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Monday, 3 November, 2025
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निष्पक्ष, देश-केंद्रित अनुकूलन संकेतक सीओपी30 के लिए शीर्ष एजेंडा: भारत

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नयी दिल्ली, तीन नवंबर (भाषा) पर्यावरण मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि ब्राजील के बेलेम में आगामी संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (सीओपी30) में अनुकूलन संकेतकों का युक्तिसंगत बनाया जाना एक प्रमुख मुद्दा होगा।

मंत्रालय ने इस बात पर जोर दिया कि इन संकेतकों से विकासशील देशों को नुकसान नहीं होना चाहिए और इन्हें राष्ट्रीय परिस्थितियों को प्रतिबिंबित करना चाहिए।

मंत्रालय ने कहा कि इस ढांचे से विकसित देशों से वित्त, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और दक्षता विकास सहायता की पारदर्शी ट्रैकिंग भी संभव होगी।

जलवायु अनुकूलन का अर्थ है समुदायों को बढ़ते तापमान, बाढ़, सूखे और तूफानों के लिए तैयार करना, खासकर समुद्र तट के आसपास दीवारें बनाकर, वनों को पुनर्स्थापित करके या लचीली फसलें लगाकर।

लेकिन अनुकूलन पर वैश्विक प्रगति धीमी, सीमित और खंडित रही है। इसे बदलने के लिए, देशों ने अनुकूलन प्रयासों पर नज़र रखने और उन्हें मज़बूत करने के लिए पेरिस समझौते के तहत अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (जीजीए) बनाए।

इस पर 2015 में सहमति बन गई थी, लेकिन यह लक्ष्य दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में 2023 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन (सीओपी28) में ही आकार ले पाया, जहां राष्ट्रों ने कार्रवाई के लिए एक व्यापक रूपरेखा तैयार की।

हालांकि, इसमें अभी भी स्पष्ट लक्ष्यों और वित्त, प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण में पर्याप्त समर्थन का अभाव है।

वर्ष 2025 में सीओपी30 में, देशों को मापने योग्य संकेतकों पर सहमति बनाकर जीजीए को परिष्कृत करना होगा ताकि दुनिया निष्पक्ष रूप से प्रगति पर नज़र रख सके और कमजोर समुदायों के लिए सुरक्षा बढ़ा सके।

मंत्रालय ने यह भी कहा कि ब्राज़ील में होने वाला जलवायु सम्मेलन बहुपक्षवाद के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होगा।

अमेरिका के पेरिस जलवायु समझौते से पीछे हटने समेत जटिल भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि में सीओपी30 का आयोजन होने वाला है। जलवायु परिवर्तन पर समझौते के तहत कई विकसित देश आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा दबावों के बीच अपनी जलवायु रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं।

पिछले महीने ब्रासीलिया में सीओपी30 से पूर्व मंत्रिस्तरीय गोलमेज सम्मेलन में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा था कि नवंबर में होने वाले 30वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन से यह मजबूत संकेत जाना चाहिए कि बहुपक्षवाद वैश्विक जलवायु कार्रवाई की आधारशिला बना हुआ है।

मंत्रालय के अधिकारियों ने यह भी बताया कि भारत के नए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को लेकर भी विचार-विमर्श चल रहा है। एनडीसी जलवायु कार्य योजनाएं हैं जो पेरिस समझौते के तहत प्रत्येक देश बनाता है। ये योजनाएं ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य निर्धारित करती हैं और बताती हैं कि प्रत्येक देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल कैसे होगा।

भाषा आशीष वैभव

वैभव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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