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Thursday, 19 December, 2024
होमदेशकहते हैं नाम में क्या रखा है पर यूपी का यह गांव जानता है 'कोरौना' होने का दर्द

कहते हैं नाम में क्या रखा है पर यूपी का यह गांव जानता है ‘कोरौना’ होने का दर्द

गांंव का नाम कोरौना होने से आसपास के लोग इसे कोरोनावायरस से जोड़कर देख रहे हैं. आए दिन ग्रामीणों को गांव के नाम पर तंज सुनने को मिलते हैं.

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लखनऊ: कोरोनावायरस के बढ़ते संक्रमण के बीच यूपी की राजधानी लखनऊ से लगभग 80 किमी दूर सीतापुर जिले का ‘कोरौना’ गांव इन दिनों चर्चा का विषय बना है. इस गांव में फिलहाल कोई कोविड-19 पाॅजिटिव तो नहीं मिला लेकिन फिर भी ग्रामीणों में भेदभाव का डर है. गांंव का नाम कोरौना होने से आसपास के लोग इसे कोरोनावायरस से जोड़कर देख रहे हैं. आए दिन ग्रामीणों को गांव के नाम पर तंज सुनने को मिलते हैं.

नाम के कारण हो रहा भेदभाव

गांव के निवासी 20 वर्षीय पुष्पेंद्र सिंह बताते हैं कि आसपास के गांव में जब भी किसी को बताओ की कोरौना गांव के रहने वाले हैं तो वह दूरी बना लेता है. लोग कहते हैं दूर ही रहो. उन्हें लगता है कि कहीं हम भी कोरोना पाॅजिटिव तो नहीं. वहीं 38 साल के किसान राम कुमार कहते हैं कि कई लोगों को गांव का नाम सुनकर लगता है कि यहां कोरोना फैला है लेकिन ऐसा नहीं है. सब लोग स्वस्थ्य है. वह बताते हैं कि लाॅकडाउन की शुरुआत में जब गांव के बाहर  पुलिस आई तो उन्होंने एक पुलिस वाले को बताया कि कोरौना गांव है तो वह इसे मजाक समझने लगा. हालांकि बाद में उन्होंने प्राइमरी स्कूल के साइन बोर्ड पर ‘कोरौना’ लिखा देखा तो यकीन माना.

इसी तरह गांव के युवक रमेश पांडे कहते हैं कि कुछ पुलिस वालों को शुरुआत में लगता था कि हम उनसे मजाक कर रहे हैं. वे शुरुआत में जब लाॅकडाउन का पालन करने की सलाह देने आते थे तो हम लोगों से गांव के नाम के बारे में पूछते थे कि कैसे ये नाम रखा गया. कई बार तो फोन पर किसी को बताओ की ‘कोरौना’ से बोल रहे हैं तो लोग फोन काट देता है. हाल ही में उन्होंने अपनी फसल काटने के लिए कुछ दूसरे गांव के मजदूरों से संपर्क किया तो उन्होंने गांव का नाम सुनते ही मना कर दिया. हालांकि गांव के कुछ बुजुर्ग बताते हैं कि गांव के नाम की स्पेलिंग को लेकर लोगों में कन्फ्यूजन है. लोग ‘कोरौना’ को कोरोना समझ लेते हैं. इसी भय के कारण गांव के किनारे कोई अपनी दुकान भी यहां आसपास जरूरी सामान के लिए खोलने से डर रहा है. उनके मन में भी भय होगा.

कोरौना गांव का मेडिकल स्टोर | फोटो- सुमित कुमार

गांव में एक मेडकल स्टोर जरूर खुलता है लेकिन दूसरे गांव के लोग यहां नहीं दिखते.

नहीं है कोई भी कोविड-19 पाॅजिटिव

सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक सीतापुर जिले में अब तक 13 कोविड-19 पाॅजिटिव मामले मिले हैं लेकिन इनमें कोरौना गांव से कोई नहीं है. गांव के लोग बताते हैं कि बाहर से आए लोगों को जिले की सीमा पर रोककर ही क्वारंटाइन कर दिया गया है. वहीं गांव में भी प्रधान समेत दूसरे लोगों ने सबसे लाॅकडाउन का पालन करने की अपील की है. साथ ही गांव के नाम को लेकर किसी भी तरह का संशय मन में न रखें. इसका वायरस से कुछ लेना देना नहीं है.

गांव में कुछ लोग मास्क लगाए जरूर दिखे लेकिन अधिकतर लोग गमछा व रुमाल को मास्क के तौर पर पहने नजर आए.

वहीं जिला प्रशासन के अधिकारियों ने भी गांव में घूमकर लोगों से सावधानियां बरतने की अपील की है. साथ ही किसी भी तरह की दिक्कत आने पर हेल्पलाइन नंबर पर काॅल करने को कहा है.

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कोरौना गांव का इंटर कॉलेज | फोटो सुमित कुमार.

कई साल से है यही नाम

गांव के निवासी राजीव शर्मा बताते हैं कि उनका परिवार 50 साल से अधिक समय से यहां रहा है. उनके बुजुर्ग बताते हैं कि इस गांव को पहले ‘कारंडव वन’ कहा जाता था जो कि बाद में बदलकर कोरौना रख दिया गया. 78 साल के बुजुर्ग शिवकुमार बताते हैं कि बचपन से तो वह यही नाम सुनते आ रहे हैं. ऐसे में नाम बदलने का तो अब सवाल ही नहीं. ये 100 साल से अधिक पुराना नाम है.

गांव से जुड़ी हैं कई धार्मिक मान्यताएं

सीतापुर की मिश्रिख तहसील के अंतर्गत आने वाले इस कोरौना गांव की आबादी लगभग 8 हजार है.

गांव के निवासी राजीव शर्मा के मुताबिक, यह गांव धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से काफी समृद्ध है. यहां पास में ऋषियों की तपोभूमि कहे जाने वाला नैमिषारण्य धाम है. वहां से शुरू होने वाली 84 कोसीय परिक्रमा का पहला पड़ाव यही कोरौना गांव है. यहां द्वारकाधीश का प्राचीन मंदिर भी है जिसमें परिक्रमा के समय लाखों श्रद्धालु हर साल दर्शन पूजन करने आते हैं. हालांकि फिलहाल लाॅकडाउन के कारण कोई नहीं आ रहा. मंदिर से जुड़े पुजारियों को भी इस बात का भय है कि गांव का नाम कोरौना होने से शायद लाॅकडाउन खत्म होने के बाद भी कई दिन तक लोग यहां न आएं.

नाम नहीं लोगों की सोच बदले

78 साल के बुजुर्ग शिवकुमार गांव में घूमकर ये संदेश दे रहे हैं कि कोरोना से डरो कोरौना से नहीं. दिप्रिंट से बातचीत में उन्होंने कहा कि रेडियो के माध्यम से उन्होंने कोरोनावायरस के बारे में जानकारी हुई. फिर लोगों ने बताया कि दूसरे गांव में यहां के नाम को लेकर संशय की स्थिति है. कोई मजाक बना रहा तो कोई आने से डर रहा है लेकिन वह उम्मीद करते हैं कि लाॅकडाउन के बाद लोगों के संशय दूर होंगे और वे यहां आएंगे. वहीं 65 साल के भोला प्रसाद कहते हैं कि जिस नाम को वह बचपन से सुनते आ रहे हैं उसे बदलना नहीं चाहते लेकिन लोगों की सोच जरूर बदलनी चाहिए.

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