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Saturday, 4 October, 2025
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UPSC ने उम्मीदवारों की एक बड़ी मांग को स्वीकार किया, प्रिलिम्स के बाद जारी होगी आंसर-की

सिविल सेवा के एक समूह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, यह तर्क देते हुए कि पूरी भर्ती प्रक्रिया के बाद अंतिम उत्तर कुंजी जारी करने की प्रथा उम्मीदवारों को गलतियों को चुनौती देने का उचित मौका नहीं देती.

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नई दिल्ली: संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने अब सहमति दे दी है कि प्रिलिम्स के तुरंत बाद अस्थायी उत्तर कुंजी (प्रोविजनल आंसर-की) जारी की जाएगी, न कि पूरे परीक्षा चक्र के अंत में. फिलहाल, उम्मीदवारों को फाइनल आंसर-की के लिए लगभग एक साल इंतजार करना पड़ता है.

लेकिन 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में, UPSC ने प्रोविजनल आंसर-की जारी करने पर सहमति दी — यह एक अहम नीति बदलाव है और कुछ ऐसा जिसकी लंबे समय से UPSC उम्मीदवार मांग कर रहे थे.

सिविल सेवा के कुछ उम्मीदवारों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी कि UPSC अपनी प्रारंभिक परीक्षा की आंसर-की टेस्ट के तुरंत बाद प्रकाशित करे. उनका कहना था कि वर्तमान प्रथा — पूरी भर्ती प्रक्रिया के बाद ही फाइनल आंसर-की जारी करना — उम्मीदवारों को गलतियों को चुनौती देने का उचित मौका नहीं देती और मैनस से गलत तरीके से बाहर होने का कारण बन सकती है.

यह याचिका वकील राजीव दुबे ने दाखिल की थी. कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता को अमिकस क्यूरी के रूप में नियुक्त किया था. जस्टिस पी.एस. नरसिंहमा की अध्यक्षता वाली बेंच 14 अक्टूबर को मामले की सुनवाई कर सकती है.

“प्रारंभिक परीक्षा आयोजित होने के बाद प्रोविजनल आंसर-की प्रकाशित की जाएगी. उम्मीदवारों से प्रतिनिधित्व/आपत्ति मांगी जाएगी. प्रत्येक प्रतिनिधित्व/आपत्ति तीन प्रामाणिक स्रोतों से समर्थित होनी चाहिए. प्रोविजनल आंसर-की और आपत्तियां विशेषज्ञों की टीम के सामने रखी जाएंगी,” UPSC के हलफनामे में लिखा है.

हलफनामे के अनुसार, उम्मीदवार आपत्ति उठा सकते हैं अगर उन्हें किसी उत्तर में गलती लगे. लेकिन, हर आपत्ति को तीन भरोसेमंद स्रोतों (जैसे मानक पाठ्यपुस्तक या शोध पत्र) से प्रमाणित होना चाहिए. यदि कोई प्रमाण नहीं दे सकता, तो उसकी आपत्ति पर विचार नहीं किया जाएगा.

सभी मान्य आपत्तियां और प्रोविजनल आंसर-की विषय विशेषज्ञों की एक पैनल को भेजी जाएगी, जो उन्हें ध्यानपूर्वक जांचेंगे. उनकी समीक्षा के आधार पर विशेषज्ञ अंतिम उत्तर कुंजी तैयार करेंगे, जिसका उपयोग परीक्षा के परिणाम तय करने के लिए किया जाएगा.

ज्यादातर UPSC उम्मीदवार इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं. शिक्षक और पूर्व UPSC उम्मीदवार केतन ने कहा, “यह सबसे अधिक मांग वाला सुधार था, क्योंकि अधिकतम उम्मीदवार प्रिलिम्स में ही बाहर हो जाते हैं, यह स्पष्ट नहीं होता कि वे कहां गलत हुए, और आंसर-की एक साल बाद जारी होती थी. इसलिए इस सुधार को उम्मीदवारों का बहुत समर्थन मिलेगा.”

लेकिन कुछ उम्मीदवारों का कहना है कि अभी भी कुछ समस्याएं हैं. UPSC उम्मीदवार सुभोध सिंह ने कहा, “प्रोविजनल आंसर-की से चीजें अधिक पारदर्शी होती हैं. लेकिन जोखिम अभी भी है — अगर अधिकांश विचार पर्याप्त प्रतिनिधित्व से समर्थित नहीं हैं, तो UPSC अभी भी गलत तस्वीर देख सकता है.”

अपनी पिछली हलफनामा में, मई में, UPSC का रुख अलग था. आयोग ने कहा था कि प्रिलिम्स इवेलूएशन प्रोसेस में पारदर्शिता की कमी या प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन नहीं है. उसने यह भी कहा था कि शॉर्टलिस्टिंग का मापदंड — मैनस में रिक्तियों की संख्या के 12–13 गुना उम्मीदवारों को स्वीकार करना — आधिकारिक नोटिफिकेशन में स्पष्ट रूप से दिया गया है, साथ ही वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के अंकन योजना भी.

“यह स्पष्ट है कि न तो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है और न ही परिणाम तैयार करने और घोषित करने की प्रक्रिया में कोई अस्पष्टता है,” पिछली हलफनामे में लिखा था.

आयोग ने यह भी बताया कि प्रिलिम्स केवल एक स्क्रीनिंग परीक्षा है और उस चरण में प्राप्त अंक अंतिम चयन में नहीं गिने जाते. सुप्रीम कोर्ट के पहले के निर्णय अशोक कुमार यादव बनाम हरियाणा राज्य (1985) का हवाला देते हुए, UPSC ने कहा कि उम्मीदवार मूल्यांकन पद्धति से पहले से अवगत थे और प्रक्रिया पर्याप्त पारदर्शी थी.

नए हलफनामे में बदलाव दिखाई देता है. UPSC अब सहमत है कि प्रिलिम्स के तुरंत बाद अस्थायी उत्तर कुंजी प्रकाशित की जाएगी, जिससे उम्मीदवार प्रामाणिक स्रोतों से समर्थित आपत्तियां जमा कर सकेंगे, जिन्हें अंतिम रूप देने से पहले विषय विशेषज्ञ देखेंगे.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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