नयी दिल्ली, छह मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को इस दलील को खारिज कर दिया कि वर्ष 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड मामले में दोषियों की अपील पर दो न्यायाधीशों की नहीं बल्कि तीन न्यायाधीशों की पीठ को सुनवाई करनी चाहिए, क्योंकि यह मामला मृत्युदंड का है।
न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने दो दोषियों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े की दलील को खारिज कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि तीन न्यायाधीशों की पीठ को उन मामलों में अपीलों पर सुनवाई करनी होती है जिनमें उच्च न्यायालयों ने या तो मृत्युदंड की पुष्टि की है या पक्षकारों की अपील सुनने के बाद उसे सजा दी है, लेकिन गुजरात उच्च न्यायालय ने वर्तमान मामले में मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया है।
शीर्ष न्यायालय की संविधान पीठ ने सितंबर 2014 में कहा था कि तीन न्यायाधीशों की पीठ ऐसे सभी मामलों में अपीलों पर सुनवाई करेगी जिनमें उच्च न्यायालय द्वारा मृत्युदंड दिया गया हो।
न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा, ‘‘वर्तमान मामले में गुजरात उच्च न्यायालय ने 11 दोषियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया और मृत्युदंड नहीं दिया। इस मामले में अधीनस्थ अदालत ने मृत्युदंड सुनाया था।’’
न्यायाधीश ने कहा कि नियम और सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय वर्तमान मामले में अपीलों की सुनवाई दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा करने पर रोक नहीं लगाता।
हेगड़े ने लाल किला आतंकवादी हमले का जिक्र किया जिसमें मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक को मौत की सजा सुनाई गई थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘‘मान लीजिए, दो न्यायाधीशों की यह पीठ कुछ आरोपियों को मौत की सजा देने का फैसला करती है तो इस पर तीन न्यायाधीशों की एक अन्य पीठ के सामने फिर से बहस करनी होगी।’’
पीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने अपनी अपील में 11 व्यक्तियों की मृत्युदंड की बहाली की मांग की थी, जिनकी मृत्युदंड की सजा को उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास में बदल दिया था।
पीठ ने कहा, ‘‘हमने नियम तीन का अवलोकन किया है, जिसके अनुसार मृत्युदंड दिए जाने या इसकी पुष्टि किए जाने से जुड़ी अपील या अन्य कार्यवाही की सुनवाई कम से कम तीन न्यायाधीशों वाली पीठ द्वारा की जाएगी।’’
पीठ ने कहा, ‘‘आपत्ति खारिज की जाती है।’’ इसके बाद मामले में अंतिम सुनवाई शुरू की।
हेगड़े अब्दुल रहमान धनतिया का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और उन्होंने अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही का उल्लेख किया, जिन्होंने दोषी के खिलाफ गवाही दी थी।
उन्होंने घटना का उल्लेख किया और साबरमती एक्सप्रेस की एस6 बोगी का नक्शा दिखाया। इसके विपरीत, राज्य के वकील ने प्रारंभिक जांच में देरी को उचित ठहराया और कहा कि ट्रेन में आग लगाने की घटना के तुरंत बाद पूरा गुजरात सांप्रदायिक दंगों की चपेट में आ गया।
अभियोजक ने कहा, ‘‘राज्य में शांति की स्थिति नहीं थी। गोधरा सहित पूरा राज्य दंगों का सामना कर रहा था और पुलिसकर्मी कानून-व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने में लगे थे और यहां तक कि पड़ोसी राज्यों से भी पुलिस सहायता मांगी गई थी।’’
उन्होंने कहा कि समग्र स्थिति को ध्यान में रखते हुए जांच में देरी महत्वहीन थी। उन्होंने कहा कि देरी का उपयोग सबूत तैयार करने या गढ़ने के लिए नहीं किया गया था। उन्होंने कहा कि ‘पंचनामा’ में अपराध का विवरण सही ढंग से दर्ज किया गया था।
पंचनामा एक औपचारिक दस्तावेज है जिसमें अपराध स्थल की जांच का विवरण दर्ज किया जाता है और इसमें गवाहों की उपस्थिति शामिल होती है जो जांच अधिकारी द्वारा की गई कार्यवाही और टिप्पणियों को सत्यापित करते हैं।
हेगड़े ने अभियोजन पक्ष के मामले का उल्लेख किया और कहा कि उत्तर प्रदेश के अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और बजरंग दल द्वारा ‘राम यज्ञ’ का आयोजन किया गया था और गुजरात से हजारों ‘कारसेवक’ वहां गए थे।
साबरमती एक्सप्रेस अयोध्या से अहमदाबाद के लिए कई ‘कारसेवकों’ को लेकर जा रही थी, जब यह 27 फरवरी, 2002 को गोधरा में विलंब से सुबह करीब 7.45 बजे पहुंची।
हेगड़े ने दलील दी कि कुछ ‘कारसेवकों’ ने नारे लगाए और कुछ ने मुस्लिम लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार किया।
हेगड़े ने बताया कि चेन खींचने की घटना सुबह करीब 7.45 बजे हुई और अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि पार्सल ऑफिस के पीछे से मुस्लिम लोगों की भीड़ ने ट्रेन पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया।
अभियोजन पक्ष के मामले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि ट्रेन सुबह करीब 7.55 बजे वडोदरा की ओर बढ़ने लगी और इसका वैक्यूम कम होने लगा और इसके परिणामस्वरूप यह ‘ए’ केबिन के पास रुक गई, जहां 900 से अधिक मुस्लिमों ने लाठी, लोहे की पाइप और तलवारों से लैस होकर ट्रेन को घेर लिया।
उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष के अनुसार हमलावरों ने जलते हुए कपड़े फेंके, लेकिन ट्रेन में आग नहीं लगी।
ऐसा कहा जा रहा है कि हमलावरों ने कोच एस6 में जबरन प्रवेश किया, जिन्होंने एस7 और एस6 के बीच के ‘कैनवास वेस्टिबुल’ को काट दिया और हमलावर पेट्रोल से भरे गैलन के साथ कोच के अंदर घुसे और उसे वहां उड़ेल दिया।
हेगड़े ने अभियोजन पक्ष के मामले को दोहराते हुए कहा कि अमन गेस्ट हाउस में एक बैठक हुई थी, जहां गेस्ट हाउस के मालिक आरोपी अब्दुल रजक और सलीम पानवाला (फरार) ने एक दिन पहले 140 लीटर पेट्रोल खरीदा था।
सुनवाई बुधवार को फिर से शुरू होगी। 27 फरवरी, 2002 को आगजनी की घटना में 59 लोग मारे गए थे, जिससे राज्य में बड़े पैमाने पर दंगे भड़क उठे थे।
गुजरात उच्च न्यायालय के अक्टूबर 2017 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में कई अपील दायर की गईं, जिसमें कई दोषियों की दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया और 11 दोषियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया।
गुजरात सरकार ने फरवरी 2023 में कहा था कि वह उन 11 दोषियों के लिए मृत्युदंड का अनुरोध करेगी जिनकी सजा को उच्च न्यायालय ने आजीवन कारावास में बदल दिया था।
भाषा संतोष रंजन
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