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Sunday, 12 May, 2024
होमएजुकेशन‘एकता की जीत’, हरियाणा सरकार ने राज्य विश्वविद्यालयों के लिए ‘सेल्फ-फंडिंग’ का आदेश लिया वापस

‘एकता की जीत’, हरियाणा सरकार ने राज्य विश्वविद्यालयों के लिए ‘सेल्फ-फंडिंग’ का आदेश लिया वापस

29 मई को जारी आदेश में विश्वविद्यालयों को विभिन्न स्रोतों से धन जुटाने और सरकारी धन पर निर्भरता कम करने को कहा गया था. इस कदम की राज्य के शिक्षण समुदाय ने आलोचना की थी.

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चंडीगढ़: हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को अपने उसे आदेश को वापस ले लिया, जिसमें उसने राज्य विश्वविद्यालयों को अपनी सेल्फ-फंडिंग पैदा करके, फंडिंग के लिहाज़ से सरकार पर निर्भरता कम करके आत्मनिर्भर बनने के लिए कहा गया था.

उच्च और तकनीकी शिक्षा के दायरे में आने वाले सभी राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को संबोधित एक पत्र में अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस), उच्च शिक्षा विभाग, आनंद मोहन शरण ने उन्हें सूचित किया कि उनके 29 मई के पहले पत्र, जिसका शीर्षक था “राज्य विश्वविद्यालयों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए” को वापस ले लिया गया है.

पत्र में कहा गया था, “मुझे (एसीएस) आपको यह सूचित करने का निर्देश दिया गया है कि उपरोक्त पत्र तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया गया है.”

सरकार के इस कदम का विश्वविद्यालय शिक्षक संघों ने स्वागत किया, जिन्होंने इसे अपनी एकता की जीत बताया है.

शनिवार को दिप्रिंट से बात करते हुए हरियाणा फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी एंड कॉलेज टीचर्स ऑर्गनाइजेशन (एचएफयूसीटीओ) के अध्यक्ष डॉ. विकास सिवाच ने कहा कि राज्य भर के शिक्षकों ने इस कदम का विरोध किया था और वे अब खुश हैं कि सरकार ने आखिरकार अपना मन बदल लिया है.

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सिवाच ने कहा, “यह और भी अधिक आश्चर्यजनक था कि 29 मई का पत्र उस समय आया जब हरियाणा के मुख्यमंत्री अपने पंजाब समकक्ष और पंजाब के राज्यपाल के साथ पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में हरियाणा के लिए हिस्सेदारी की मांग कर रहे थे और उन्हें वित्तीय संकट से लड़ने के लिए धन की पेशकश कर रहे थे.”

“द्विभाजन” पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार अपने स्वयं के विश्वविद्यालयों को भूखा रखना चाहती थी और दूसरी तरफ पंजाब विश्वविद्यालय के लिए धन की पेशकश कर रही थी.

29 मई को जारी पत्र में अपर मुख्य सचिव ने कहा,“राज्य सरकार की इच्छा है कि राज्य के सभी विश्वविद्यालय आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ें और सरकारी धन पर निर्भरता कम करें.”

पत्र में आगे कहा गया था, “इसके लिए विश्वविद्यालय पूर्व छात्रों, सीएसआर, निजी-सार्वजनिक परियोजनाओं, रिसर्च फंड, पेटेंट, विश्वविद्यालयों की अप्रयुक्त भूमि के व्यावसायिक उपयोग, ऑनलाइन शिक्षा और दूरस्थ शिक्षा, उद्योग-अकादमिक सहयोग को प्रोत्साहित करने और उद्यमिता को बढ़ावा देने आदि से धन जुटाएंगे.”

इसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालय कुछ अंतर्निहित संसाधनों से राजस्व उत्पन्न कर सकते हैं क्योंकि सभी विश्वविद्यालयों के पास पूर्ण बुनियादी ढांचा और पर्याप्त भूमि है. इस कदम की शिक्षण समुदाय ने आलोचना की थी.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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