scorecardresearch
Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशUK-US स्टडी का दावा, हीटवेव के प्रभाव को ठीक से कैप्चर नहीं करते क्लाइमेट वलनेरेबिलिटी सूचकांक

UK-US स्टडी का दावा, हीटवेव के प्रभाव को ठीक से कैप्चर नहीं करते क्लाइमेट वलनेरेबिलिटी सूचकांक

PLOS क्लाइमेट में प्रकाशित कैम्ब्रिज, येल एंड कैलटेक के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन से वर्तमान क्लाइमेट वलनेरेबिलिटी एसेसमेंट 'ब्लाइंड स्पॉट्स' को दिखाता है.

Text Size:

नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत को होने वाले नुकसान का मैपिंग करने वाले वर्तमान सूचकांक हीटवेव के प्रभाव को पर्याप्त रूप से पकड़ने में विफल हो रहे हैं, जो बुधवार को प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की उपलब्धि में बाधा बन सकता है.

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, येल विश्वविद्यालय और कैलटेक के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया अध्ययन, जो दिल्ली में खतरनाक स्तर की गर्मी का हवाला देता है, वर्तमान जलवायु के प्रति होने वाले नुकसान के मामले में “ब्लाइंड स्पॉट्स” को दिखाता है.

पीअर-रिव्यूड जर्नल पीएलओएस क्लाइमेट में प्रकाशित शोध, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के क्लाइमेट वरनेरेबिलिटी इंडेक्स (सीवीआई) का उदाहरण देता है. अध्ययन में कहा गया है कि सूचकांक, हरियाणा और पंजाब जैसे वर्गीकृत राज्यों, जहां तापमान पिछले साल सामान्य से 6-7 डिग्री सेल्सियस अधिक था, को “कम जोखिम वाले” क्षेत्रों के रूप में देखा गया.

वे पेपर में लिखते हैं, “शोधकर्ता CVI डेटा की हीट इंडेक्स के साथ तुलना करके अपने निष्कर्षों को स्थापित करने में सक्षम थे, जो पिछले साल देश में फैली घातक हीटवेव पर आधारित है, जिसमें कम से कम 25 लोग मारे गए थे. दोनों को जोड़ने से “भारत को होने वाले नुकसान की संभावना की अधिक पहचान होती है और भारत की जलवायु अनुकूलन नीतियों पर पुनर्विचार करने का अवसर मिलता है,”

अध्ययन में कहा गया है कि सूचकांक के अनुसार, देश का लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति मध्यम रूप से जोखिम में है. लेकिन जब एक हीट इंडेक्स से इसे जोड़कर देखा जाता है, तो जोखिम अधिक चरम और व्यापक होता है, जिसमें देश का 90 प्रतिशत हिस्सा “बेहद सतर्क (extremely cautious)” या “खतरे (danger)” की सीमा में आता है.

भारत, जो कि दुनिया में जलवायु परिवर्तन की वजह से ज्यादा नुकसान होने वाले देशों में शामिल है, एक और चिलचिलाती गर्मी का सामना करने के लिए तैयार है, पिछले एक सप्ताह में देश के कई हिस्सों में तापमान 40 डिग्री को पार कर गया है.

जो निष्कर्ष देखने को मिल रहे हैं वे सतत विकास को प्राप्त करने की भारत की महत्वाकांक्षाओं के बारे में सवाल उठाते हैं, क्योंकि अत्यधिक गर्मी की वजह से एसडीजी की प्रगति रुकने का खतरा है.


यह भी पढ़ेंः क्या है ‘ब्लू इकॉनमी’, भारत और दुनिया इसके बारे में क्यों बात कर रहे हैं


एसडीजी के 17 लक्ष्यों को पाने के मामले में देश पहले से ही पिछड़ा हुआ है. नवीनतम रैंकिंग से पता चलता है कि भारत पिछली रिपोर्ट, 192 देशों में से 120 वें स्थान पर, की तुलना में 2022 में तीन स्थान फिसल गया.

“भारत जिन 11 एसडीजी में पीछे है, उनमें से अधिकांश गंभीर रूप से क्लाइमेट ऐक्शन से संबंधित हैं. एसडीजी 11 (टिकाऊ शहर और समुदाय) और एसडीजी 13 (क्लाइमेट ऐक्शन) पर भारत की तैयारी और प्रदर्शन में काफी गिरावट आई है. इन एसडीजी के बीच मजबूत संबंध के कारण यह गंभीर हो जाता है.”

2015 के बाद के विकास एजेंडे के हिस्से के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) द्वारा 2015 में तैयार, एसडीजी उन 17 लक्ष्यों की एक सूची है जो अब और भविष्य में “लोगों और पृथ्वी के लिए शांति और समृद्धि के लिए साझा ब्लूप्रिंट” के रूप में सेवा करने के लिए हैं”.

‘गलत’ मूल्यांकन

भले ही सीवीआई अत्यधिक गर्मी के जोखिमों को पकड़ने में विफल रहता है, फिर भी यह दर्शाता है कि “हीटवेव्स पूरे भारत में अधिक लोगों को चरम जलवायु जोखिम में डाल देती हैं”.

पेपर कहता है, गर्मी के कारण जलवायु से जो नुकसान होने की संभावना है, उसकी वजह से भारत को “एसडीजी को पूरा करने के लिए climate vulnerabilities के अपने आकलन पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो सकती है”.

अध्ययन कहता है, उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश हीट इंडेक्स के “अत्यधिक खतरे (Extreme Danger)” श्रेणी में आता है, जो SDG 3 (अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण) और SDG15 (भूमि पर जीवन) को प्रभावित करेगा. “हालांकि, इन एसडीजी को सीवीआई वर्गीकरण में मध्यम माना जाता है,”

पश्चिम बंगाल में, जहां बेहद खतरनाक गर्मी पड़ने का जोखिम है, एसडीजी 3, एसडीजी 15, एसडीजी 5 (लिंग समानता), और एसडीजी 8 (सभ्य काम और आर्थिक विकास) पर पहले से ही “काफी फोकस है जो इस बात को इंगित करते हैं कि एसडीजी पर काफी ध्यान दिया गया.” लेकिन हीटवेव के कारण आगे यह काम चुनौतीपूर्ण हो सकता है.”

पेपर का अनुमान है कि जैसा कि वर्तमान में सीवीआई द्वारा माना जाता है उसकी तुलना में गर्मी प्राकृतिक संसाधनों, सीमांत और छोटी भूमि, मनरेगा के माध्यम से अनुकूल आजीविका क्षमता, खाद्यान्न की उपज परिवर्तनशीलता, वेक्टर जनित रोगों और जल जनित रोगों से आय के हिस्से को “बड़े पैमाने पर” प्रभावित करेगी.

‘क्लाइमेट वलनेरेबिलिटी का पूरे सिस्टम का ट्रीटमेंट’

शहरी क्षेत्रों में सतत विकास पर गर्मी के प्रभावों का आकलन करने के लिए अध्ययन दिल्ली शहर के लिए जिला स्तर से अपना विश्लेषण कर रही है.

जलवायु परिवर्तन पर दिल्ली की राज्य कार्य योजना से पता चलता है कि दक्षिण और उत्तर पूर्व जिले जलवायु प्रभावों के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हैं, लेकिन हीट इंडेक्स से पता चलता है कि पूरा शहर खतरनाक स्तर की गर्मी के संपर्क में है.

पेपर में कहा गया है, “झुग्गी आबादी की अधिकता और हीट इंडेक्स एरिया में भीड़भाड़, बिजली, पानी और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच में कमी, तत्काल स्वास्थ्य देखभाल और स्वास्थ्य बीमा की अनुपलब्धता, आवास की खराब स्थिति और खाना पकाने का गंदा ईंधन (पारंपरिक बायोमास, मिट्टी का तेल और कोयला), कुछ ऐसे वैरिएबल्स हैं जो दिल्ली में गर्मी से होने वाले नुकसान को बढ़ाएंगे.

इसमें कहा गया कि इन कमजोरियों को कम करने के लिए “एसडीजी 3 (अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण), 9 (उद्योग, इनोवेशन और बुनियादी ढांचे), 11 (टिकाऊ शहरों और समुदायों) और 10 (कम असमानताओं) की पूर्ति के माध्यम से संरचनात्मक हस्तक्षेप की आवश्यकता है, जो वर्तमान में भारत के एसडीजी फोकस एरिया से गायब है.

पिछले महीने, दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने अपना स्वयं का अध्ययन जारी किया, जिसमें पाया गया कि 18 राज्यों की मौजूदा हीट एक्शन योजनाएं “फंड की कमी, कम पारदर्शी और स्थानीय संदर्भों के हिसाब से नहीं बनीं” थीं.

पेपर में कहा गया है, “भारत अपनी क्लाइमेट वलनेरेबिलिटीज़ से जलवायु को होने वाले नुकसान को पूरे सिस्टम को बदलकर ही उपयुक्त अनुकूलन योजना शुरू कर सकता है.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः IMD ने ‘नॉर्मल मानसून’ की जताई संभावना, निजी पूर्वानुमानकर्ता ने कहा ‘सामान्य से कम’ रहेंगी बौछारें


 

share & View comments