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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतमसूद अज़हर मामले में संयुक्तराष्ट्र में भारत की जीत से मोदी की छवि काफी मज़बूत हुई है

मसूद अज़हर मामले में संयुक्तराष्ट्र में भारत की जीत से मोदी की छवि काफी मज़बूत हुई है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी भाषण में इस कूटनीतिक जीत का श्रेय लेने में कोई देरी नहीं की.

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संयुक्तराष्ट्र के मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकवादियों की सूची में डालने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस की अगुआई वाली पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की उसके हील-हवाले और ढुलमुल रवैये के लिए खिंचाई की.

प्रधानमंत्री मोदी ने राजस्थान में अपने चुनावी भाषण में इस कूटनीतिक जीत का श्रेय लेने में कोई देरी नहीं की. और ऐसा करते हुए उन्होंने इस कड़े चुनावी मुकाबले में राष्ट्रीय सुरक्षा पर केंद्रित भाजपा के चुनाव अभियान को एक बड़ी ताकत दी है.

पर्याप्त राजनीतिक समझ नहीं रखने वाले लोग ही इतनी बड़ी जीत पर मोदी जैसे दिग्गज चुनाव प्रचारक के चुप रहने की उम्मीद करेंगे, या सोचेंगे कि मोदी 2019 के संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद के इस फैसले के लिए, देश के पहले प्रधानमंत्री से शुरू करते हुए, हर किसी का आभार व्यक्त करने लगेंगे.

निरर्थक दलील

पर, विपक्ष के कुछ नेता संयुक्तराष्ट्र के फैसले की टाइमिंग को लोकसभा चुनावों से जोड़ने का निरर्थक प्रयास कर रहे हैं. इससे बड़ा असत्य और क्या होगा. बुधवार की घोषणा से पहले सुरक्षा परिषद की 1267 प्रतिबंध समिति की अंतिम बैठक 23 अप्रैल को हुई थी, और तब चीन ने अज़हर के मुद्दे पर फैसले के लिए और समय की मांग की थी.

बताया जाता है कि अवरोध खड़ा करने की अपनी नीति के कारण चीन की अमेरिका से सीधे टकराव की स्थिति बन गई थी, क्योंकि अमेरिका अज़हर को आतंकवादी घोषित करने के मुद्दे के तत्काल समाधान पर ज़ोर दे रहा था. सदस्य देशों के आपत्ति दर्ज़ कराने के लिए तय प्रक्रियागत ‘यथास्थिति की अवधि’ पहली मई को समाप्त हो गई. और, निर्धारित अवधि में कोई आपत्ति दर्ज़ नहीं कराए जाने के कारण सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति ने मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में डाल दिया.

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संयुक्तराष्ट्र में लंबे समय से लंबित एक मांग को पूरा कराने में सफल रही भाजपा सरकार का तहेदिल से समर्थन करने के बजाय विपक्ष अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किए जाने के फैसले में मीनमेख निकालने में लगा हुआ है.

लोकसभा चुनाव पर असर

संयुक्तराष्ट्र द्वारा अज़हर को वैश्विक आतंकवादियों की सूची में डाले जाने के बाद अब संबंधित प्रावधानों के अनुरूप पाकिस्तान को उसकी परिसंपत्तियों को फ्रीज करने और उसकी विदेश यात्रा पर पूर्ण रोक लगाने जैसे कदम उठाने पड़ेंगे.

बेशक, इस फैसले का लोकसभा चुनाव पर भी असर पड़ेगा.

चुनाव की घोषणा होने के साथ ही कांग्रेस ने राफेल सौदे पर भाजपा को घेरने के लिए ‘चौकीदार चोर है’ के नारे के साथ एक आक्रामक अभियान शुरू कर दिया था.


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उस समय तक, जनमानस पर बालाकोट हवाई हमले का असर क्षीण होने की शुरुआत हो चुकी थी. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही राष्ट्रपतीय शैली के प्रचार अभियान के साथ चुनावी मुकाबले में उतर रहे थे.

यही वो अवसर था जब भाजपा ने राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा पर केंद्रित प्रचार अभियान के साथ जवाबी हमला शुरू किया. जनता को दिया जा रहा बुनियादी संदेश ये था: सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत पुलवामा आतंकी हमले के मद्देनज़र पाकिस्तान को करारा जवाब दे सकता है.

‘दुश्मन को घर में घुस के मारेंगे’ वाला मोदी का सख़्त बयान भारतीयों को बहुत भाया. एक मज़बूत और विश्वसनीय विपक्ष की अनुपस्थिति में मोदी का संदेश लोगों के दिमाग में बैठ गया. आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी उपायों जैसे मुद्दों के रहते बेरोज़गारी और नोटबंदी जैसे विषय महत्वहीन हो गए.

यहां तक कि महाराष्ट्र की शिवसेना जैसी मोदी की कटु आलोचक पार्टी को भी भाजपा के साथ गठबंधन समझौते में बंधना और सुरक्षा पर मोदी के सख्त रवैये को स्वीकारना पड़ा.

मसूद अज़हर को आतंकवादियों की सूची में डालने के संयुक्तराष्ट्र के कदम पर चीन की सहमति से आतंकवाद के खिलाफ मोदी की सख्त नीति पर स्वीकृति की एक और मुहर लग गई है.


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लोकसभा चुनाव के अगले तीन चरणों में हिंदी पट्टी के राज्यों की उन कई सीटों पर मतदान होगा जहां कि राष्ट्रीय सुरक्षा एक भावनात्मक मुद्दा है. राजस्थान के बीकानेर और श्रीगंगानगर जैसे सीमावर्ती जिलों में पांचवें चरण में मतदान होगा और आतंकवादियों के खिलाफ मोदी की सख्त कार्रवाई को वहां के मतदाताओं का समर्थन मिलना तय है.

मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किए जाने से कार्यक्षम नेता की मोदी की छवि को बड़ा बल मिला है, और परिस्थितियां भाजपा के और अधिक अनुकूल हो गई हैं. आमजनों में यही चर्चा है कि स्थानीय उम्मीदवार चाहे जो भी हो, लोग सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट देंगे.

(इस खबर के अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक ‘ऑर्गनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. लेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं.)

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