोगों को मारने लगे तब तो कुछ न कुछ उपाय करना पड़ेगा. कई बार ऐसा भी हुआ है कि कोई सांड़ या भैंसा खूंखार हो गया तो उसे सब लोग मिलकर मार देते हैं. दो में से एक तो होगा. या तो आदमी मरेगा, या तो जानवर मरेगा.’

ग्रामीण इलाकों में कोई भी किसान, जो हिंदू है, गाय को मारना नहीं चाहता. इसलिए लोग जानवरों को बेचते थे और खरीद बिक्री के क्रम में अंतत: बेकार जानवर बूचड़खानों में चले जाते थे. अब वे बेकार जानवर किसानों की मुसीबत बने हैं.

हाल ही में भारतीय किसान यूनियन की किसान क्रांति यात्रा में शामिल किसानों ने भी यह समस्या गिनाई. यह यात्रा किसानों की विभिन्न मांगों को लेकर थी, जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य, किसान कर्ज़ माफी, बिजली, पानी, खाद आदि का मुद्दा प्रमुख था. लेकिन किसानों से बातचीत में वे आवारा जानवरों पर गुस्सा जताने से नहीं चूकते.

बागपत से आए एक किसान मोहन सिंह ने बताया, ‘एक तो पहले से खेती में इतनी तबाही है. रोज़ तेल का दाम बढ़ रहा है. रोज़ महंगाई बढ़ रही है. खाद महंगी, बिजली महंगी. उसके बाद जैसे तैसे खेती करो तो आवारा जानवर सब तबाह कर रहे हैं. यह सरकार किसानों की दुश्मन है.’

बैलों की उपयोगिता का सवाल

जानवरों की बेकारी का किसानों की उपयोगिता से सीधा संबंध है. पहले जहां हर घर में एक दो जोड़ी बैल होते थे, वहीं अब लोग ट्रैक्टर रखने लगे हैं. जो लोग खुद ट्रैक्टर नहीं रख सकते, वे किराये पर ट्रैक्टर से जुताई करवाते हैं. इसलिए अब बछड़ों को कोई नहीं पूछता. अब इनका कोई क्या करे. दूसरे, जरसी अथवा हाइब्रिड नस्ल के बछड़े खेती लायक भी नहीं होते. वे न खेत जोतने के काम आ सकते हैं, न उनसे कोई अन्य काम लिया जा सकता है. इन्हें वे किसान भी रखना पसंद नहीं करते जो बैलों से खेती करते हैं. ऐसे जानवरों को किसान क्यों पालना पसंद करेंगे जो किसी काम के न हों!

सुल्तानपुर के बेलसौना गांव के निवासी नागेंद्र सिंह ने फोन पर अपनी व्यथा सुनाई, ‘खेत की तो रखवाली करनी ही है, घर की भी रखवाली करनी है. रात में जानवरों का झुंड आ जाता है. घर के आसपास बंधे जानवरों को आवारा जानवर मारते हैं. तमाम नुकसान करते हैं. इससे बचने के लिए कई लोगों ने अपने घरों को तारों से या बाड़ लगाकर घेर दिया.’

प्रतापगढ़ के उदय कुमार मिश्रा ने बताया, ‘पब्लिक को मूर्ख बनाना था, वह बनाया जा रहा है. यूपी के बराबर जानवर किसी प्रदेश में नहीं होंगे. जब उन्हें कोई खरीदेगा नहीं, तो वे कहां जाएंगे? सरकार ने बूचड़खाने बंद करवा दिए लेकिन यह नहीं सोचा कि लाखों की संख्या में आवारा जानवरों का क्या किया जाएगा? ये जानवर अब पूरे प्रदेश में समस्या बन गए हैं.’

वरिष्ठ पत्रकार जानकी शरण द्विवेदी कहते हैं, ‘इस समस्या का सबसे महत्वपूर्ण कारण है कि अब बैलों और बछड़ों की उपयोगिता ख़त्म हो गई. अब कृषि कार्य में बैलों का इस्तेमाल न के बराबर है. एक गांव में एक या दो घरों में बैल मिलेंगे. पहले बैलों से ही जुताई होती थी, बैलगाड़ी में बैलों का इस्तेमाल होता था, फसलों की मड़ाई होती है. अब सब बंद हो गया. इसीलिए पशु बाज़ार बंद हो गए. मूल कारण तो ये है कि उनकी उपयोगिता खत्म हो जाना.’

अनुपयोगी जानवरों पर मेहनत कौन करेगा?

हिंदू मान्यता के अनुसार, गोहत्या बहुत बड़ा पाप है. इसलिए कोई भी किसान गाय को खुद नहीं मारना चाहता, लेकिन वे यह ज़रूर चाहते हैं कि ये आवारा जानवर न रहें. इसलिए वे कंटीले तारों की जगह ब्लेड वाले तार लगा रहे हैं. जानवर उसके किनारे आते हैं तो ब्लेड जहां तहां काट देता है. जानवरों को घाव होने के बाद ज़्यादातर ये होता है कि उनको कीड़े पड़ जाते हैं और वे सड़कर मर जाते हैं. जानकी शरण कहते हैं, ‘हिंदू मान्यता के मुताबिक, गोवंश को कोई ख़ुद मारना नहीं चाहता, लेकिन बेचारे दुखी हैं तो करें क्या. उनकी स्थिति समझनी चाहिए.’

खेती में जानवरों के घटते उपयोग से यह समस्या पैदा हुई कि बछड़े अनुपयोगी हो गए. इसके बाद सरकार ने जानवरों के कटने पर रोक लगाने और खरीद बिक्री बंद करने की नीति ने बेकार जानवरों की समस्या को और बढ़ा दिया. गोंडा के स्थानीय अध्यापक सूरज सिंह ने बताया, ‘पहले लोग बछड़ों को आवारा घूमने के लिए छोड़ रहे थे. लेकिन अब उन गायों को भी छोड़ रहे हैं जिन्होंने दूध देना बंद कर दिया है. गाय जब तक दूध देती है, तब तक रखते हैं फिर छोड़ देते हैं. पहले दूध बंद होने के बाद लोग गायों को बेच देते थे. अब वे उन्हें आवारा छोड़ देते हैं. अनुपयोगी जानवरों पर मेहनत कौन करेगा?’

समस्या और विकराल हो जाएगी

प्राचीन काल से भारत में लोगों का पशुओं से गहरा आपसी संबंध रहा है. खेती में उपयोगी और दुधारू पशु ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे हैं. पशुपालन से लेकर मांस उद्योग तक में लोगों को रोज़ी रोज़गार का बड़ा जरिया मिलता रहा है. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. एक तरफ छोटे मांस बाजार पर असर हुआ है तो दूसरी तरफ किसानों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है.

फसलों और किसानों के नुकसान का ज़िक्र करते हुए सूरज ने कहा, ‘आवारा जानवरों की वजह से किसानों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है. इन जानवरों से फसलों को बहुत नुकसान हो रहा है. किसानों के पूरे के पूरे खेत साफ कर दे रहे हैं. इन जानवरों का क्या किया जाए, यह किसी को नहीं सूझ रहा. साल दो साल में ही स्थिति बिगड़ गई है. अगर कुछ साल तक ऐसा ही रहा तो यह समस्या और विकराल हो जाएगी.’

लाखों आवारा जानवर, पांच सौ गोशालाएं 

उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री अगर मानते है कि समस्या 500 गौशाला बनने से दूर हो जाएगी तो या तो वे समस्या सुलझाने के बारे में गंभीर नहीं है या समस्या उनकी समझ के परे.

उत्तर प्रदेश में सिर्फ गोवंशीय पशुओं की दो करोड़ से अधिक आबादी है. इनमें से आवारा गायें, बैल, सांड़ अथवा बछड़ों की संख्या लाखों में है जो खुले छोड़ दिए गए हैं. लाखों पशुओं को सरकार पांच सौ गोशालाओं में कैसे रखेगी? अगर ग्रामीण इलाकों और फसलों में जानवर मुसीबत बन गए हैं तो यह मुसीबत सरकार की नीतियों से ही उपजी है. यदि सरकार लंबे समय में कोई उपाय कर भी ले तब भी यह सवाल बना हुआ है कि फिलहाल तबाह होती फसलों को बचाने के लिए सरकार क्या कर पाएगी?

 

share & View comments

1 टिप्पणी

Comments are closed.