ठाकुरद्वारा : उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद ज़िले का शहर ठाकुरद्वारा राष्ट्रीय राजधानी से 4 घंटे दूर है. यहां पर 14 साल से 30 साल के छात्र देखने को मिलते हैं.
पिछले चार से पांच वर्षों में कम आबादी वाले शहर को एक ऐसी जगह के रूप में जाना जाता है, जहां पूरे उत्तर प्रदेश के छात्रों को सपने बेचे जाते हैं. छात्रों का एक लक्ष्य है- सरकारी नौकरी प्राप्त करना, यहां आईएएस और आईपीएस जैसी सिविल सेवा सबसे ऊपर हैं या क्लर्क और स्टेनोग्राफर जैसे सरकारी पद भी लिस्ट में नीचे हैं. ठाकुरद्वारा में छात्रों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हर नुक्कड़ में कोचिंग सेंटरों को देखा जा सकता है.
22 वर्षीय मोनी चौहान कहती हैं, हमारे ‘सर’ हमें बताते है कि एक बार जब आप अधिकारी बन जाते हैं, तो आप हमेशा के लिए सम्मान और गरिमा का जीवन जीते हैं. मोनी कहती हैं, सर कहते हैं कि यदि आप एक आईएएस अधिकारी बन जाते हैं, तो आप एक ज़िले का नेतृत्व करेंगे, सब कुछ संभालेंगे और आगे बढ़ते रहेंगे और शीर्ष पर पहुंचेंगे. मोनी एक साल पहले तक आईएएस का फुल फॉर्म नहीं जानती थी.
नायक की पूजा
मोनी के ‘सर’ केके चौहान नालंदा आईएएस अकादमी में पढ़ रहे लगभग 5,000 छात्रों के लिए किसी नायक से कम नहीं है. उन्होंने चार साल पहले अकादमी को स्थापित किया और जहां पर वे निर्देशक के रूप में कार्य कर रहे हैं.
अकादमी के आस-पास चौहान के बड़े-से-बड़े पोस्टर लगे हैं. छात्रों के तरफ देखते हुए जीत की मुद्रा में उनके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान है.
आईएएस की तैयारी छोड़ने से पहले चौहान एक स्टूडेंट थे, जिन्होंने अकादमी स्थापना करने से पहले छह साल तक कोचिंग ली थी. लेकिन यह उनके रास्ते में नहीं आया. पिछले चार वर्षों का कोई तथ्य नहीं है कि किसी भी छात्र ने सिविल सेवा परीक्षा पास की है, देश में बहुत कम सरकारी नौकरियां पैदा हुई हैं.
एकेडमी के एक अन्य छात्र बॉबी कहते हैं यूपीएससी के उम्मीदवार जो चाहें हासिल कर सकते हैं … चौहान सर इसका जीता जागता उदाहरण हैं. पैक्ड क्लासरूम में तेजी से तालियां बजी.
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यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि चौहान का आईएएस के परीक्षा में असफल होना उनके छात्रों के लिए एक सफलता की कहानी क्यों हैं. उनके चमकदार लाल ब्लेज़र, चमड़े के जूते, बालों में जेल, अंग्रेजी बोलने वाले चौहान महीने में 5-6 लाख रुपये कमाते हैं और अपने छात्रों के लिए प्रतीक है कि एक आईएएस आकांक्षी कुछ भी हासिल कर सकता है, भले ही उसने परीक्षा पास की हो या नहीं.
हकीकत से वास्ता कम ही है
सरकारी क्षेत्र में अवसरों की कमी के बारे में पूछे जाने पर बॉबी कहती हैं कोई नौकरियां नहीं पैदा हुई हैं तो इससे हम अपने सपनों से समझौता नहीं कर सकते हैं.
बॉबी केवल अकेले नहीं हैं. ठाकुरद्वारा में अधिकांश छात्रों को व्यवस्थित रूप से तैयार किए गए सपनों का लगातार पालन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, चाहे वह कितना भी मायावी क्यों न हो. वे बच्चों जैसी मासूमियत के साथ एक ही बात को बार-बार दोहराते हैं.
30 वर्षीय अरिश अहमद कहते हैं एक व्यक्ति पांच साल संघर्ष कर सकता है या अगले 50 वर्षों तक. अहमद ने तीन साल पहले एक सरकारी नौकरी (हवाई अड्डे के क्लर्क) छोड़ दी थी.
अहमद कहते हैं, ‘जब मैंने वहां काम करना शुरू किया, तो मुझे कुछ एक्सपोज़र मिला और एहसास हुआ कि केवल अधिकारी की असल ज़िंदगी है … मैंने गैम्बल लेने का फैसला किया है. आइए देखें कि मैं सफल होता हूं या नहीं, अहमद पिछले दो वर्षों से सिविल सेवा परीक्षा में असफल रहे हैं. वे कहते हैं ‘मेरे पास एक और प्रयास शेष है- यह मेरे लिए बनने या बिगड़ने की स्थिति है.
उन्होंने कहा, ‘हमें सिखाया जाता है कि अगर हम पर्याप्त परिश्रम करते हैं, तो कुछ भी ऐसा नहीं हैं जो हासिल नहीं हो सकता है.’
हालांकि, ऐसे लोग हैं जो ठाकुरद्वारा में ‘बड़े पैमाने पर सपनों के निर्माण’ की क्रूरता का एहसास करते हैं.
चौंतीस वर्षीय शमशाद ठाकुरद्वारा के एक कोचिंग सेंटर में तीन साल से अधिक समय बिताने वाले कई छात्रों में से थे. अब वह कहते हैं कि युवाओं का इस शहर में ब्रेनवाश किया जा रहा है.
शमशाद कहते हैं, ‘यहां हर रोज लाखों बच्चे आते हैं. उन्हें अपने शिक्षकों को देखने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, जो उन्हें ठीक से पढ़ाने में असफल रहे हैं. जैसे कि वह खुद कुछ पाने में असफल रहे हैं. कानून का अभ्यास करने से ठीक एक साल पहले उसी कोचिंग में पढ़ाने वाले शमशाद कहते हैं, ‘उन्हें यह सोचने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है कि वे आईएएस एस्पिरेंट्स बनकर आईएएस अधिकारी बन गए हैं.’
चौहान की नालंदा अकादमी के अलावा इस शहर में 30-35 अन्य सिविल सेवा कोचिंग संस्थान हैं, प्रत्येक में हजारों छात्र हैं. वे सभी 1,000-1,200 उम्मीदवारों को प्रत्येक वर्ष सिविल सेवा परीक्षा को पास करने में सफल होने का लक्ष्य रखते हैं. लेकिन, यूपीएससी परीक्षा को पास करने वालों में से अधिकांश आईएएस या आईपीएस से कम प्रतिष्ठित मानी जाने वाली सेवाओं में जाते हैं. जिसके बारे में मोनी, बॉबी और अरीश अहमद जैसे छात्रों ने कभी सुना नहीं है उनका सपना बस उन 180 आईएएस अधिकारियों में से है, जिन्हें यूपीएससी हर साल भर्ती करता है.
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फूस की छतों के नीचे छोटे – छोटे सपने
ठाकुरद्वारा केवल आईएएस और आईपीएस के बड़े सपनों के बारे में ही नहीं है. गरीब और कम सुविधा प्राप्त परिवारों से आने वाले लाखों छात्र ग्रेड ‘सी’ और ’डी’ सरकारी नौकरी हासिल करने की उम्मीद में शहर में आते हैं.
चौहान की पसंद से चलने वाली अकादमियों के बिलकुल विपरीत, ये छात्र सुविधा के कोचिंग केंद्रों की छतों के नीचे फर्श पर बैठते हैं.
लेकिन यह सिर्फ उनके क्लासरूम नहीं हैं जो उनके धनी और विशेषाधिकार प्राप्त समकक्षों से अलग दिखते हैं, जो देश के बहुप्रतिक्षित ढांचा का हिस्सा बनने की ख्वाहिश रखते हैं. उनके सपने वास्तविकता के करीब होते हैं.
24 वर्षीय मोहम्मद यदुद्दीन कहते हैं मैं पिछले दो वर्षों से एसएससी (कर्मचारी चयन आयोग) परीक्षा दे रहा हूं, लेकिन कोई नौकरी नहीं हुई है … कभी-कभी पेपर लीक हो जाता है, कभी-कभी अदालत में मामला होता है. मैं ऐसा कब तक कर सकता हूं.
यह सवाल है कि यदुद्दीन के माता-पिता अक्सर उससे सवाल पूछते हैं. वे कहते हैं कि मेरे माता-पिता ने भी मुझे ताना देना शुरू कर दिया है … वे कहते हैं कि इतना बड़ा हो गया है अपने माता-पिता की मदद करने के बजाय अभी तक अपने माता-पिता के पैसे पर कोचिंग ले रहा है. मैं इसे एक और साल दूंगा और देखूंगा कि क्या मैं इसे क्लियर कर सकता हूं … नहीं तो मैं अपने माता-पिता के सामने आत्मसमर्पण कर दूंगा और कहूंगा कि वे मुझे जो कराना चाहते हैं वही करूंगा.
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