नई दिल्ली: ‘पिछले 70 सालों में कोई भी सरकार किसान हितैषी नहीं रही, लेकिन मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार अब तक की सबसे किसान विरोधी सरकार है.’ यह वाक्य किसान समस्याओं को लेकर सरकारों की संवेदनशीलता की संपूर्ण कहानी कहता है. अगर वर्षों से विभिन्न सरकारों ने किसान विरोधी नीतियां अपनाईं और नई सरकार उनसे भी आगे निकली तो इन प्रदर्शनों का किसानों का फायदा क्या हुआ.
मंदसौर में किसानों पर गोलीबारी के बाद देश भर के 200 से अधिक संगठन किसानों के कुछ मूल मुद्दों को लेकर एकजुट होने पर सहमत हुए और एक मंच बनाया अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति. इस बैनर के तले ये सभी 200 से अधिक संगठन एक साथ आंदोलन कर रहे हैं.
पिछले साल यानी 2017 के अंत में भी किसानों ने दिल्ली में दो दिवसीय किसान संसद लगाई थी और सरकार के समक्ष अपनी प्रमुख मांगें रखी थीं. वे मांगें अब भी जारी हैं. हाल ही में महाराष्ट्र में भी करीब तीस हजार किसानों ने उन्हीं मांगों को लेकर 182 किलोमीटर लंबा मार्च निकाला जो वर्षों से जारी हैं. पिछले दो सालों में मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में लगातार किसान आंदोलन तेज होता गया है. केंद्र सरकार यह दावा कर रही है कि उसने किसानों के लिए कई सुधारात्मक कदम उठाए हैं और किसानों की आय दोगुनी हो रही है.
यह भी पढ़ें: देश भर के किसान दिल्ली पहुंचे हैं, लेकिन ‘दिल्ली’ सो रही है
क्या सरकार का यह दावा सही है? इस सवाल का जवाब सभी किसान संगठन ना में देते हैं. उनका कहना है कि सरकार जो भी दावे कर रही है, वे सभी हवाई दावे हैं. सरकार ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य साढ़े सत्रह सौ किया लेकिन किसानों को देश भर में कहीं भी यह मूल्य नहीं मिला. वे 800 से लेकर 1400 रुपये तक बेचने पर मजबूर हुए.
कभी राज्यों में तो कभी दिल्ली आकर प्रदर्शन करना किसानों के उस संघर्ष का अभिन्न हिस्सा है जो वे खेती से रोजी रोटी चलाने के लिए वर्ष भर करते हैं. लेकिन जिस तरह से किसान साल भर खेतों में मेहनत करता है, वैसे ही नेता भी अपने भाषणों में किसानों को चांद तारे तोड़कर दे देता है. किसानों की जमीनी समस्या पर हवाई भाषण देना सियासत की चुनावी रवायत है.
देश भर के 200 से ज्यादा किसान संगठन दो साल से एक बैनर तले आकर प्रदर्शन कर रहे हैं. बीते 29 और 30 नवंबर को किसानों ने दिल्ली में फिर दो दिवसीय प्रदर्शन आयोजित किया. इस दो दिवसीय किसान रैली का समापन तमाम राजनीतिक दलों के भाषण से हुआ.
यह भी पढ़ें: देश के 206 किसान संगठन राजधानी दिल्ली क्यों आ रहे हैं?
देश की कुल 21 पार्टियों ने किसानों के इस मंच पर आकर उन्हें समर्थन दिया. राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी, शरद पवार, धर्मेंद्र यादव, डी राजा, फारूक अब्दुल्ला जैसे नेताओं ने बड़े तीखे तेवर के साथ मोदी सरकार को चुनौती दी कि अगर वे किसानों का कर्ज माफ नहीं करते तो जनता उन्हें हरा देगी. उन्होंने मोदी सरकार को किसानों के साथ धोखा करने, वादे पूरे न करने और उसके किसान विरोधी होने का आरोप लगाया.
लेकिन क्या किसानों की सारी समस्याएं पिछले चार सालों में उपजी हैं? इस सवाल के जवाब में सांसद राजू शेट्टी कहते हैं, ‘मैं पूरी जिम्मेदारी से कहना चाहता हूं कि किसानों की इस दुर्दशा के लिए सत्ता में रह चुकीं सभी पार्टियां जिम्मेदार हैं. आज राहुल गांधी विपक्ष में रहकर जैसी बातें करते हैं, जब वे सत्ता में थे तब ऐसी बातें नहीं करते थे. तब किसान उनसे सवाल कर रहे थे. अगर वे सत्ता में आए तो यही सवाल उनके सामने आएंगे.’
राजू शेट्टी महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन के नेता हैं और पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी स्वाभिमानी पक्ष ने भाजपा के साथ गठबंधन किया और वे कोल्हापुर की हातकणंगले सीटे से सांसद चुने गए. हालांकि, अब वे किसानों के मुद्दे पर वे भाजपा से अलग हो चुके हैं. वे किसान संगठनों की ओर से संसद में दो प्राइवेट मेंबर बिल पेश कर रहे हैं जिसे 21 पार्टियों ने अपना समर्थन दिया है.
पिछले दो सालों से ये सभी संगठन साथ आकर आंदोलन कर रहे हैं. पिछले दो साल में इस सामूहिक सांगठनिक आंदोलन का क्या हासिल हुआ? इस सवाल पर राजू शेट्टी कहते हैं, ‘यह सही है कि अब तक हमें कुछ भी ठोस हासिल नहीं हुआ है. लेकिन लगातार आंदोलन करके हमने एक प्रेशर ग्रुप तैयार किया है. आज 21 पार्टियां किसानों के साथ एक मंच पर आ गई हैं. आगे जो भी सरकार रहेगी, उसे किसानों की बात सुननी पड़ेगी. हम आगे भी लगातार सरकारों पर दबाव बनाएंगे कि किसानों की समस्याओं पर प्राथमिकता पूर्वक ध्यान दिया जाए.’
स्वराज अभियान के अध्यक्ष योगेंद्र यादव भी इसी तरह का नजरिया पेश करते हैं कि ‘किसान गरीब है और संख्या में ज्यादा होते हुए भी उतना प्रभावशाली नहीं है. किसानों को अपनी एक समस्या के लिए चार बार आंंदोलन करना पड़ता है. एक बार समस्या को समस्या कहने के लिए आंदोलन, फिर समस्या के समाधान के लिए आंदोलन, फिर उसे लागू करने के लिए आंदोलन, फिर उसे जनता तक पहुंचाने के लिए आंदोलन. क्योंकि सरकारें किसानों के मसले पर गंभीर नहीं हैं. लेकिन इतने संगठनों का एक साथ आना अपने आप में ऐतिहासिक है. इतने संगठनों का गुस्सा कोई भी सरकार बर्दाश्त नहीं कर सकती. वे अगर किसानों की बात नहीं सुनेंगे तो चुनाव में उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.’
पिछले वर्षों के लगातार आंदोलनों से क्या हासिल हुआ, इस सवाल पर किसान नेता बीएम सिंह कहते हैं, ‘मोदी सरकार ने बहुत बड़े बड़े वादे किए थे लेकिन कोई भी वादा पूरा नहीं किया. वे लगातार झूठ बोलते रहे और अब भी झूठ बोलते हैं. लेकिन ऐसे हमेशा नहीं चलता रहेगा. हम यही बताने के लिए यहां इकट्ठा हुए हैं जो किसानों की मांग नहीं मानेगा, जो किसानों के हित में काम नहीं करेगा, उसे हम उखाड़ फेंकेंगे. हम नरेंद्र मोदी को बताना चाहते हैं कि अब मोदी के जुमले नहीं चलेंगे.’