नई दिल्ली: संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) सिविल सेवा परीक्षा (सीएसई) 2022 में अखिल भारतीय रैंक (एआईआर) 2 हासिल करने वाली बिहार के बक्सर की 24 वर्षीय गरिमा लोहिया को उनके पिता की मृत्यु की कहानियों ने परेशान कर दिया है. फोन पर दिप्रिंट से बात करते हुए लोहिया ने बुधवार को कहा कि उनकी सफलता उनके पिता की मृत्यु के नुकसान से पहचानी नहीं जानी चाहिए.
उन्होंने कहा, “मेरे पिता के असामयिक निधन के इर्द-गिर्द मीडिया की कहानी मेरी इस सफलता को एक दुखभरी कहानी के रूप में पेश करती हैं. मैं आपको बताना चाहती हूं कि कठिनाइयों के बावजूद, मेरे पास मेरा समर्थन करने के लिए एक परिवार था और मैं नहीं चाहती कि मेरे पिता की मृत्यु मुझे परिभाषित करें.”
गरिमा के पिता मनोज कुमार लोहिया का 2015 में निधन हो गया था. वह अपने पीछे एक पत्नी और तीन बच्चे छोड़ गए थे. गरिमा ने कहा कि उनके निधन के बाद परिवार ने एक साथ मिलकर सभी परेशानियों का सामना किया और जरूरत के समय में एक-दूसरे का साथ दिया. गरिमा ने कहा कि उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और अपनी मां के अटूट समर्थन और दृढ़ संकल्प के साथ परीक्षा पास किया है.
तीन भाई बहनों में दूसरे नंबर की गरिमा ने कहा कि उनकी बहन ने 20 साल की उम्र में ही नौकरी करना शुरू कर दिया था ताकि वह परिवार का भरण-पोषण कर सके.
उन्होंने आगे कहा, “मैं हमेशा से पढ़ाई में अच्छी रही हूं. मेरी मां हमेशा चाहती थी कि हमको अच्छी शिक्षा मिले. मेरे पिता के गुजर जाने के बाद, मेरी बड़ी बहन ने परिवार को आर्थिक रूप से सहारा देने के लिए काम करना शुरू किया था. मेरी सफलता में परिवार के हर सदस्य का योगदान है.”
गरिमा ने कहा, हर बार जब वह परेशान होती थी या सिविल सेवा परीक्षा को पास करने के अपने सपने को छोड़ने का मन बना लेती थी, तो उनकी मां उनके पसंद का खाना बनाती थी.
उन्होंने कहा कि उनकी मां (51) उनके और समाज के तानों के बीच हमेशा एक दीवार की तरह खड़ी रहीं. “समाज ने हमेशा मुझे डिमोटिवेट करने की कोशिश की लेकिन मेरी मां ऐसी नकारात्मक बातों को मुझ तक आने भी नहीं देती थी.”
यूपीएससी ने सीएसई 2022 के अंतिम परिणाम मंगलवार को घोषित किए, इसमें गौतम बुद्ध नगर की इशिता किशोर ने पहली रैंक हासिल की, गरिमा लोहिया ने दूसरी और तेलंगाना की उमा हरथी ने तीसरी रैंक हासिल की.
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पहली बार असफल रही, दूसरी बार मिली सफलता
अब होर्डिंग्स और अखबारों पर अपना चेहरा लिए हुए गरिमा ने कहा कि कैसे पिछले साल इसी समय के आसपास वह बेहद उदास थी, जब वह सिविल सेवाओं के लिए प्रारंभिक परीक्षा पास नहीं कर पाई थी.
उन्होंने कहा, “मैं हमेशा से ही एक टॉपर रही हूं और इतनी बड़ी परीक्षा में असफल होने से मैं टूट गयी थी. मैं 20 दिनों तक बहुत रोइ. हालांकि, आत्मनिरीक्षण करने पर मुझे एहसास हुआ कि मैंने परीक्षा पर अपना पूरा फोकस नहीं लगाया था. मैंने चीजों को बदलने का फैसला किया और एक सख्त शेड्यूल के साथ शुरुआत की.”
गरिमा लोहिया ने कहा कि उन्होंने यूपीएससी के अधिकांश उम्मीदवारों की तरह हर दिन आठ घंटे पढ़ने का टारगेट बनाया, इसके अलावा यूपीएससी परीक्षा के समय तक अपने शरीर को सतर्क रहने के लिए प्रशिक्षित करने के लिए अपने सोने के समय में भी बदलाव किया. “मैं सुबह 4 बजे उठ जाती थी ताकि मेरा दिमाग उस दिन 9 बजे यूपीएससी एग्जाम में बैठने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाए. मैं सतर्क रहने के लिए दिन में आठ बार दो घूंट कॉफी पीती थी.”
दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट गरिमा को पता था कि परीक्षा में सफल होने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत और अपने सोने के समय में भी बदलाव की आवश्यकता है.
गरिमा ने महसूस किया कि इंटरव्यू के दौर में बड़े शहरों और अधिक समृद्ध पृष्ठभूमि से अपने समकालीनों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए उन्हें अपने बोलने के तरीके पर काम करना पड़ेगा. इसके लिए उन्होंने किरोड़ीमल कॉलेज से अपने सीनियर्स और सहपाठियों की मदद मांगी.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि “मुझे पता था कि मेरी भाषा में थोड़ा सा बिहारी लहजा है और मैं बोलते वक्त ज्यादा कॉन्फिडेंट मेहसूस नहीं करती हूं. मैंने अपने दोस्तों के साथ कई मॉक इंटरव्यू किए. इन मॉक के फीडबैक से मुझे एहसास हुआ कि जब तक मैं कॉन्फिडेंट हूं, तब तक मेरे लहज़े का कोई महत्व नहीं हैं.”
गरिमा ने कहा कि वह अभी भी पश्चिमी बिहार में अपने गृहनगर में रहती हैं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक बच्चों की मदद करना चाहती हैं.
“ज्यादातर छात्र सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए बड़े शहरों में चले जाते हैं. लेकिन मेरी सफलता से मेरे पड़ोस के बच्चे मेरे घर आ रहे हैं और मुझे बता रहे हैं कि वे मेरे जैसा बनना चाहते हैं. मैं उनके सपनों को पूरा करने में उनकी मदद करने की पूरी कोशिश करूंगी.”
(संपादन: अलमिना खातून)
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