लखनऊ: लखनऊ में मोदी सरकार के करीबी प्रमुख अधिकारी माने जाने वाले यूपी के मुख्य सचिव डी.एस. मिश्रा को लगातार दूसरी बार एक वर्ष के लिए सेवा विस्तार देने का राज्य सरकार का फैसला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नजरिये में बदलाव का स्पष्ट संकेत देता है. दिल्ली और लखनऊ के तमाम नौकरशाहों ने दिप्रिंट से बातचीत के दौरान कुछ ऐसी ही राय जाहिर की है.
दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में फरवरी में होने वाली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 (जीआईएस-2023)—जिसे राज्य की अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंचाने के योगी के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है—से पहले मुख्यमंत्री ‘केंद्र के व्यक्ति’ को जाने देकर कोई गलत संकेत नहीं देना चाहते थे.
लखनऊ में एक वरिष्ठ नौकरशाह ने दिप्रिंट को बताया कि योगी सरकार ने राज्य के मुख्य सचिव पद के लिए मोदी सरकार को मिश्रा समेत दो नाम भेजे थे. और केंद्र सरकार ने शुक्रवार को मिश्रा का पिछला सेवा विस्तार पूरा होने से एक दिन पहले ही उनके दूसरे सेवा विस्तार को मंजूरी दे दी.
नौकरशाह इसे एक दुर्लभ और ‘अपनी तरह का अनूठा’ मामला मानते हैं जिसमें किसी मुख्य सचिव को दो एक्सटेंशन मिले हैं और वह भी एक-एक साल अवधि के लिए.
गौरतलब है कि दिसंबर 2021 में तत्कालीन केंद्रीय आवास सचिव मिश्रा को ‘(यूपी) मुख्य सचिव के तौर पर प्रस्तावित नियुक्ति के लिए’ उनके होम कैडर में वापस भेजने के नरेंद्र मोदी सरकार के अप्रत्याशित फैसले ने राजनीतिक और नौकरशाही हलकों में हलचल मचा दी थी. इस कदम को मोदी सरकार की तरफ से यूपी प्रशासन के शीर्ष पर अपना प्रमुख व्यक्ति थोपने के तौर पर देखा गया था. साथ ही माना गया कि ये यूपी सरकार पर नियंत्रण बनाए रखने की केंद्र सरकार की कोशिश का एक हिस्सा है.
उन समय मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले तत्कालीन मुख्य सचिव आर.के. तिवारी के पास दो साल का सेवा काल बचा था लेकिन योगी को मोदी सरकार का फैसला मानना पड़ा था.
मुख्य सचिव के तौर पर मिश्रा का कार्यकाल काफी हद तक खास घटनात्मक नहीं रहा क्योंकि सीएम ने अपने करीबी नौकरशाहों के एक समूह के जरिये कामकाज करना जारी रखा.
यूपी के नौकरशाहों का कहना है कि मुख्यमंत्री सीएमओ के स्तर पर होने वाले फैसले और अन्य कामकाज को अपने कुछ विश्वसनीय नौकरशाहों के माध्यम से कराते रहे, जिससे लखनऊ में मुख्य सचिव कार्यालय के पास नियमित प्रशासनिक कामकाज के अलावा कोई लिए खास जिम्मेदारी नहीं बची थी.
यूपी कैडर के एक वरिष्ठ नौकरशाह ने दिप्रिंट से कहा, ‘उन्हें एक और एक्सटेंशन मिलने से कोई फर्क नहीं पड़ता. दिल्ली में जो भूमिका कैबिनेट सचिव की होती है, लखनऊ में सीएस की वही भूमिका होती है. मूलत: यह पीएमओ और सीएमओ से जुड़ा है. सीएम योगी ने मिश्रा के पद पर बनाए रखकर एक तरह से राजनीतिक परिपक्वता ही दिखाई है. मिश्रा के लखनऊ में मोदी सरकार के आंख-कान होने की धारणा के विपरीत, वह उसी में खुश हैं जो उन्हें करने को कहा जाता है. उन्होंने योगी को उनकी वजह से किसी तरह की चिंता करने का कोई कारण नहीं दिया है.’
अपने होम कैडर में लौटने से पहले मिश्रा शहरी विकास मंत्रालय में आवास और शहरी मामलों के सचिव थे और इस पद पर तीन साल से अधिक समय तक तैनात रहे थे.
उन्हें इस साल के शुरू में यूपी का चीफ रेजिडेंट कमिश्नर भी नियुक्त किया गया था.
अपने सेवा विस्तार की खबर शनिवार को ट्विटर पर साझा करने वाले मिश्रा ने दिप्रिंट को बताया कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की तरफ से आदेश शुक्रवार शाम को आया था.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मेरी प्राथमिकता राज्य का चौतरफा विकास सुनिश्चित करने के साथ-साथ जन कल्याण को लेकर प्रधानमंत्री के नजरिये के अनुरूप कल्याणकारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू कराना भी है.’
यह घटनाक्रम ऐसे समय सामने आया है जब एक अन्य भाजपा शासित राज्य मणिपुर में एक नौकरशाह को मिला सेवा विस्तार जांच के दायरे में आ गया है. मणिपुर के मुख्य सचिव राजेश कुमार को दूसरी बार मिले छह महीने के एक्सटेंशन की विपक्षी दल कांग्रेस ने आलोचना की है.
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‘असामान्य रूप से लंबा कार्यकाल है’
दिप्रिंट से बातचीत करने वाले कई पूर्व नौकरशाहों ने इस घटनाक्रम को ‘अभूतपूर्व’ बताया और कहा कि खासकर अखिल भारतीय सेवा नियमों के संदर्भ में यह ‘असामान्य रूप से लंबा’ कार्यकाल है.
अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम, 1958 का नियम 16(1) कहता है कि, ‘राज्य सरकार के मुख्य सचिव पद पर कार्यरत सेवा के किसी सदस्य को पूर्ण औचित्य के साथ और जनहित को ध्यान में रखते हुए संबंधित राज्य सरकार की सिफारिशों और केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के साथ दिए जाने वाले सेवा विस्तार की अवधि छह महीने से अधिक नहीं हो सकती है.’
पूर्व नौकरशाह ई.ए.एस सरमा ने दिप्रिंट को बताया कि हालांकि एक्सटेंशन को ‘सैद्धांतिक रूप से’ अच्छा नहीं माना जाता. लेकिन आमतौर पर ये छोटी अवधि के लिए दिए जाते हैं जो छह महीने से लेकर एक साल तक हो सकती है.
वित्त मंत्रालय के पूर्व सचिव सरमा ने दिप्रिंट को बताया, ‘कई मामलों में एक साल का विस्तार भी दिया गया है लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह कभी दो साल के लिए दिया गया है. दो साल बहुत लंबी अवधि है.’
उन्होंने कहा कि छह महीने के नियम के पीछे विचार ही यही है कि लंबे विस्तार से बचना है.
उन्होंने कहा, ‘सरकारें करती क्या हैं कि वे नियम का पालन करने के नाम पर कई बार छह-छह महीने का विस्तार देती हैं. प्रवर्तन निदेशालय प्रमुख के पद को ही देखें. यह बहुत ही संवेदनशील पोस्ट है लेकिन वे इस पर भी ऐसे ही एक्सटेंशन दे रहे हैं.’
भारत के सरकारी बॉडकास्टर प्रसार भारती के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रह चुके एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी जवाहर सरकार ने दिप्रिंट को बताया कि मिश्रा को एक साल का दूसरा एक्सटेंशन देना सेवा नियमों के खिलाफ नहीं है, लेकिन यह अखिल भारतीय सिविल सर्विसेज को ‘खत्म करने’ वाला हो सकता है.
फिलहाल, तृणमूल कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा सदस्य सरकार ने दिप्रिंट को बताया, ‘सेवाएं बहुत कड़े सर्कुलेटरी सिस्टम अपनाती हैं ताकि कोई अधिकारी अपने छोटे कार्यकाल के अलावा किसी निहित स्वार्थ के तहत काम न कर पाए. आमतौर पर, सरकारें यह सुनिश्चित करती हैं कि किसी नौकरशाह को एक ही जगह पर बहुत लंबा कार्यकाल न मिले.’
उन्होंने कहा कि ताजा घटनाक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘घबराहट’ को उजागर करता है. साथ ही यह भी दर्शाता है कि वह कैसे ‘केवल उन्हीं लोगों पर भरोसा करते हैं जिन्हें वे जानते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘दूसरी बात, यह सेवाओं को हतोत्साहित करता है क्योंकि इससे (अधिकारियों की) कतार वहीं की वहीं रुक जाती है.’
यूपी सरकार के एक अधिकारी ने भी दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि मिश्रा का सेवा विस्तार ‘भारतीय नौकरशाही के इतिहास में एक अलग ही तरह का उदाहरण है.’
अधिकारी ने कहा, ‘जहां तक मुझे याद है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है.’
‘पीएमओ के स्टैंप’
केंद्र सरकार में अपने कार्यकाल के दौरान मिश्रा ने मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी और विवादास्पद सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना सहित कई प्रमुख योजनाओं की निगरानी का जिम्मा संभाला है.
मिश्रा के कार्यकाल में लागू कई प्रमुख परियोजनाओं में स्वच्छ भारत मिशन और स्मार्ट सिटीज मिशन के अलावा लखनऊ, अहमदाबाद, नागपुर और कानपुर सहित कई शहरों में मेट्रो रेल प्रणाली का लॉन्च होना शामिल है.
मुख्य सचिव के तौर पर मिश्रा को सेवा विस्तार ऐसे समय मिला है जब उत्तर प्रदेश एक महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहा है—राज्य न केवल निवेशक शिखर सम्मेलन के लिए कमर कस रहा है, बल्कि इस साल के शुरू में ही यहां नगरपालिका चुनाव कराने की भी तैयारी चल रही है.
यह ऐसा मौका भी है जब 2024 के आम चुनावों में एक साल से थोड़ा ज्यादा समय ही बचा है.
मिश्रा ने अपने सेवा विस्तार को लेकर अटकलें तेज होने के बीच शुक्रवार को ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी. उस वक्त सीएमओ ने इसे ‘शिष्टाचार मुलाकात’ बताया था.
यूपी के एक अन्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि योगी सरकार में मिश्रा की स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी है.
अधिकारी ने कहा, ‘उनकी स्वीकार्यता हाल में बढ़ी है, न केवल इसलिए कि उनके पास पीएमओ की स्टैंप है, बल्कि इसलिए भी कि उन्हें एक डिलीवरी-ओरिएंटेड अधिकारी माना जाता है, जिसका सीएमओ के कामकाज में हस्तक्षेप सीमित ही है. इसके अलावा, जीआईएस-2023 का सुचारू ढंग से आयोजन उनकी प्राथमिकताओं में से एक है.’
(अनुवादः रावी द्विवेदी | संपादनः ऋषभ राज)
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