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Sunday, 3 November, 2024
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बेमौसम बरसात ने फिर बिगाड़ा विदर्भ में कपास किसानों का गणित, आधी लागत भी न मिली

प्रति एकड़ में 35 से 40 हजार रुपए की लागत में उन्हें केवल 15 से 20 हजार रुपए की दर से ही फसल का दाम मिला है.

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यवतमाल: विदर्भ में बारिश ने फिर से कपास किसानों की लागत पर बट्टा लगा दिया है. उन्हें इस बार में अपनी फसल का आधा दाम ही मिल सका है. किसानों के अनुसार चिंता की बात है कि यह लगातार दूसरा साल है जब खराब मौसम और अनियमित बरसात के कारण यहां कपास की फसल बर्बाद हुई है.

यवतमाल जिले में आदगांव के किसान प्रदीप साल्वे बताते हैं कि उन्होंने इस बार प्रति एकड़ में 35 से 40 हजार रुपए की लागत से कपास की खेती की थी. लेकिन, इस साल बेमौसम बरसात के कारण उनकी आधे से ज्यादा फसल चौपट हो गई. इसलिए, उन्हें प्रति एकड़ 15 से 20 हजार रुपए की दर से ही कपास की फसल का दाम मिला है. जाहिर है कि उन्हें प्रति एकड़ कपास की खेती पर खर्च की गई लागत के मुकाबले अपनी फसल का काफी कम पैसा मिला है. देखा जाए तो उन्हें उनकी लागत का मुश्किल से आधा हिस्सा ही हासिल हो सका है.

दरअसल, कपास की पैदावार के मामले में महाराष्ट्र का विदर्भ अंचल अग्रणी रहा है. लेकिन, यहां प्रदीप साल्वे की तरह यह सफेद सोना उगाने वाले ज्यादातर किसानों को बेमौसम बरसात के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. इस साल हालत यह है कि यहां खरीफ मौसम की इस फसल को उगाने वाले किसान 60 प्रतिशत तक घाटा सह रहे हैं. यही वजह है कि यहां के किसानों का बजट गड़बड़ा गया है. जाहिर है कि इस आर्थिक नुकसान का असर उनके आगामी सीजन पर भी पड़ेगा.


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विदर्भ में खास तौर से यवतमाल जिले को कपास उत्पादन के कारण जाना जाता है. लेकिन, पिछले कई वर्षों से विदर्भ के अन्य जिलों की तरह यवतमाल जिला भी किसान आत्महत्याओं के कारण चर्चा में रहा है. ऐसा इसलिए कि यहां पिछले कुछ दशकों से कृषि क्षेत्र में आए संकट के भंवरजाल में फंसे किसान इससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. इसके बावजूद यहां के किसान मौजूदा परिस्थितियों को बदलने के लिए हर साल लगातार अपने खेतों में बुवाई कर रहे है. प्रश्न है कि विदर्भ का एक कपास उत्पादक किसान बंपर फसल की उम्मीद पर प्रति एकड़ अपने खेत में सालाना किन-किन चीजों पर करीब कितनी लागत खर्च करता है.

इस बारे में अमरावती जिले के एक कपास उत्पादक किसान नीलेश तायडे बताते हैं कि एक अच्छी फसल लेने के लिए उनकी मेहनत खेतों को समतल बनाने से शुरू होती है. इसके बाद वे खेत से कचरा निकालने के बाद बीज, खाद और कीटनाशक खरीदते हैं. फिर कुछ मजदूरों को मजदूरी देकर बुवाई करते हैं. कपास के लिए एक निश्चित अवधि में सिंचाई की आवश्यकता होती है. तब जाकर फसल तैयार होती है तो उन्हें कपास की छटाई करनी पड़ती है. इतना करने के बाद जब वह अपना कपास खेत से ढोकर बाजार में लाता है तो माल बेचने के साथ उसे फिर कड़ी कसरत करनी पड़ती है. महीनों की मेहनत और हजारों रुपए खर्च करने के बाद जब एक छोटा किसान उसे तुरंत बेचना चाहता है तो चाहकर भी कई बार उसे उसकी फसल का उचित दाम नहीं मिल पाता है. कारण यह है कि हर साल की तरह इस साल भी शासकीय कपास खरीदी केंद्रों पर खरीद की प्रक्रिया में देरी हुई है. इसलिए अनेक किसानों ने व्यापारियों को 5,300 से लेकर 5,400 रुपए प्रति क्विंटल की दर से कपास बेचा है.

बता दें कि यहां किसानों द्वारा खरीफ के मौसम में सबसे ज्यादा खेती कपास की ही होती है. कई किसानों ने बातचीत में बताया कि वे हर साल कपास की खेती पर प्रति एकड़ करीब 35 हजार रुपए खर्च करते हैं. पूरी लागत सामान्यत: इस प्रकार से होती है- खेत समतलीकरण पर 1,000, कचरा सफाई पर 500, बीज पर 750, रोपण पर 500, खाद पर 5,000, खर-पतवार-नाशकों पर 5,000 कीट-नाशकों पर 5,000, सिंचाई पर 10,000, कपास की छटाई पर 4,000, वाहन पर 2,000 और रखवाली पर 1,000 रुपए.

हालांकि, इस वर्ष जब कपास उत्पादक किसान बंपर पैदावार को लेकर उत्साहित दिख रहे थे तो सितंबर से नवंबर और दिसंबर तक हुई बरसात ने उनके सारे अरमानों पर पानी फेर दिया. इस बारे में किसान नेता मनीष जाधव बताते है, ‘मौसम अक्सर किसानों को धोखा देता है, फिर खेती की लागत महंगी होती जा रही है, मगर इस पर भी किसान खेती करने से डरता नहीं है. बात यह है कि वह करें भी तो क्या! इस बार भी जब उसने खून-पसीना बहाकर फसल खेतों में तैयार की थी तो खूब पानी बरसा. नतीजा यह कि उसे आधे से कम फसल हासिल हुई है. इसलिए इस साल उसे आधे से अधिक घाटा लगा. लगातार घाटा सहने का एक मतलब यह है कि किसान कर्ज के बोझ के नीचे पहले से कहीं ज्यादा दब चुका है.’

इसी तरह, नागपुर जिला तहसील में भी व्यापक स्तर पर कपास की पैदावार होती है. लेकिन, यहां भी बेमौसम बरसात के कारण कपास का करीब 20 हजार हेक्टर का क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

देखा जाए तो पिछले कुछ दशकों से विदर्भ की अर्थव्यवस्था कपास पर निर्भर होती जा रही है. यही वजह है कि यहां कपास विपणन संघ ने किसानों से कपास खरीदने के लिए कुछ कपास खरीद केंद्र स्थापित किए हैं. लेकिन, यह नाकाफी बताए जा रहे हैं. वहीं, ज्यादातर केंद्रों में कर्मचारियों का पर्याप्त स्टाफ नहीं है.

दूसरी तरफ, बेमौसम बरसात के कारण यहां खरीफ में सोयाबीन उगाने वाले किसानों की स्थिति भी ऐसी ही है. इस बार सोयाबीन की करीब आधी फसल खराब बताई जा रही है. लेकिन, खरीफ में कपास और सोयाबीन की खेती को नुकसान पहुंचाने के बाद मौसम की मार कम नहीं हुई है. इस साल जनवरी की शुरुआत से लगातार शीत लहर के प्रकोप का असर रबी की फसल अरहर पर भी पड़ता दिख रहा है. पिछले कुछ दिनों से यवतमाल और इसके आसपास के क्षेत्र का तापमान आठ से नौ डिग्री रहा है. इस शीतलहर से किसानों को डर है कि अरहर की फलियां टूटकर गिर सकती हैं. यदि ऐसा हुआ तो रबी की फसल भी खराब होगी. ऐसे में आशंका यह है कि विदर्भ की खेती पर छाया संकट और अधिक गहरा सकता है.

(शिरीष खरे स्वतंत्र पत्रकार हैं.)


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