नयी दिल्ली, नौ जनवरी (भाषा) रामपुर सहसवान घराने के उस्ताद राशिद खान की बेंत की तरह लचीली और गुरु गंभीर आवाज के यूं तो हजारों की संख्या में संगीत प्रेमी दीवाने थे , संगीत के मार्तण्ड पण्डित भीमसेन जोशी भी उनकी गायकी के मुरीद थे ।
राशिद खान न केवल शास्त्रीय गायन करते थे बल्कि उन्होंने बालीवुड की कुछ फिल्मों में भी अपनी आवाज दी थी। ‘जब वी मेट’ फिल्म के ‘आओगे जब तुम ओ साजना, अंगना फूल खिलेंगे’ गाने में उन्होंने दिखा दिया कि वह भले ही शास्त्रीय गायक हो किंतु फिल्मों के पार्श्वगायन में भी वे बेजोड़ हैं। उनके इस फिल्मी गाने को हर तरह के श्रोताओं ने जमकर सराहा था।
राशिद खान ने स्वयं अपने एक साक्षात्कार में इसका जिक्र किया था कि जब वह काफी युवा थे , तब एक बार पंडित भीमसेन जोशी ने अपने घर बुलाकर उनसे उनका गायन सुना था।
राशिद को यह भी सौभाग्य मिला कि उन्होंने भारत रत्न पण्डित भीमसेन जोशी के साथ राग मिया की तोड़ी पर मिलकर बंदिश गायी थी। राशिद खान ने आज अपने प्रशंसकों को गहरी निराशा में डालकर मात्र 55 वर्ष की आयु में अपनी संगीत यात्रा पूरी करते हुए अंतिम सांस ली।
वैसे तो राशिद खान अपनी ‘विलंबित ख्याल गायकी’ के लिए काफी प्रसिद्ध थे किंतु जब वह अपने संगीत कार्यक्रमों मे ठुमरी विशेषकर ‘याद पिया की आये’ पर जब तान छेड़ते थे तो श्रोता उनकी संगीत लहरी के आनंद में मानों बह जाते थे। उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मे खान ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने नाना उस्तार निसार खान से ली थी।
मात्र दस वर्ष की आयु में खान अपने नाना उस्ताद निसार हुसैन खान के साथ कोलकाता आ गये थे। राशिद खान ने महज 11 वर्ष की आयु से संगीत सम्मेलन में गाना शुरू कर दिया था। संगीत के कुछ गुर उन्होंने अपने दादा इनायत हुसैन खान से भी सीखे।
खान की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार वह संगीत सम्राट मियां तानसेन की 31वीं पीढ़ी हैं। राशिद खान की गायकी पर अपने रामपुर सहसवान घराने के अलावा उस्ताद आमिर खान एवं पण्डित भीमसेन जोशी की गायकी का प्रभाव बीच बीच में झलकता था। उनकी गायकी की विशिष्ट पहचान उनका तराना था जिसमें वह अपनी व्यक्तिगत छाप भी छोड़ते थे।
उन्होंने ‘माई नेम इज खान’, ‘इश्क’, ‘मंटो’, ‘मौसम’, ‘कादंबरी’ और ‘मितिन मासी’ जैसी फिल्मों के लिए भी पार्श्वगायन किया। उन्होंने प्रसिद्ध पश्चिमी वाद्य संगीतकार लुइस बैंक के साथ जुगलबंदी की। उन्होंने पंडित भीमसेन जोशी ही नहीं अपने दौर के सभी बड़े बड़े संगीतकारों एवं गायकों जैसे शाहिद परवेज, हरिहरन, कौशकी चक्रवर्ती आदि के साथ जुगलबंदी की थी।
खान बहुमुखी प्रतिभा के कलाकार थे। उनका रवींद्र संगीत पर आधारित एक अल्बम ‘बैठकी रबी’ आया था। इस अल्बम के रिलीज होने के अवसर पर उनहोंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि कोई संगीतकार जब तक रवीन्द्र संगीत नहीं गा लेता वह अपना दायरा या यात्रा पूरा नही कर सकता।’’
उन्होंने संगीत प्रतियोगिता पर आधारित कई टीवी शो में निर्णायक की भूमिका भी निभायी थी। उन्होंने पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से 2012 में ‘बंगभूषण सम्मान’ प्रदान किया गया था। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया था।
भाषा माधव मोना
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