नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने इस सप्ताह के शुरू में नोटिफाइड अपने रिवाइज्ड पीएचडी रेग्युलेशन्स में कहा है कि चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम पूरा कर चुके छात्र अब डॉक्टरेट प्रोग्राम में सीधे प्रवेश के पात्र होंगे.
‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (पीएचडी डिग्री प्रदान करने के लिए न्यूनतम मानक और प्रक्रियाएं) विनियम, 2022’ शीर्षक वाले नियम कहते हैं कि डॉक्टरेट डिग्री के किसी उम्मीदवार के पास ‘कुल न्यूनतम 75 प्रतिशत अंक या जहां कहीं भी ग्रेडिंग प्रणाली का पालन किया जाता है वहां के बिंदु वाले पैमाने पर समकक्ष ग्रेड होने चाहिए.‘
यदि उम्मीदवार के पास चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम में 75 प्रतिशत अंक नहीं हैं, तो उसे एक वर्षीय मास्टर कोर्स प्रोग्राम पूरा करना होगा और उसमें कम से कम 55 प्रतिशत अंक प्राप्त करने होंगे.
नए प्रवेश नियम आगे कहते हैं, ‘कम से कम 55% अंकों के साथ, या जहां कहीं भी ग्रेडिंग प्रणाली का पालन किया जाता है वहां बिंदु वाले पैमाने पर इसके समकक्ष ग्रेड के साथ, 4 साल के स्नातक डिग्री प्रोग्राम के बाद 1 साल का मास्टर डिग्री प्रोग्राम या 3 साल के स्नातक डिग्री प्रोग्राम के बाद 2 साल का मास्टर डिग्री प्रोग्राम या योग्यता को किसी सांविधिक नियामक निकाय (Statutory Regulatory Body) द्वारा दी गयी मास्टर डिग्री के समकक्ष घोषित किया जाता है.’
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पियर-रिव्यूड जर्नल में प्रकाशन की जरूरत नहीं
यूजीसी ने पीएचडी के लिए ‘पियर-रिव्यू जर्नल में पेपर पब्लिशिंग’ (सहकर्मी-समीक्षित पत्रिकाओं में प्रकाशन) वाली अनिवार्य शर्त को भी हटा दिया है.
साल 2016 के पीएचडी नियमों में कहा गया था कि पीएचडी के शोध छात्रों को अपने डिज़र्टेशन/थीसिस पर निर्णय के लिए उन्हें करने से पहले एक रेफरीड जर्नल (अनुशंसित पत्रिका) में कम से कम एक शोध पत्र प्रकाशित करना चाहिए और सम्मेलनों/सेमिनारों में दो पेपर (शोध पत्रों) की प्रस्तुतियां देनी चाहिए’.
इस बारे में बात करते हुए यूजीसी के अध्यक्ष प्रोफेसर एम. जगदीश कुमार ने कहा, ‘पियर-रिव्यूड जर्नल्स में रिसर्च पेपर्स (शोध पत्रों) का प्रकाशन अब अनिवार्य नहीं हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पीएचडी स्कॉलर इसे पूरी तरह से बंद कर दें.’
उन्होंने आगे कहा: ‘उच्च गुणवत्ता वाले शोध पर ध्यान केंद्रित करने से अच्छी पत्रिकाओं में प्रकाशन अवश्य होगा, भले ही यह अनिवार्य न हो. जब वे रोजगार या डॉक्टरेट के बाद के अन्य अवसरों के लिए आवेदन करते हैं तो यह उनके महत्त्व में वृद्धि करेगा.‘
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कुछ क्लाज़ के साथ अंशकालिक PhD की अनुमति
नए नियम कहते हैं की पीएचडी के लिए छात्रों को प्रवेश देने के लिए विभिन्न संस्थान अपनी अलग प्रवेश परीक्षा भी आयोजित कर सकते हैं.
उम्मीदवार को तब राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) या इसी तरह की किसी अन्य परीक्षा में शामिल होने की आवश्यकता नहीं होगी. ‘प्रवेश परीक्षा में 50 प्रतिशत अंक रिसर्च मेथडॉलजी के लिए और 50 प्रतिशत विषय विशेष के लिए शामिल होंगे.
आयोग नेट के माध्यम से उत्तीर्ण छात्रों हेतु 40 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने की योजना बना रहा था, लेकिन यह क्लॉज़ अंतिम नोटिफिकेशन में जगह नहीं बना पता क्योंकि इस पर कोई सहमति नहीं थी.’
इसके अलावा, आयोग ने उम्मीदवारों को पार्ट-टाइम (अंशकालिक) मोड के माध्यम से पीएचडी करने की भी अनुमति दी है, ’बशर्ते अन्य सभी शर्तें पूरी होती हों.’.
नियमों के अनुसार, शिक्षण संस्थान को उस संगठन के उपयुक्त प्राधिकारी से ‘अनापत्ति प्रमाण पत्र (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट-एनओसी)’ की आवश्यकता होगी जहां उम्मीदवार कार्यरत है.
एनओसी में स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए कि उसे अंशकालिक आधार पर पढ़ाई करने की अनुमति दी जाती है. नए नियम के अनुसार इसमें कहा जाना चाहिए कि ‘उनके आधिकारिक दायित्व उन्हें अनुसंधान के लिए पर्याप्त समय देने की अनुमति देते हैं; और यदि आवश्यक हो, तो उसे पाठ्यक्रम कार्य पूरा करने के उसके दायित्व से मुक्त कर दिया जाएगा.’
ये नियम अधिसूचना की तारीख से ही तत्काल प्रभाव से लागू होते हैं. अधिसूचना में आगे कहा गया है कि 1 जुलाई, 2009 के बाद पंजीकृत कोई भी पीएचडी 2009 या 2016 के नियमों द्वारा शासित होगी.
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