पुणे (महाराष्ट्र), 24 जुलाई (भाषा) ऐसे समय में जब राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) की कोचिंग कराने में माता-पिता के तीन लाख रुपये तक खर्च हो सकते हैं, महाराष्ट्र में डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों का एक समूह गरीब परिवारों और ग्रामीण इलाकों के विद्यार्थियों को मुफ्त कोचिंग दे रहा है।
2015 में शुरू हुए लिफ्ट फॉर अपलिफ्टमेंट (एलएफयू) प्रोजेक्ट ने गरीब परिवारों के सौ से अधिक छात्रों की एमबीबीएस और अन्य चिकित्सा पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए आयोजित अखिल भारतीय प्री-मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट को उत्तीर्ण करने में मदद की है।
समान विचारधारा वाले 10 से 15 मेडिकल छात्रों के साथ प्रोजेक्ट शुरू करने वाले डॉ. अतुल ढकाने ने कहा, ‘‘2015 में जब मैं पुणे में बीजे मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के तीसरे वर्ष में था, तब मैं कुछ पैसे कमाने और सीखने के लिए एक कोचिंग क्लास में जीव विज्ञान पढ़ाता था। वहां मुझे एहसास हुआ कि मोटी फीस के कारण गरीब पृष्ठभूमि, ग्रामीण, आदिवासी और सूखाग्रस्त क्षेत्रों से आने वाले छात्र कोचिंग का खर्च नहीं उठा सकते हैं।’’
ढकाने ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘शुरुआत में हमने ग्रामीण क्षेत्रों के उन छात्रों को लेना शुरू किया, जो चिकित्सा शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे और पुणे नगर निगम द्वारा संचालित स्कूल की एक छोटी कक्षा में उन्हें पढ़ाना शुरू कर दिया।’’
इस दौरान 36 बैच के छह छात्रों ने मेडिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों के लिए आयोजित महाराष्ट्र सरकार के सीईटी यानी कॉमन एंट्रेंस टेस्ट को पास किया। उनमें से कई ने अच्छे कॉलेजों में प्रवेश लिया।
ढकाने के मुताबिक, नीट-2017 में लिफ्ट फॉर अपलिफ्टमेंट प्रोजेक्ट के तहत कोचिंग लेने वाले 11 छात्रों ने मेडिकल कॉलेजों में सीटें हासिल कीं। उन्होंने कहा, ‘‘उनमें से कुछ बहुत गरीब और हाशिए वाली पृष्ठभूमि से थे। एक सफल छात्र विशाल भोंसले ‘फासे पारधी’ समुदाय से थे। उन्होंने हाल ही में सोलापुर के सरकारी कॉलेज से एमबीबीएस करने के बाद अपनी इंटर्नशिप पूरी की है।’’
ढकाने के अनुसार, “पुणे और मुंबई जैसे शहरों में शीर्ष नीट कोचिंग संस्थान तीन लाख रुपये तक फीस लेते हैं। एलएफयू मुफ्त कोचिंग प्रदान करता है। हर साल कुल 60 छात्र एलएफयू कोचिंग के लिए दाखिला लेते हैं। जुलाई 2022 में कम से कम 48 एलएफयू छात्रों ने नीट की परीक्षा दी।”
पुणे के बाद मुंबई से 600 किलोमीटर दूर पूर्वी महाराष्ट्र के आदिवासी मेलघाट क्षेत्र में एलएफयू का एक और शिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया था। स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा द्वारा शुरू किए गए महान आदिवासी आंदोलन के नाम पर इसे ‘उलगुलान’ नाम दिया गया था।
ढकाने ने कहा, ‘‘हमारे छात्रों में से एक संतोष चटे, जो सूखाग्रस्त बीड जिले के रहने वाले हैं, उन्होंने उलगुलान परियोजना का नेतृत्व किया। हमारे शिक्षक मेलघाट गए और आदिवासी छात्रों के लिए कक्षाएं संचालित कीं। हालांकि, उन्हें नीट 2019 में मेलघाट बैच से वांछित परिणाम नहीं मिला।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वहां का माहौल परीक्षा की तैयारी के लिए अनुकूल नहीं था। इसलिए हमने अगले साल छात्रों को पुणे स्थानांतरित कर दिया और हमारे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि 16 छात्र नीट में उत्तीर्ण हुए और उनमें से आठ ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश प्राप्त किया।’’
डॉक्टर बनने के अपने सपने को पूरा करने के बाद चेटे अब एलएफयू के एक प्रमुख सदस्य हैं और उन्होंने प्रोजेक्ट के मेलघाट हिस्से का नेतृत्व किया है।
नीट 2020 पास करने के बाद मुंबई से एमबीबीएस करने वाले शांतिलाल खसडेकर ने कहा कि वह और उलगुलान बैच के अन्य लोग मेलघाट के सुदूर आदिवासी इलाकों से ताल्लुक रखते हैं और उन्होंने कभी डॉक्टर बनने का सपना नहीं देखा था।
बकौल शांतिलाल, ‘‘हममें से अधिकांश के माता-पिता या तो खेतों के मजदूर थे या आजीविका कमाने के लिए कुछ अलग काम करते थे। मैंने कभी मेडिकल की पढ़ाई करने के बारे में नहीं सोचा था। जब मैंने अपनी एसएससी (कक्षा 10) की परीक्षा उत्तीर्ण की थी, तब तक मुझे यह भी नहीं पता था कि चिकित्सा पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए कोई परीक्षा होती है।’’
भाषा सुरभि पारुल
पारुल
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