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शनिवार, 24 मई, 2025
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स्वच्छता की अनोखी पहल: प्लास्टिक के बदले गर्म खाना, कचरे के बदले सैनिटरी पैड दे रहे गांव

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(उजमी अतहर)

नयी दिल्ली, 24 मई (भाषा) प्लास्टिक के बदले गर्मा-गर्म खाना और कचरे के बदले सैनिटरी पैड—गांवों में की जा रही ऐसी ही छोटी-छोटी पहलों की बदौलत भारत अपने 77 फीसदी गांवों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) प्लस मॉडल के रूप में स्थापित करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

कोई गांव ओडीएफ प्लस मॉडल का दर्जा तभी हासिल कर सकता है, जब वह खुले में शौच मुक्त गांव के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने में सफल हो, ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन की क्षमता विकसित करे, स्वच्छता के पैमाने पर खरा उतरे और ओडीएफ प्लस सूचना एवं संदेश का प्रचार-प्रसार करे।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 5.10 लाख से अधिक गांवों में ठोस अपशिष्ट निपटान की व्यवस्था है, जबकि 5.26 लाख से अधिक गांव तरल कचरे का प्रबंधन करने में सक्षम हैं। वहीं, 1,200 से अधिक पंजीकृत बायोगैस संयंत्र मौजूद हैं, जबकि अपशिष्ट संग्रह के लिए 6.38 लाख से अधिक वाहन तैनात किए गए हैं।

हालांकि, ग्रामीण भारत में कचरा प्रबंधन का श्रेय मुख्यत: स्थानीय नेतृत्व और सामुदायिक पहलों को जाता है।

प्लास्टिक कचरा स्वच्छता की दिशा में बड़ी बाधा है। हरियाणा के करनाल जिले की सुमन डांगी ने इससे निपटने के लिए अनोखी पहल की है। वह 500 ग्राम साफ और ‘रिसाइकिल’ करने लायक कचरा लाने वाले लोगों को गर्मा-गर्म खाना खिलाती हैं।

सुमन और उसके स्वयं सहायता समूह ने 50,000 रुपये के ऋण के साथ इस पहल की शुरुआत की थी। वह अब तक 1,500 किलोग्राम से अधिक प्लास्टिक कचरा एकत्र कर चुकी है और 3,000 से अधिक लोगों को गर्मा-गर्मा खाना खिला चुकी है।

भुशली गांव में अटल किसान मजदूर कैंटीन में प्लास्टिक के बदले गर्म खाना पहल चला रही सुमन ने कहा कि यह विचार आवश्यकता से उपजा। सुमन के अनुसार, “प्लास्टिक हर जगह मौजूद है और कई लोग दो वक्त की रोटी जुटाने में मुश्किलों का सामना करते हैं। हमने इन दोनों समस्याओं से निपटने का तरीका खोज निकाला।”

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के ऊंचाडीह गांव में भी स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए ऐसी ही अनोखी पहल चलाई जा रही है। वहां महिलाएं प्लास्टिक प्रदूषण और मासिक धर्म स्वच्छता जैसी चीजों पर एक साथ काम करने की कोशिश कर रही हैं।

‘मेरा प्लास्टिक, मेरी जिम्मेदारी’ पहल के तहत ऊंचाडीह ग्राम पंचायत की महिलाओं को दो किलोग्राम प्लास्टिक कचरा इकट्ठा करने पर सैनिटरी पैड का एक पैकेट उपलब्ध कराया जा रहा है।

ग्राम प्रधान अर्चना त्रिपाठी की ओर से शुरू की गई इस पहल को स्वास्थ्यकर्मियों से लेकर शिक्षकों का तक का समर्थन मिल रहा है, जो महिलाओं और लड़कियों को प्लास्टिक कचरा जुटाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

अर्चना ने कहा, “यह एक छोटी-सी कोशिश है, लेकिन इससे मासिक धर्म से जुड़ी वर्जनाओं को तोड़ने में मदद मिलेगी और प्लास्टिक कचरे में भी कमी आएगी।”

पड़ोसी घोरावल ब्लॉक में ग्राम प्रधान परमेश्वर पाल रोजाना ई-रिक्शा से प्लास्टिक कचरा इकट्ठा करते हैं और स्थानीय लोगों को एकल-उपयोग प्लास्टिक के इस्तेमाल में कमी लाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

पाल के मुताबिक, “यह कोई आकर्षक काम नहीं है, लेकिन इससे बातचीत शुरू होती है और धीरे-धीरे आदतें भी बदलती हैं।”

उत्तराखंड में गंगा के किनारे बसे सिरासू गांव में एक ऐसा अपशिष्ट प्रबंधन मॉडल अपनाया जा रहा है, जिससे राजस्व जुटाने में भी मदद मिलती है।

‘ओडीएफ प्लस’ मॉडल का दर्जा हासिल कर चुका सिरासू पर्यटन के जरिये अपने स्वच्छता अभियान के लिए धन एकत्र करता है। स्थानीय पंचायत साल 2018 से विवाह-पूर्व फोटो शूट के लिए 1,000 रुपये शुल्क लेती है। वह टेंट और लाइट जैसे उपकरण भी किराये पर देती है। इससे उसे पिछले सात वर्षों में लगभग 50 लाख रुपये अर्जित करने में मदद मिली है। उक्त राशि का इस्तेमाल शौचालयों के रखरखाव, प्लास्टिक कचरा संग्रह केंद्र के संचालन और पर्यटक बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए किया जा रहा है।

भाषा पारुल नेत्रपाल

नेत्रपाल

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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