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Thursday, 21 November, 2024
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यूजीसी ने अंतिम वर्ष की परीक्षा कराने के खिलाफ महाराष्ट्र और दिल्ली के फैसले की वैधता पर उठाए सवाल

यूजीसी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की बेंच से कहा कि दोनों राज्य सरकारों का निर्णय यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत है.

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नई दिल्लीः विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सोमवार को कोविड-19 महामारी के बीच विश्वविद्यालय की अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित नहीं कराने के दिल्ली और महाराष्ट्र सरकार के फैसले की वैधता पर सवाल उठाया.

यूजीसी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की बेंच से कहा कि दोनों राज्य सरकारों का निर्णय यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत है.

मेहता ने पूछा, ‘जब यूजीसी को डिग्री प्रदान करने का अधिकार है तो राज्य परीक्षाएं रद्द कैसे कर सकती है?’

उन्होंने दोनों राज्यों के रुख पर जवाब दाखिल करने के लिए समय की भी मांग की, जिसे अदालत ने 14 अगस्त को अपनी अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है.

राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा परीक्षा नहीं कराने के फैसले पर महाराष्ट्र सरकार निर्भर थी. इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या आपदा प्रबंधन अधिनियम का विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशानिर्देशों पर ‘व्यापक प्रभाव पड़ेगा’.

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सितंबर के अंत तक अंतिम परीक्षा आयोजित कराने के लिए 6 जुलाई को विश्वविद्यालयों को एक अधिसूचना जारी की थी.

इसे सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाओं के एक बैच द्वारा चुनौती दी गई थी, जिसमें देश के विश्वविद्यालयों के 31 छात्र शामिल थे. याचिकाओं में उल्लेख किया गया है कि यूजीसी का निर्णय छात्रों को महामारी के दौरान परीक्षा के लिए उपस्थित होने के लिए मजबूर करेगा, जो उनके स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा जोखिम होगा.

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने पिछले महीने उच्चतम न्यायालय में कहा था कि यह निर्णय ‘छात्रों के शैक्षिक भविष्य को बचाने’ के लिए लिया गया है.

यह भी दावा किया था कि परीक्षाओं में छात्रों का प्रदर्शन, विशेष रूप से उनके अंतिम साल या टर्मिनल सेमेस्टर में, उसे विश्वास देता है.


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‘ऑनलाइन कक्षाओं तक सभी की पहुंच नहीं’- दिल्ली सरकार

31 जुलाई को सुनवाई के दौरान, उच्चतम न्यायालय ने पक्षकारों से 7 अगस्त तक अपने शपथ-पत्र प्रस्तुत करने के लिए कहा था.

जवाब में, महाराष्ट्र सरकार ने पिछले सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने 13 जुलाई को परीक्षा आयोजित नहीं करने को कहा था.

महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि राज्य के बहुत सारे विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर ने कोविड के बढ़ते मामलों के बीच परीक्षा नहीं कराने का समर्थन किया था.

दिल्ली सरकार ने भी इसी तरह का जवाब दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, जो उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्री भी हैं, ने 11 जुलाई को फैसला किया था कि राज्य के सभी विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन-ऑफलाइन परीक्षाएं, अंतिम वर्ष को मिलाकर, कोविड-19 महामारी के कारण रद्द कर दी जाएंगी.

दिल्ली सरकार के हलफनामे में आगे कहा गया कि विश्वविद्यालयों ने ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित करने का प्रयास किया, लेकिन ‘हमारे डिजिटल डिवाइड की वास्तविक स्थिति यह है कि ऑनलाइन कक्षाओं की सभी तक पहुंच नहीं है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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