लखनऊ: बढ़ती माॅब लिंचिंग की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए यूपी लाॅ कमीशन की ओर से योगी सरकार को 128 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी है. इस रिपोर्ट में राज्य में पिछलेदिनों हुए मॉब लिंचिंग के विभिन्न मामलों का उल्लेख किया गया है और 2018 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर कानून को तत्काल लागू करने की अनुशंसा की गई है. जिसमें ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वालों पर भारी जुर्माना लगाने के साथ-साथ उन्हें आजीवन कारावास की सजा भी दिए जाने की बात कही गई है.
क्या है रिपोर्ट में
रिपोर्ट में माॅब लिंचिंग के मुद्दे को मौजूदा वक्त का बेहद गंभीर मुद्दा बताया गया. इसमें झारखंड समेत देश के तमाम राज्यों में हुईं लिंचिंग की घटनाओं की मीडिया कवरेज को भी लगाया गया है. इसमें जिला स्तर के अखबार की कटिंग भी शामिल हैं. वहीं माॅब लिंचिंग पर चल रहे कोर्ट केस का भी जिक्र है. यही नहीं उत्तर प्रदेश की स्थिति और कानून के बारे में भी बताया गया है.
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लिंचिंग के 50 में 25 मामले गोरक्षा से जुड़े
लाॅ कमिशन की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2012 से 2019 से आंकड़ों पर नजर डालें तो यूपी में मॉब लिंचिंग के 50 मामले हुए हैं. इसमें 11 की मौत हो गई. 25 बड़े मामलों में गोरक्षकों द्वारा हमले भी शामिल थे. इसमें दादरी में अखलाक की हत्या का मामला बहुचर्चित रहा जिसके बाद माॅब लिंचिंग की घटनाएं लगातार होने लगीं. कानून आयोग की सचिव सपना चौधरी का कहना है कि आयोग ने गहराई से अध्ययन करने के बाद इस जरूरी कानून की सिफारिश की. इस रिपोर्ट में गोमांस की खपत के संदेह में मोहम्मद अख़लाक की 2015 की हत्या सहित राज्य में लिंचिंग और भीड़ हिंसा के विभिन्न मामले शामिल किए गए हैं.
अख़लाक और सुबोध सिंह की हत्या रही थी चर्चा में
यूपी में माॅब लिंचिंग की घटनाएं फरुखाबाद, दादरी, उन्नाव, कानपुर, हापुड़ और मुजफ्फरनगर जिलों में हुई हैं. लॉ कमीशन की सचिव सपना त्रिपाठी के मुताबिक, इन्हीं घटनाओं के मद्देनजर आयोग ने इस पर स्वत: संज्ञान लेते हुए अध्ययन किया और रिपोर्ट सरकार को सौंपी. इसमें यूपी के दादरी में बीफ खाने के संशय में 2015 में मोहम्मद अखलाक की भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या के साथ-साथ दिसंबर 2018 में यूपी के बुलंदशहर में गोवंश के अवशेष मिलने के बाद उग्र भीड़ और पुलिस के बीच झड़प में इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की मौत को भी शामिल किया गया है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मौजूदा वक्त में केवल मणिपुर में ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए विशेष कानून है.
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लाॅ कमिशन के सुझाव
लाॅ कमिशन ने घटनाओं का जिक्र करने के बाद इससे निपटने के कई सुझाव भी दिए हैं. लाॅ कमिशन के मुताबिक इसके कानून को उत्तर प्रदेश मॉब लिंचिंग निरोध अधिनियम कहा जा सकता है और इसके तहत पुलिस अधिकारियों और जिला अधिकारियों और जिला अधिकारियों की जिम्मेदारियों का निर्धारण होने के साथ-साथ ड्यूटी करने में असमर्थ होने पर उन्हें दंड का प्रावधान भी दिया गया हो. रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है इन घटनाओं में पुलिस भी शिकार बन रही है क्योंकि लोग उन्हें अपना दुश्मन समझने लगे हैं. पैनल ने मसौदा विधेयक तैयार करते समय विभिन्न देशों और राज्यों के कानूनों और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का अध्ययन किया. ऐसे मामलों में साजिश, सहायता या अपमान, कानूनी प्रक्रिया में बाधा डालने के लिए सजा का सुझाव दिया गया है.
Uttar Pradesh Law Commission Chairman Justice (Retd.) AN Mittal: Mob lynching incidents are increasing in the country. The Commission did a study on it & submitted a report to CM suggesting as to how to stop such incidents from happening & not only punishing the culprits. pic.twitter.com/eNAWUESTps
— ANI UP (@ANINewsUP) July 11, 2019
यूपी लॉ कमीशन के चेयरमैन जस्टिस (रिटायर्ड) एएन मित्तल ने कहा, ‘देश में मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ रही हैं.आयोग ने इस पर अध्ययन किया है और रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी है कि ऐसी घटनाओं को किसी पर रोका जाए और दोषियों को सजा दी सके.’ उन्होंने यह कहा कि रिपोर्ट में इस बात की अनुशंसा की गई कि ‘मॉब लिंचिंग’ की घटनाओं में अगर किसी शख्स की जान चली जाती है तो ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वालों पर भारी जुर्माना लगाने के साथ-साथ उन्हें आजीवन कारावास की सजा भी दी जानी चाहिए.