नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र के एक विशेष वीडियो अभियान में, दो भारतीय महिलाओं को शामिल किया गया है, जिसमें शांति मिशन्स और विशेष राजनीतिक मिशन्स में लगी महिलाओं को प्रोफाइल किया गया है.
‘शांति मेरा मिशन है’ नाम का ये अभियान, 31 अक्तूबर को आने वाली यूएन सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1325 की 20वीं वर्षगांठ से पहले, एक अक्तूबर को लॉन्च किया गया, और इसमें अलग अलग देशों की कुल नौ महिलाओं में, भारतीय पुलिस ऑफिसर रागिनी कुमारी, और मानवाधिकार प्रोफेशनल हुमा ख़ान शामिल हैं.
यूएन के बयान के अनुसार, ये अभियान महासचिव की सिस्टम वाइड जेंडर पैरिटी एंड यूनिफॉर्म्ड जेंडर पैरिटी स्ट्रैटजीज़ के समर्थन में लॉन्च किया गया, और इसमें युनाइटेड नेशंस डिपार्टमेंट ऑफ ग्लोबल कम्यूनिकेशंस (डीजीसी), डिपार्टमेंट ऑफ पीस ऑपरेशंस (डीपीओ), और डिपार्टमेंट ऑफ पोलिटिकल एंड पीस बिल्डिंग ऑपरेशंस (डीपीपीए) ने सहयोग किया है.
डीपीओ द्वारा जारी यूनिफॉर्म्ड जेंडर पैरिटी स्ट्रैटजी 2018-2028 में कहा गया है, कि इसका उद्देश्य ये सुनिश्चित करना है, कि युनाइटेड नेशंस पीस कीपिंग के वर्दीधारी घटक में विविधता हो, और उसमें महिलाएं भी शामिल हों, जिनमें यूएन द्वारा सर्व किए जा रहे समुदायों की झलक दिखाई दे.
यूएन के बयान में उल्लेख किया गया है, कि अभियान का उद्देश्य यूएन शांति मिशंस, और विशेष राजनीतिक मिशंस में, महिलाओं की सहभागिता और उनके काम शामिल हों- वर्दीधारी और नागरिक कर्मी दोनों- उनके योगदान को पहचाना जाए, और उसके बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए, और ज़्यादा महिलाओं को, दुनिया भर में यूएन मिशंस में काम करने के लिए आकर्षित किया जाए.
इसमें ये भी कहा गया कि नौ छोटे प्रोफाइल वीडियोज़, यूएन मिशन में सेवा के दौरान, दैनिक जीवन को वास्तविक रूप में दिखाते हुए, महिलाओं के गर्व की भावना को भी व्यक्त करेंगी.
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‘ज़्यादा महिलाओं को संघर्ष क्षेत्रों में काम करना चाहिए’
रागिनी कुमार दक्षिणी सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन में असेंसमेंट टीम लीडर थीं.
दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, कि उनका कार्यकाल जून 2020 में पूरा हो गया था, और उनके लिए ये अनुभव बहुत अच्छा रहा.
उन्होंने ये भी कहा, कि पीड़ितों के साथ काम करते हुए, उनके अंदर इंसानियत के प्रति, एक क़रीबी और वास्तविक नज़रिया पैदा हुआ.
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को, संघर्ष क्षेत्रों में काम करने के लिए आगे आना चाहिए’.
यूएन वीडियो में उन्होंने कहा, कि आम नागरिकों को सुरक्षा मुहैया कराने का उनका अनुभव, बहुत फायदेमंद रहा है.
उन्होंने कहा,‘यूएन शांति मिशन में शामिल होना मेरा एक सपना था, और ये मेरा सपना पूरा होने ऐसा है’.
गृह मंत्रालय में कुछ समय बिताने के बाद, फरवरी 2019 में, दक्षिण सूडान शांति मिशन में सेवाएं देने के लिए, कुमारी युनाइटेड नेशंस पुलिस (यूएनपोल) में शामिल हो गईं.
उन्होंने बताया कि उनके पति भी मिशन में थे, जिन्होंने उन्हें प्रेरित किया.
उनका काम था राजधानी जूबा में, पीस कीपिंग मिशन की दो नागरिक सुरक्षा साइट्स पर, मानवाधिकार उल्लंघनों और दूसरे अपराधों के बारे में, जानकारियां जमा करना, जहां 2013 और 2016 के अंतर जातीय संघर्ष से, आंतरिक रूप से विस्थापित हुए क़रीब 30,000 लोग रहते हैं.
उन्होंने कहा कि संघर्ष के बाद के किसी देश में, या संघर्ष के बाद के किसी ज़ोन में, इन अपराधों के शिकार ज़्यादातर महिलाएं और बच्चे होते हैं, और ये पीड़ित किसी महिला अधिकारी के साथ ज़्यादा सहज महसूस करते हैं.
उन्होंने कहा,‘मुझे फीडबैक मिला…उन लोगों के लिए सच में ये एक बहुत बड़ा अनुभव था, जिनको आपकी सहायता चाहिए, जिनमें आप उम्मीद जगा सकते हैं. आप उस उम्मीद का स्रोत हैं’.
उन्होंने आगे कहा कि नीली टोपी पहनने से, उन्हें ताक़त और संतोष का अहसास होता है.
दो बच्चों की मां कुमारी, योग भी करती हैं, और संगीत की भी शौक़ीन हैं.
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‘महिलाओं के अधिकार मेरा जुनून’
यूएन मिशन में सीनियर महिला संरक्षण अधिकारी, हुमा ख़ान ने अपना कार्यकाल फरवरी 2018 में, दक्षिण सूडान में शुरू किया, और क़रीब दो साल से वहीं पर तैनात हैं. ख़ान एक अनुभवी मानवाधिकार प्रोफेशनल हैं.
अपने वीडियो में ख़ान ने कहा, कि उन्होंने अलग अलग ग्रुप्स के साथ काम किया था, जिनमें हथियारबंद समूहों से लेकर उग्रवादी, सरकारें, और सिविल सोसाइटी शामिल हैं.
वीडियो में उन्होंने कहा, ‘यूएन में काम करने से पहले, मैंने सिविल सोसाइटी संस्थाओं में बतौर वकील काम किया था. महिला अधिकार मेरा जुनून है, और संघर्ष से मेरे सरोकार ने, जो मेरे अपने देश से शुरू हुआ, मुझे बहुत जिज्ञासु बना दिया कि महिलाओं के साथ क्या होता है, ख़ासकर संघर्ष के समय’.
दक्षिण सूडान से पहले ख़ान बतौर एक्सपर्ट, यूएन वूमन यूक्रेन के साथ जुड़ीं, जहां उन्होंने यूक्रेन सरकार के लिए, संघर्ष से जुड़ी यौन हिंसा की समस्या से निपटने के लिए, एक राष्ट्रीय रणनीति तैयार करने पर काम किया. इसके अलावा श्रीलंका में मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के साथ सलाहकार रहीं, अफगानिस्तान में जेंडर एंड वीमनंस राइट्स के लिए टीम लीडर रहीं, और गुजरात दंगों में यौन हिंसा झेल चुकी पीड़िताओं के साथ भी काम किया.
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