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Friday, 22 November, 2024
होमदेशUPSC के कोचिंग गेम में शामिल हो रही हैं राज्य सरकारें- लेकिन बिजनेस नहीं, रणनीति है वजह

UPSC के कोचिंग गेम में शामिल हो रही हैं राज्य सरकारें- लेकिन बिजनेस नहीं, रणनीति है वजह

गुजरात से पश्चिम बंगाल और केरल से लेकर उत्तर प्रदेश तक, राज्य द्वारा संचालित यूपीएससी कोचिंग सेंटर अब भारत में 3,000 करोड़ रुपये के उद्योग का हिस्सा हैं. लेकिन वे खुलकर अपनी मार्केटिंग नहीं करते हैं.

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ग्रेटर नोएडा: भारत के यूपीएससी के प्राइवेट कोचिंग सेंटर्स का व्यवसाय लगभग 300 करोड़ रुपये का है और यहां पढ़ाने वाले ज्यादातर टीचर्स बड़े इन्फ्यूलेंसर्स बन गए हैं या फिर बड़े यूट्यूबर्स के तौर पर देखे जाते हैं. लेकिन इतनी ज्यादा फीस होने के कारण गरीब परिवारों से आने वाले छात्र इन कोचिंग्स से वंचित रह जाते हैं. अब, अधिक से अधिक राज्य सरकारें अपने यूपीएससी कोचिंग सेंटर चला रही हैं – व्यवसाय के रूप में नहीं, बल्कि बहुत सारे उम्मीदवारों में विविधता लाने के तरीके के रूप में. सेवारत आईएएस अधिकारियों द्वारा पढ़ाए जाने और फ्री स्टडी मटेरियल देने के बदले छात्रों से कोई फीस नहीं ली जाती.

और यह तरीका शायद काम कर रहा है.

20 साल की दीक्षा सिंह जेवर के रामपुर बांगर में मौजूद अपने घर से 2-3 किलोमीटर पैदल चलकर बस स्टॉप तक पहुंची हैं, जो उन्हें उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा मुख्यमंत्री अभ्युदय योजना के तहत शुरू किए गए नोएडा यूपीएससी कोचिंग सेंटर तक ले जाएगी.

दीक्षा सिंह कहती हैं, ‘मेरे पिता एक किसान हैं, और हमारा परिवार यूपीएससी के लिए प्राइवेट कोचिंग का खर्च नहीं उठा सकता है. मुझे 31 जुलाई 2022 को इस सरकारी योजना के बारे में पता चला और मैंने अगस्त में कक्षाएं लेनी शुरू की थी.’ दीक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय में डिस्टेंस से बी.कॉम की पढ़ाई कर रही हैं, जिससे समय की बचत होती है, इसलिए वह यूपीएससी की तैयारी पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं.

यूपीएससी कोचिंग के काम में प्रवेश करने वाला उत्तर प्रदेश पहला या एकमात्र राज्य नहीं है. पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान और केरल समेत भारत में 10 से अधिक राज्य या तो किफायती कोचिंग सेंटर चला रहे हैं या वंचितों को योग्यता-आधारित छात्रवृत्ति प्रदान कर रहे हैं.

महाराष्ट्र ने इसे 1976 में और केरल ने 1989 में शुरू किया था, दिल्ली, यूपी और कर्नाटक जैसे राज्य हाल के वर्षों में ही इस काम में शामिल हुए हैं.

मई 2022 में, यूपी ने नोएडा में कुल 500 छात्रों के साथ दो सेंटर्स खोले – एक ग्रेटर नोएडा में गौतम बुद्ध नगर विश्वविद्यालय परिसर में और दूसरा नोएडा में IIMT में. यहां से अभी किसी भी छात्र ने सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा नहीं दी है, लेकिन पिछले साल उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा के माध्यम से राज्य से 40 छात्र नामांकित हुए थे.

अभी शुरुआती दिन हैं, लेकिन सिंह जैसे उम्मीदवारों के लिए, सेंटर उन्हें भारत की सबसे प्रतिष्ठित और प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में से एक में लड़ने का मौका देता है.

इस तरह के संस्थान बड़े निजी यूपीएससी ट्यूशन उद्योगों को एक बहुत ही जरूरी प्रतिस्पर्धा दे रहे हैं, जो कोचिंग संस्थानों जैसे विजन आईएएस, दृष्टि, इनसाइट्स आदि सालों से बाजार पर हावी हैं.

सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी टीआर रघुनंदन कहते हैं, ‘सभी राज्य अपने राज्य से अधिक से अधिक छात्रों को सिविल सेवक बनते देखना चाहते हैं, और प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहते हैं. इसीलिए अब हर राज्य ऐसी योजनाओं के साथ आ रहे हैं.’

सप्ताह में पांच दिन, गौतम बुद्ध नगर विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में 200 से अधिक छात्र इकट्ठा होते हैं. अपने कंधों पर भारी बैग लटकाए, वे हॉल में फैले लाल कालीन पर नीले और पीले सोफे जैसी कुर्सियों की ओर जाते हैं.

20 वर्षीय रागिनी कुमारी ने कहा, ‘कभी-कभी, ऐसा लगता है कि हम एक सिनेमा हॉल में बैठे हैं और किसी बड़े कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं.’ साफ-सुथरे वॉशरूम और पीने की सुविधाएं भी यहां मौजूद हैं, लेकिन सबसे अहम शिक्षण की गुणवत्ता, जो सबसे अलग है, ‘बड़ी खिड़कियों वाले ऐसे आरामदायक एरिया में अध्ययन करना हमें अच्छा लगता है.’

दीक्षा सिंह की तरह, कुमारी ने अपने कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर इस सेंटर के बारे में पढ़कर अपना आवेदन भेजा था और जब उनका चयन हुआ तो वह रोमांचित हो गईं. आईआईएमटी के सेंटर जाने वाली दीक्षा सिंह को यकीन नहीं था कि कोचिंग इतनी अच्छी होगी.

वो कहती हैं, ‘क्योंकि यह मुफ़्त है, मैंने सोचा कि यह निजी कोचिंग कक्षाओं जितनी अच्छी नहीं होगी. लेकिन एक बार जब मैंने शुरुआत की, तो मैंने महसूस किया कि सरकार लगभग हर चीज को निजी कोचिंग से मिलाती है. एयर-कंडीशनर से लेकर बैठने की जगह तक, कुछ भी समझौते वाला नहीं लगता है.’

पढ़ाई की गुणवत्ता

लेकिन दोनों छात्रों के लिए, यहां शिक्षण की गुणवत्ता है जो सबसे अलग है. राजनीति विज्ञान की ऑनर्स की पढ़ाई कर रहीं रागिनी कुमारी ने टीचर्स के बारे में कहा, ‘वे हमारे संदेह दूर करते हैं और हमारे हर सवाल का जवाब देते हैं.’

अच्छे शिक्षक प्राप्त करना राज्य सरकारों के लिए एक चुनौती है. अभ्युदय योजना के तहत योगी सरकार ने यूपी के हर जिले में फ्री कोचिंग सेंटर शुरू किए हैं. 75 केंद्रों में से 70 वर्तमान में चालू हैं और भौतिक रूप से कक्षाएं आयोजित करते हैं, हालांकि कुछ हाइब्रिड मॉडल पेश करते हैं. जिला केंद्र में औसत छात्र नामांकन लगभग 50-100 है.

नोएडा के जिलाधिकारी सुहास एल.वाई, जो अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले दोनों केंद्रों की देखरेख करते हैं, मानते हैं कि वे अधिक से अधिक कुशल शिक्षकों को लाने की कोशिश कर रहे हैं.

‘एक सफल कोचिंग अपने शिक्षकों द्वारा महान बनती है. जानकारी आसानी से उपलब्ध है, लेकिन हम छात्रों को बताते हैं कि इससे कैसे संपर्क किया जाए.’

अभ्युदय के नोएडा जिला समन्वयक दीपांशु सिंह बताते हैं, ‘अभी के लिए, 100 से अधिक सबमिशन में से 20 प्रशिक्षकों को नोएडा के दो केंद्रों के लिए सूचीबद्ध किया गया है. प्रशिक्षक ‘प्रतिष्ठित’ संस्थानों से आते हैं. यह प्लेटफॉर्म न केवल यूपीएससी के लिए बल्कि अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे इंजीनियरिंग के लिए जेईई और मेडिकल उम्मीदवारों के लिए एनईईटी के लिए मुफ्त कोचिंग प्रदान करता है.

रिंकू सिंह, जिनके पास अनएकेडमी, ध्येय आईएएस और अन्य संस्थानों में आईएएस उम्मीदवारों को कोचिंग देने का अनुभव है, आईआईएमटी के सेंटर में पढ़ाती हैं, जहां से उनकी कमाई होती है. नोएडा सेंटर में पढ़ाने के लिए उन्हें 1.5 घंटे के लिए 2000 रुपये मिलते हैं. निजी कोचिंग संस्थान उन्हें इतने ही घंटों के लिए 5,000-10,000 रुपये तक का भुगतान करते हैं.

इतिहास, कला और संस्कृति पढ़ाने वाली रिंकू सिंह कहत हैं, ‘अभ्युदय में पढ़ाना एक अलग तरह की संतुष्टि देता है. ये बच्चे एक अच्छे शिक्षक के भी हकदार हैं, यूपीएससी की इस दौड़ में एक उचित मौका मिलना चाहिए.’

यूपी की अभ्युदय योजना शायद भारत में सबसे महत्वाकांक्षी सरकारी पहल है, लेकिन यह पहली नहीं है.


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विभिन्न मॉडल, विभिन्न राज्य

अधिकांश राज्य दो प्रकार के मॉडल का पालन करते हैं- एक जहां सरकार द्वारा संचालित संस्थानों में छात्रों को मुफ्त या सब्सिडी वाली कोचिंग दी जाती है. और दूसरा वह है, जहां एक निजी कोचिंग संस्थान में एक छात्र की फीस सरकार द्वारा प्रायोजित की जाती है. लेकिन यह पहला मॉडल है, जो सबसे अधिक प्रभाव डालता हुआ प्रतीत होता है.

उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में, छात्रों से मामूली रुपये लिए जाते हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा 2014 में शुरू किए गए सत्येंद्र नाथ टैगोर सिविल सर्विसेज स्टडी सेंटर में लगभग सालभर के पाठ्यक्रम के लिए उन बच्चों से 500-1,000 रुपये प्रति माह लिए जाते हैं, जिन्हें हॉस्टल सुविधा दी जाती है.

ज्यादातर बच्चे बक्खाली और बीरभूम जैसे ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं, और वे कभी भी निजी कोचिंग संस्थानों का खर्च वहन नहीं कर सकते थे, जो प्रति वर्ष लगभग 1.5-2 लाख रुपये सालाना है. फैकल्टी में खान स्टडी ग्रुप जैसे स्थापित कोचिंग संस्थानों के प्रशिक्षक शामिल हैं.

पाठ्यक्रम निदेशक और परिषद के सीईओ जितिन यादव ने कहा, ‘कोलकाता में हमारा एक ऑफ़लाइन केंद्र है जहां 200 छात्र नामांकित हैं.’ पश्चिम बंगाल के 22 जिलों में 26 छोटे ‘सेटेलाइट’ केंद्र हैं जहां सप्ताह में पांच दिन ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित की जाती हैं. इनमें से प्रत्येक केंद्र में लगभग 50 बच्चे नामांकित हैं.’

महाराष्ट्र और बंगाल जैसे अपने स्वयं के केंद्र चलाने वाले राज्यों में यूपीएससी प्रीलीम्स के समान प्रवेश परीक्षाएं होती हैं. उत्तर प्रदेश प्रवेश परीक्षा आयोजित नहीं करता है, लेकिन सिविल सेवा परीक्षा के लिए बुनियादी मानदंडों को पूरा करने वाले छात्रों को लेता है. प्राथमिकता योग्य शिक्षक प्राप्त करना, बुनियादी ढांचे में सुधार करना और अधिक छात्रों को आकर्षित करना है.

सुहास एलवाई ने कहा, ‘हमारे पास निजी कोचिंग जैसा कोई व्यावसायिक हित नहीं है. हम परिणाम चाहते हैं.’

कोचिंग उद्योग परीक्षा की तरह ही प्रतिस्पर्धी है, और छात्र ‘अच्छे’ संस्थानों में दाखिला लेना चाहते हैं. उन्होंने कहा, ‘एक बार नतीजे आने शुरू हो जाएंगे तो बच्चों की संख्या अपने आप बढ़ने लगेगी.’

राज्य सरकारों द्वारा अपनाया गया एक अन्य मॉडल गरीब और पिछड़े परिवारों के छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और प्रायोजित योजनाएं हैं. यह वह मार्ग है जिसे दिल्ली सरकार ने जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना के तहत अपनाया है, जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के साथ-साथ समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के छात्रों को प्रायोजित करती है.

अभ्युदय केंद्र, गौतम बुद्ध नगर विश्वविद्यालय में ओरिएंटेशन का दिन | विशेष व्यवस्था द्वारा फोटो

कोचिंग सेंटर चलाने के बजाय योजना, चयनित छात्रों के खर्चों का भुगतान करती है ताकि वे के डी कैंपस प्राइवेट जैसे शीर्ष सूचीबद्ध संस्थानों में दाखिला ले सकें. इसके रोल आउट के समय, दिल्ली सरकार ने 46 निजी कोचिंग सेंटरों के साथ भागीदारी की.

लेकिन जय भीम योजनाउतनी स्मूथ नहीं चली. पिछले साल, छात्रों ने यह कहते हुए विरोध किया कि उन्हें रुपये नहीं मिले हैं. 2,500 स्टाइपेंड जो मिलता था वो बच्चों तक नहीं पहुंचा, कई लोगों ने आरोप लगाया कि उन्हें उन कोचिंग संस्थानों को छोड़ने के लिए कहा गया था, जहां उन्हें सीट मिली थी क्योंकि सरकार ने बकाया भुगतान नहीं किया था.

2021 में राहुल तोमर दिल्ली सरकार की इस स्कीम के लिए चुने जाने पर बहुत खुश थे.

वो बताते हैं, ‘लेकिन फिर कुछ महीनों के बाद, कोचिंग वालों ने कहा कि उन्हें सरकार से पैसा नहीं मिला और हमारी कक्षाएं बंद कर दी गईं. अब मैं वीडियो देखकर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहा हूं और सेल्फ स्टडी कर रहाहूं.’

दिप्रिंट ने योजना को संभालने वाले अधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन खबर प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. शासन की वेबसाइट पर वर्ष 2023-24 को लेकर अभी कोई नई जानकारी साझा नहीं की गई है.

दिप्रिंट ने जिन सेवारत अधिकारियों से बात की, उन्होंने सिविल सेवाओं में राज्य के प्रतिनिधित्व का प्रतिशत बढ़ाने के लिए और अधिक सरकार प्रायोजित पहलों की आवश्यकता पर जोर दिया.

आईएएस अधिकारी अर्चना पंढरीनाथ वानखेड़े कहती हैं, ‘महाराष्ट्र सरकार की ओर से दी गई कोचिंग के परिणामस्वरूप IAS, IPS, IRS और अन्य सभी सेवाओं में मराठी लोगों के प्रतिशत में वृद्धि हुई है. हाल के बैचों में औसतन 10% आईएएस अधिकारी महाराष्ट्र से आते हैं.’

कटवा, पश्चिम बंगाल में उप-विभागीय अधिकारी के रूप में, IAS अधिकारी के दिन स्कूलों और छात्रावासों के दौरे, कुलपतियों के साथ बैठकें और सरकारी पहलों को शुरू करने से भरे होते हैं.

वानखेड़े ने महाराष्ट्र के आम्बेडकर प्रतियोगी परीक्षा केंद्र यशदा में पढ़कर अपना यूपीएससी पास किया-यह राज्य सरकार द्वारा संचालित एक प्रशासनिक प्रशिक्षण केंद्र है.

सिविल सेवाओं में शामिल होने के इच्छुक छात्रों को शिक्षित करने के लिए महाराष्ट्र भारत के पहले राज्यों में से एक था. इसने 1976 में स्टेट इंस्टीट्यूट फॉर एडमिनिस्ट्रेटिव करियर या SAIC लॉन्च किया, जो आज कोल्हापुर, अमरावती और औरंगाबाद सहित कई जिलों में प्री-आईएएस प्रशिक्षण केंद्र चलाता है.

यह पुणे में यशवंतराव चव्हाण एकेडमी ऑफ डेवलपमेंट एडमिनिस्ट्रेशन (YASHADA) ट्रेनिंग सेंटर भी चलाता है, जहां वानखेड़े ने पढ़ाई की थी.

‘मैंने 2016 में यशदा की प्रवेश परीक्षा पास की. मैंने वहां 7 महीने पढ़ाई की. वहां हमें लाइब्रेरी तक पहुंच मिली. यह एक सुरक्षित माहौल था और मुझे कई आईएएस अधिकारियों से मिलने का भी मौका मिला.’

निजी कोचिंग संस्थान आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखने वाले लाखों युवक-युवतियों को सफल छात्रों के चेहरे इस्तेमाल करते हैं. वे दिल्ली के करोल बाग और मुखर्जी नगर की सड़कों पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स में अपनी सफलता की कहानियां दिखाते हैं.

सरकार द्वारा संचालित कोचिंग संस्थान खुद की इतनी खुलकर मार्केटिंग नहीं करते हैं, लेकिन इस नैरेटिव का हिस्सा बनना चाहते हैं.

जितिन यादन कहते हैं, ‘इस सेंटर के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि यहां बच्चों को अधिक एक्सपोजर मिलेगा. यहां वे सीधे आईएएस अधिकारियों से मिलते हैं.’

द टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूपी सरकार की पहल में 500 से अधिक आईएएस, 300 आईपीएस और 450 से अधिक आईपीएस अधिकारियों के साथ-साथ शामिल हैं.

राज्य सरकारें इसे बेहतर बनाने का प्रयास कर रही हैं. वे छात्रों की मदद के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श भी प्रदान कर रहे हैं.

दीपांशु सिंह कहते हैं, ‘योजना की सबसे अच्छी विशेषताओं में से एक उम्मीदवारों को मार्गदर्शन करने के लिए सेवारत अधिकारियों और सेवानिवृत्त नौकरशाहों द्वारा प्रेरक व्याख्यान हैं. हाल ही में, हमने सेवानिवृत्त यूपीपीएससी अध्यक्ष जैसे प्रतिष्ठित पैनलिस्टों के साथ मॉक इंटरव्यू सत्र भी आयोजित किए और पूर्व आईएएस अधिकारियों से पूछेंगे और अपडेट करेंगे.’

यह नेटवर्किंग हब है और कभी-कभी व्यक्तिगत कनेक्शन के लिए एक जगह बन जाते हैं. अभ्युदय आईआईएमटी में पढ़ाने वाली प्रशिक्षक रिंकू सिंह को पता चला कि उनकी एक छात्रा उनके पड़ोस के एक सब्जी विक्रेता की बेटी थी.

रिंकु सिंह कहती हैं, ‘जब मैं सब्जियां लेने गई तो उसने मुझे अपनी बेटी के बारे में बताया लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह मेरे केंद्र में पढ़ती है. अब, मुझे लगता है कि मैं कुछ अच्छा कर रही हूं- एक पिता और बेटी के सपने को पूरा करना.’

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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