गुवाहाटी: प्रतिबंधित यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम-इंडिपेंडेंट (उल्फा-आई) ने असम के लोगों से सिनेमाघरों में आगामी असमिया फिल्म ‘प्रोतिश्रुति’ को देखने की अपील की है, साथ ही राज्य के थिएटर मालिकों से यह भी सुनिश्चित करने को कहा है कि रिलीज़ के बाद फिल्म कम से कम “3-4 सप्ताह” अच्छा प्रदर्शन करे और उस अवधि के दौरान कोई भी हिंदी फिल्म नहीं दिखाई जानी चाहिए.
24 मई को रिलीज़ होने वाली, ‘प्रोतिश्रुति’ सामाजिक ताने-बाने पर नशीली दवाओं के दुरुपयोग और लत के प्रभाव पर केंद्रित है. इसमें लोकप्रिय असमिया अभिनेता प्रस्तुति पाराशर, प्लाबिता बोरठाकुर — जिन्होंने हिंदी फिल्मों में भी काम किया है — और सिद्धांत कश्यप मुख्य भूमिकाओं में हैं.
फिल्म के निर्माता और पटकथा लेखक रतुल बरुआ का ज़िक्र करते हुए, उल्फा-आई ने इस हफ्ते कहा कि ‘प्रोतिश्रुति’ असमिया युवाओं के बीच मादक द्रव्यों के सेवन के मुद्दे पर आधारित है और उनसे इसे देखने का आग्रह किया.
हालांकि, इस समर्थन के कारण ‘प्रोतिश्रुति’ के निर्माताओं की मिलीजुली प्रतिक्रिया है, लेकिन उन्होंने स्वीकार किया है कि हिंदी (बॉलीवुड) सिनेमा की तुलना में असमिया फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर पर्याप्त खरीदार नहीं मिलते हैं.
दिप्रिंट से बात करते हुए बरुआ ने कहा कि वे उल्फा-आई द्वारा थिएटर मालिकों से हिंदी फिल्में नहीं दिखाने की अपील का समर्थन करते हैं. “यह सिर्फ मेरी फिल्म के लिए नहीं है, बल्कि असमिया फिल्म इंडस्ट्री के हित के लिए भी है.”
बरुआ ने कहा, “असमिया फिल्मों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. अच्छी क्षेत्रीय फिल्में शाम 5 बजे सिनेमाघरों में दिखाई जानी चाहिए, यह मेरी भी अपील है. उल्फा-आई ने कुछ गलत नहीं कहा है. उन्होंने हमारे समाज को प्रभावित करने वाले एक गंभीर मुद्दे के बारे में बात की है.”
दूसरी ओर, फिल्म के निर्देशक और पटकथा लेखक किशोर तहबीलदार ने कहा कि फिल्म देखने या न देखने का फैसला निजी पसंद पर निर्भर है.
उन्होंने कहा, “बतौर निर्देशक, मैं किसी को हिंदी सिनेमा को नहीं देखने के लिए नहीं कह सकता, या सीधे तौर पर किसी को हिंदी फिल्में नहीं चलाने का निर्देश नहीं दे सकता. हमें किसी को वो देखने से क्यों रोकना चाहिए जो वो चाहते हैं — बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान का नसीरुद्दीन शाह की तुलना में एक अलग फैनबैस है. असमिया सिनेमा के साथ भी ऐसा ही दृश्य है.”
8 मई को प्रेस को दिए एक बयान में उल्फा-आई ने नशीली दवाओं के दुरुपयोग, संबंधित बीमारियों और उनके खतरों के बारे में विस्तार से बताया, जिसमें कहा गया कि यह युवा लोगों के लिए सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौती साबित हो रही है.
इसने क्षेत्र में नशीली दवाओं की तस्करी के बारे में चिंताओं को उठाने की कोशिश की और इसने समाज पर कैसे भारी असर डाला है, साथ ही नशीली दवाओं की तस्करी में पुलिस और सरकारी अधिकारियों की कथित संलिप्तता की ओर भी इशारा किया.
बयान में कहा गया है, “90 के दशक की शुरुआत से लेकर दशक के अंत तक, जब उल्फा बहुत सक्रिय था, उसने नशीली दवाओं के दुरुपयोग और नशीली दवाओं की तस्करी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की — जिसके कारण ऐसे पदार्थ आसानी से असम में प्रवेश नहीं कर सके, लेकिन सरकार ने स्थिति पर नरम रुख अपनाया और अपने फायदे के लिए हर कोने में नशीले पदार्थों के प्रवेश की अनुमति दे दी.”
इसमें आगे कहा गया, “उल्फा को नष्ट करने के अपने प्रयास में सरकार ने इसके खिलाफ उपाय अपनाने के बजाय नशीली दवाओं के व्यापार को जारी रखने की अनुमति दी है. पुलिस पर पूरा दबाव डालने से समाधान खोजने में मदद नहीं मिलेगी, क्योंकि कुछ मामलों में, पुलिस और सरकार भी मादक पदार्थों की तस्करी में शामिल पाई गई है.”
‘प्रोतिश्रुति’ के निर्देशक तहबीलदार ने कहा कि फिल्म मादक द्रव्यों के सेवन के खिलाफ समाज को एक सकारात्मक संदेश देने की कोशिश करती है, उनका मानना है कि यह विद्रोही संगठन के साथ प्रतिध्वनित हुआ होगा.
हालांकि, उनके मन में आशंका बनी है कि उल्फा-आई के समर्थन से जनता के बीच “आत्म-प्रचार” के प्रति संदेह पैदा हो सकता है. उन्होंने कहा कि उल्फा-आई या यहां तक कि राज्य पुलिस में से किसी ने भी अब तक फिल्म से जुड़े किसी भी सदस्य से संपर्क नहीं किया है.
तहबीलदार ने कहा, “हम पिछले तीन महीनों से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और मीडिया को दिए गए इंटरव्यू के जरिए से ‘प्रोतिश्रुति’ का प्रचार कर रहे हैं. यह फिल्म एक ऐसे लड़के की ज़िंदगी की कहानी बयां करती है, जिसे उसकी लत के कारण समाज ने ठुकरा दिया था, लेकिन बाद में उसे अन्य गतिविधियों में सांत्वना मिलती है, जिससे उसका जीवन बेहतर होने लगता है. हमें याद रखना चाहिए कि स्थिति को नियंत्रित करने में राज्य सरकार के प्रयासों के बावजूद, असम अभी भी नशा मुक्त नहीं हो पाया है.” उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि उन्होंने फिल्म के लिए अपना खुद का शोध किया है.
इस बीच, फिल्म को बढ़ावा देने वाले एक फेसबुक पेज पर ध्यान आकर्षित करते हुए, बरुआ ने कहा कि फिल्म असम पुलिस की भूमिका को घटाने का प्रयास नहीं है बल्कि उन्हें “शहर के संरक्षक” की तरह चित्रित किया गया है.
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