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Sunday, 3 November, 2024
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‘डर, निराशा और पछतावा’ किस राह जाते हैं UPSC में सफल न होने वाले एस्पिरेंट्स

दिप्रिंट ने कुछ ऐसे ही स्टूडेंट्स से बात की जो सपनों और उम्मीदों के साथ तैयारी शुरू करते हैं, सारे अटेंप्ट देते हैं, कुछ इंटरव्यू तक भी पहुंचते हैं लेकिन चुने नहीं जाते हैं.

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रजत साम्ब्याल जम्मू से एक सपना लेकर दिल्ली आए थे और सपना था- यूपीएससी. लेकिन इस साल में जब रिजल्ट आया तो उनका यह सफर खत्म हो गया. 6 फेल्ड अटेंप्ट, अधूरी नींद में बिताए साल और बेचैनी से भरी रातें, उनकी इस यात्रा में ये सब उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया था. लेकिन कुछ आदते ऐसी होती हैं जो छूटे नहीं छूटती हैं. रजत अब भी यूपीएससी के हब ओल्ड राजेंदर नगर में रहते हैं. वो अब भी उसी हवा में सांस ले रहे हैं और उस रूम मेट के साथ रह रहे हैं जो अब भी यूपीएससी की तैयारी कर रहा है.

यूपीएससी 2021 के रिजल्ट के दिन को याद करते हुए रजत कहते हैं, ‘मैं नंब पड़ गया था. मैंने किसी से बात नहीं की थी. मैंने वो ट्वीट किया और सोने चला गया.’

रजत का किया यह ट्वीट खूब वायरल तो हुए लेकिन यह वो ट्वीट नहीं था जो उन्होंने अपने दिमाग में सोचकर रखा था. पीईसी यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, चंडीगढ़ से बीई (सिविल इंजीनियरिंग) करने वाले रजत को भरोसा था कि इस बार वो परीक्षा में सफल होंगे और अपनी सफलता की घोषणा के लिए उन्होंने एक ट्वीट तैयार करके रखा था.

’10 साल की मेहनत अब जाकर खत्म हुई. यूपीएससी के 6 प्रयास खत्म. 3 बार प्रीलिम्स फेल. 2 बार मेन्स फेल. अपने आखिरी प्रयास में, मैंने अब सिविल सर्विसेज क्लियर कर लिया है.’

लेकिन असल में उन्होंने यह ट्वीट किया, ’10 साल की मेहनत अब जाकर राख हो गई. यूपीएससी के 6 प्रयास खत्म. 3 बार प्रीलिम्स फेल. 2 बार मेन्स फेल. अपने आखिरी अटेंप्ट में मैं इंटरव्यू में कम नंबर आने की वजह से चूक गया. 11 नंबर से रह गया. लेकिन आई स्टिल राइज.’

अब रजत के लिए बड़ा सवाल है- आगे क्या?

रजत अकेले नहीं है जो इस सवाल का सामना कर रहे हैं. भारत के कई सैकड़ों-हजारों नौजवान यूपीएससी के लिए आगे बढ़ते हैं और सफल नहीं हो पाते. उनके जोश, मेहनत से की गई तैयारी पर तो व्यापक रूप से बात की जाती है लेकिन नकारात्मक परिणाम आने के बाद जो कुछ वो झेलते हैं उस पर कोई बात नहीं करता. एकांत, शर्म और सम्मान की लड़ाई. इन सभी को साथ लिए वे आगे की लड़ाई लड़ते हैं.

ऐसे एस्पिरेंट्स अभी अपने बर्बाद हुए सालों को देखते हैं. साल जो उनके जीवन का सबसे अच्छा समय हो सकते थे, उन्होंने खो दिए. कुछ इस सफर में अपने दोस्त, अपना प्यार तक खो बैठे. फिर अपने पैरों पर खड़े होकर जिंदगी को पटरी में लाने में उन्हें समय लगा.

हर साल लगभग 11 लाख उम्मीदवार यूपीएससी परीक्षा के लिए आवेदन करते हैं. लेकिन केवल कुछ सौ यानी 0.01 प्रतिशत से कम सफल हो पाते हैं. 2019 में, 8 लाख से ज्यादा छात्रों ने प्रीलिम्स के लिए आवेदन किया और केवल 11,845 छात्र मेन्स के लिए उपस्थित हुए, 2,034 ने इंटरव्यूर में जगह बनाई, और केवल 927 ने भारत की सिविल सेवाओं की प्रतिष्ठित दुनिया में प्रवेश किया. 2020 में यह आंकड़ा घटकर 761 सिविल सेवकों और फिर 2021 में 712 पर आ गया. कोचिंग संस्थानों के आकर्षक होर्डिंग से लेकर समाचार रिपोर्टों और मीडिया इंटरव्यू से लेकर घरेलू बातचीत तक, यूपीएससी टॉपर्स और ‘अचीवर्स’ की यात्रा को बहुत विस्तार से बताया गया है. शायद ही कभी हम उन लोगों के संघर्षों के बारे में सुनते हैं जो यूपीएससी के आखिरी पड़ाव पर आकर लड़खड़ा जाते हैं.

जिस दौरान रजत अपने भविष्य के लिए रास्ते तलाश कर रहे हैं. वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें उनके रास्त मिल चुके हैं.

‘दोस्त खो दिए, प्यार खो दिया’

यूपीएससी की तैयारी में 8 साल बिताने वाले अमित किल्होर ने कहते हैं, हम यह तैयारी ऐसे समय में शुरू करते हैं जिस दौरान हममें सबसे ज्यादा जोश होता है. यूपीएससी के अपने सफर में मैंने अपने दोस्त खो दिए, अपना प्यार खो दिया. लेकिन यह भी सच है कि आज मैं जो कुछ भी हूं इस सफर के कारण ही हूं.’

अमित ने यूपीएससी के छह अटेंप्ट दिए जिस दौकान उन्होंने 6 मेन्स लिखे और दो इंटरव्यू दिए.

अमित ने बताया, ‘रिजल्ट के बाद के दो हफ्ते निराशा में बीते. धीरे-धीरे मैंने हिम्मत जुटाई. मैं लकी रहा. लेकिन सबकी किस्मत ऐसी नहीं होती.’ अमित फिलहाल स्टडीआक्यू में एक टीचर के तौर पर काम कर रहे हैं और दूसरे एस्पिरेंट को पढ़ाने का काम करते हैं.

प्रियंवदा का सफर थोड़ा अलग था. उन्होंने न एग्जाम के प्रेशर के कारण होने वाले डिप्रेशन से संघर्ष किया, बल्कि उसे समाज के साथ भी लड़ाई लड़ी. वो कहती हैं, ‘एक तरफ, मैं परीक्षा पास नहीं कर पा रही थी, और दूसरी तरफ, शादी करने के लिए पारिवारिक दबाव था. मुझे दवाएं लेनी पड़ीं.’

साल 2020 में वह आगे की पढ़ाई के लिए लंदन चली गईं.


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डिप्रेशन के साथ समाज से लड़ाई

वह कहती हैं, ‘डिप्रेशन से बाहर आने के बाद, जब मैंने पहली बार अपनी किताबें खोली तो मुझे कुछ भी याद नहीं आया जो मैंने पहले पढ़ा था. यह मेरे लिए बहुत डरावना था. लेकिन मैं उस नर्क से बाहर आ गई. मैंने शादी नहीं की. अब मेरे जीवन का स्टीयरिंग व्हील मेरे हाथ में है. कभी-कभी मुझे खुद को यह याद दिलाना पड़ता है.’

प्रियमवदा अब भारत लौट आई हैं और विश्व वन्यजीव कोष के साथ काम कर चुकी हैं. उन्होंने असम, अरुणाचल प्रदेश आदि के दूरदराज के इलाकों की यात्रा की. वो कहती हैं कि उनके पास विदेश में रहकर नौकरी करने के अवसर थे लेकिन उन्होंने अपन देश में काम करने का फैसला किया.

जहां तैयारी के वर्षों के दौरान अमित ने अपनी निडरता खो दी, वहीं प्रियंवदा ने कहा कि यूपीएससी परीक्षा में असफल होने के बाद वह निडर हो गई हैं.

वो कहती हैं, ‘कोई भी एक चीज आपका सारा जीवन नहीं हो सकती. मैंने बहुत संघर्ष किया और अब निडर होकर जिंदगी जी रही हूं.’

मेंटल हेल्थ

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि पूरे भारत में लगभग 12-13 प्रतिशत छात्र मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और व्यवहार संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं.

इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलाइड साइंसेज (आईएचबीएएस), नई दिल्ली के प्रोफेसर ओम प्रकाश कहते हैं कि उनके पास काउंसलिंग के लिए आने वाले यूपीएससी एस्पिरेंट अक्सर निगेटिव रिजल्ट के बाद खुद को अकेला कर लेते हैं. वो कहते हैं, ‘अक्सर वो नशे की तरफ चले जाते हैं, खुद को अकेला कर लेते हैं. उनके लिए सबसे जरूरी बात यह स्वीकार करना है कि यह सिर्फ एक परीक्षा है, जीवन का अंत नहीं. अगर चीजें ज्यादा बिगड़ती हैं, तो डॉक्टर से सलाह लें. अकेले न रहे.’

नोएडा स्थित रेनोवा केयर के मनोचिकित्सक डॉ प्रवीण त्रिपाठी कहते हैं, ऐसे बच्चों के लिए, केवल एक चीज मायने रखती है कि वे परीक्षा पास कर लें और कुछ नहीं है. जब वे ऐसा नहीं कर पाते तो खुद को सबसे अलग कर लेते हैं.

अमित कहते हैं, हर फेलियर के साथ घर से पैसे लेने का दबाव थोड़ा बढ़ जाता था.’

वो कहते हैं,’ कोई भी इन नोजवानों के बारे में नहीं सोचता है जो इस क्रूर प्रक्रिया से गुजरे हैं. यूपीएससी की तैयारी वाकई में आपको बेहतर इंसान बनाती है लेकिन अगर आपका चयन नहीं होता है तो तो उस सारी पढ़ाई की कोई मार्केट वैल्यू नहीं रह जाती.’

अमित कहते हैं, ‘आप चार साल तक इंजीनियरिंग पढ़ाई करते हैं तो आपको डिग्री मिलती है लेकिन अगर आपने 10 साल तक यूपीएससी की तैयारी की है तो आपके पास डिग्री नहीं होगी. जब अटेंप्ट्स खत्म हो जाएंगे तो आप प्रोसेस से बाहर हो जाएंगे. सरकार ऐसे नौजवानों को खाली हाथ समाज में भेज देती है.’

यूपीएससी एस्पिरेंट के लिए दूसरे मौके

परीक्षा में असफल होने वाले उम्मीदवारों के ‘तनाव और पीड़ा को कम करने’ के एक तरीके के रूप में, तत्कालीन यूपीएससी अध्यक्ष अरविंद सक्सेना ने 2019 में केंद्र सरकार से अन्य संस्थानों में नौकरियों के लिए इंटरव्यू के चरण तक पहुंचने वाले असफल उम्मीदवारों पर विचार करने की सिफारिश की थी.

भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण ने ऐसे उम्मीदवारों को साक्षात्कार के दौर में सीधे प्रवेश देकर उनके दरवाजे खोल दिए. इस साल, IFSCA ने आठ ऐसी वैकेंसी निकाली गई हैं.

इसी प्रक्रिया के तहत चुने गए नीतीश गर्ग स्पॉर्ट्स अथ्योरिटी ऑफ इंडिया में असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम करते हैं. नीतीश पहले यूपीएससी इंटरव्यू दे चुके हैं जिसके आधार पर उन्हें यह नौकरी मिली है.

SAI में काम करने वाले नीतीश गर्ग कहते हैं,’साल 20219 में मैं इंटरव्यू में 10 नंबर कम रहने की वजह से लिस्ट में आने से रह गया था. जिसके आधार पर मैंने SAI में इंटरव्यू दिया. जो बच्चे यूपीएससी इंटरव्यू में 10-15 नंबर से रह जाते हैं उन्हें यहां सीधे इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है. उसके बाद यहां मेरा चयन हो गया. मैं अब इस नौकरी के साथ-साथ स्टेट सर्विस की तैयारी कर रहा हूं.’

लेकिन अमित का कहना है कि यह नई व्यवस्था काफी नहीं है. वास्तविक समस्या अभी भी वही है: भारत के युवा बड़ी संख्या में निराश हैं क्योंकि देश में नौकरियों की भारी कमी है.

इस समस्या की तरह दूसरी चीज जो वैसी ही है वो है रजत की दिनचर्या. वह आज भी ओल्ड राजिंदर नगर स्थित अपने फ्लैट में उठते हैं. वह अभी भी अपने माता-पिता से पैसे लेते है. हालांकि उन्होंने अपनी किताबें अलमारी में बंद कर रखी हैं, लेकिन फिर भी वे यूपीएससी की दुनिया से खुद को दूर नहीं कर पाए हैं.

ऐसा ही है. यूपीएससी के खुद को अलग कर पाना इतना आसान नहीं है. इसी पर नीतीश गर्ग कहते हैं, ‘यूपीएससी एक ऐसा चक्रव्यूह है. जिसमें एक बार अंदर जाने के बाद, आप आसानी से बाहर नहीं निकल पाएंगे. लेकिन यह तैयारी आपको एक स्मार्ट इंसान बनाती है. यूपीएससी की तैयारी के बाद आप भले ही सिलेक्ट न हों, लेकिन आप खाली हाथ नहीं लौटते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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