मुंबई: महाराष्ट्र के नासिक जिले के एक शांत शहर में एक चौराहे पर धमाका हुए करीब 17 साल हो चुके हैं. अब मुंबई की एक विशेष एनआईए अदालत 2008 मालेगांव ब्लास्ट केस में फैसला सुनाने जा रही है. भगवा कपड़े पहने प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफ्तारी से लेकर सरकारी एजेंसियों के बीच खींचतान तक, इस मामले में कई मोड़ आए.
विशेष एनआईए अदालत ने जुलाई 2024 से रोजाना सुनवाई शुरू की थी और अब फैसला सुनाने जा रही है. दिप्रिंट इस केस और सालों में हुए घटनाक्रम को तफ्सील से बता रहा है.
29 सितंबर 2008 को, रात करीब 9.35 बजे रमज़ान के पवित्र महीने और नवरात्रि की पूर्व संध्या पर, मालेगांव में शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट कंपनी के सामने एक एलएमएल फ्रीडम मोटरसाइकिल में छिपाकर रखे गए विस्फोटक फट गए. इस धमाके में छह लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग घायल हुए.
ब्लास्ट के बाद शुरुआती जांच महाराष्ट्र एंटी-टेररिज़्म स्क्वाड (एटीएस) और उसके प्रमुख, दिवंगत हेमंत करकरे ने की थी. उन्होंने धमाके में इस्तेमाल हुई मोटरसाइकिल को सूरत से प्रज्ञा सिंह ठाकुर तक ट्रेस किया, जो मध्य प्रदेश की पूर्व अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) कार्यकर्ता थीं. उन्हें अक्टूबर 2008 में गिरफ्तार किया गया था.
करकरे के नेतृत्व में पुणे, नासिक, इंदौर और भोपाल में छापे मारे गए, जिससे जांचकर्ताओं को इंदौर में स्थित एक कथित हिंदू चरमपंथी तक पहुंच मिली. जांच में सेना के एक अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय के नाम सामने आए, जिन्हें 4-5 नवंबर 2008 को गिरफ्तार किया गया. हालांकि, करकरे 26/11 मुंबई आतंकी हमले में मारे गए.
जांच के दौरान, एटीएस को आरोपियों के हिंदू कट्टरपंथी संगठन अभिनव भारत और एक स्वयंभू साधु सुधाकर द्विवेदी उर्फ दयानंद पांडे से कथित संबंध मिले. एटीएस के मुताबिक आरोपियों ने पुणे के पास एक जंगल में विस्फोटकों का प्रदर्शन किया था, लेकिन बचाव पक्ष के वकीलों ने कहा कि इसका समर्थन करने के लिए स्थानीय ग्रामीणों की कोई गवाही नहीं दी गई.
इसके बाद, 20 जनवरी 2009 को भारतीय दंड संहिता (IPC), महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA), गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धाराओं के तहत 4,528 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की गई.
जुलाई 2009 में, एमसीओसीए की धाराएं हटा दी गईं, लेकिन एक साल बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने इन्हें फिर से बहाल कर दिया.
दिसंबर 2010 में, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने एक स्वयंभू संन्यासी नबा कुमार सरकार उर्फ असीमानंद को मामले में गिरफ्तार किया.
खबरों के अनुसार, असीमानंद ने मजिस्ट्रेट के सामने कथित तौर पर कबूल किया था कि 2006 और 2008 के मालेगांव ब्लास्ट हिंदू उग्रवादियों द्वारा “जिहादी आतंकवाद” के बदले के रूप में किए गए थे. उन्होंने कहा कि मुस्लिमों को निशाना बनाने की योजना एक बार के आरएसएस प्रचारक सुनील जोशी के नेतृत्व में बने एक समूह ने बनाई थी. उन्होंने यह भी दावा किया कि यह समूह समझौता एक्सप्रेस, अजमेर दरगाह और मक्का मस्जिद के 2007 के धमाकों के पीछे भी था.
लेकिन बाद में असीमानंद ने अपना बयान वापस ले लिया और अब उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है.
21 अप्रैल 2011 को मुंबई की विशेष एमसीओसीए अदालत में एक पूरक चार्जशीट दाखिल की गई, जिसमें एटीएस ने 14 आरोपियों—ठाकुर, पुरोहित, उपाध्याय, द्विवेदी, शिवनारायण कालसांगरा, श्याम साहू, समीर कुलकर्णी, अजय उर्फ राजा रहीरकर (अभिनव भारत के कोषाध्यक्ष), राकेश धवाडे, जगदीश म्हात्रे, सुधाकर चतुर्वेदी, प्रवीण टकाळकी, रामचंद्र कालसांगरा और संदीप डांगे—के नाम शामिल किए.
अप्रैल 2011 में केंद्र सरकार ने मालेगांव (2006 और 2008), मक्का मस्जिद (2007) और अजमेर दरगाह (2007) ब्लास्ट मामलों की जांच एनआईए को सौंप दी.
एनआईए 2010 से समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस की जांच कर रही थी.
एनआईए ने केस की जिम्मेदारी संभाली
एनआईए ने जांच में दावा किया कि 2008 के मालेगांव विस्फोट को हिंदू कट्टरवादी समूह ने अंजाम दिया था, जिसकी अगुवाई सुनील जोशी और प्रज्ञा सिंह ठाकुर कर रहे थे.
सुनील जोशी की 29 दिसंबर 2007 को मध्य प्रदेश के देवास में उनके किराए के मकान के पास ही हत्या कर दी गई थी.
एजेंसी ने यह भी कहा कि लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित प्रज्ञा ठाकुर को जानते थे और विस्फोट में लॉजिस्टिक भूमिका निभाई. पुरोहित, जो सैन्य खुफिया और आतंकवाद विरोधी गतिविधियों में जुड़े थे, उनकी भूमिका इस पूरे मामले में अहम मानी गई.
जांच में एनआईए ने यह भी कहा कि पुरोहित ने एक गवाह को RDX विस्फोटक दिखाया था, जिसे कथित तौर पर कश्मीर में सेना की कार्रवाई से प्राप्त किया गया था.
पुरोहित ने 2011 में जमानत के लिए हाई कोर्ट में अर्जी दी, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया.
हाई कोर्ट ने जमानत अस्वीकार करते हुए कहा कि अजय रहीरकर, प्रज्ञा सिंह ठाकुर, सुधाकर धर्म द्विवेदी (शंकराचार्य) और राकेश धवाडे ने 2006 में पुणे में अभिनव भारत ट्रस्ट नामक संस्था बनाई थी. इसे 9 फरवरी 2007 को रजिस्टर किया गया था. आरोप था कि उन्होंने ‘आर्यावर्त’ नामक ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की शपथ ली थी.
लेकिन 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि पुरोहित और सुधाकर धर्म द्विवेदी से NIA पूछताछ नहीं कर सकती। उस समय NIA यह जांच कर रही थी कि 2014 में केंद्र में भाजपा सरकार आई.
2015 में इस केस की विशेष सार्वजनिक वकील रोहिणी सालियन ने कहा कि NIA दबाव बना रही थी ताकि केस में नरमी दिखाए. उन्होंने एक अधिकारी से फोन आने की बात बताई, लेकिन NIA ने इन आरोपों को खारिज किया.
लगभग पांच साल जांच के बाद 2016 में NIA ने चार्जशीट दाखिल की, जिसमें ठाकुर को बरी किया गया और पुरोहित पर मामला चलाया गया – लेकिन साथ ही कहा गया कि सबूत कमजोर हैं.
एनआईए ने सभी आरोपियों पर MCOCA के आरोप हटा दिए और ATS की जांच में खामियों को बताया. पूरक चार्जशीट में ATS पर मानसिक दबाव के जरिए कबूलनामा खिंचवाने की बातें भी थीं.
चार्जशीट में कहा गया कि ATS ने पूर्व मामलों में राकेश धवाडे की संलिप्तता के आधार पर MCOCA लगाया था. लेकिन मामले में ATS द्वारा इसका उपयोग संदिग्ध माना गया.
जहां तक प्रज्ञा ठाकुर की बात है, ATS की 2011 चार्जशीट के अनुसार, धमाके में इस्तेमाल मोटरसाइकिल उनके नाम की थी. वह 2006 से आरोपियों की बैठकों में शामिल थी, जिसमें मुसलमान बहुल इलाकों को निशाना बनाने की योजना पर चर्चा हुई थी.
2008 के धमाके पर विभिन्न शहरों — फरीदाबाद, भोपाल, कोलकाता, जबलपुर, इंदौर और नासिक — में जनवरी से मीटिंग हुई. 11 अप्रैल 2008 की भोपाल मीटिंग में ठाकुर को धमाके के लिए लोगों को चुनने का जिम्मा सौंपा गया था. इसमें शामिल थे सुनील जोशी, रामचंद्र कालसंगरा और संदीप डांगे.
शुरुआत में ठाकुर पर इसलिए मामला दर्ज हुआ क्योंकि उस मोटरसाइकिल का रजिस्ट्रेशन उनके नाम था. लेकिन NIA ने बताया कि बाइक दो साल से कालसंगरा नाम के आरोपी द्वारा प्रयोग की जा रही थी.
NIA के इस चार्जशीट में ठाकुर को क्लीन चिट दी गई और अप्रैल 2017 में उन्हें जमानत मिली. पुरोहित को अगस्त 2017 में जमानत मिली.
लेकिन NIA की जमानत के बावजूद दिसंबर 2017 में अदालत ने आदेश दिया कि दोनों UAPA के तहत मुकदमे का सामना करें.
विशेष न्यायाधीश एस.डी. टेकाले ने कहा कि भोपाल मीटिंग को छोड़कर धमाके की योजना की कोई सीधी गवाही नहीं है. लेकिन उन्होंने राजीव गांधी की हत्या में नलिनी से जुड़े सुप्रीम कोर्ट फैसले का हवाला दिया कि षड्यंत्र आमतौर पर गुप्त स्थानों पर रचा जाता है.
जज ने कहा कि “शनंक का अस्तित्व और उद्देश्य दोनों परिस्थिति और आरोपी के व्यवहार से अनुमानित किए जाते हैं. उस बैठक की भाषा से लगता है कि उनका उद्देश्य मुस्लिम और ईसाइयों को छोड़कर हिंदू राष्ट्र बनाना था.”
अदालत ने कहा कि “मोटरसाइकिल जिस पर धमाका किया गया था, वह प्रज्ञा सिंह ठाकुर की थी. आरोपी नंबर 9 के बयान में उनकी जानकारी और आरोपी नंबर 1 ने कबूल किया था कि वह मोटरसाइकिल धमाका में प्रयोग हुई.”
जांच और सुनवाई के दौरान 300 से अधिक गवाह पेश किए गए, जिनमें से 35 से अधिक ने अपना बयान वापस लिया.
अदालत में यह मामला 2018 से चल रहा है, जहां IPC और UAPA की विभिन्न धाराओं में सात लोगों पर आरोप तय किए गए.
2019 में बीजेपी ने भोपाल से इस्तीफा दिए जाने वाले दिग्विजय सिंह के खिलाफ प्रज्ञा ठाकुर को उम्मीदवार बनाया और वे जीत गईं. हालांकि 2024 में पार्टी ने उन्हें फिर से नहीं उतारा.
सुनवाई के दौरान, चूंकि ठाकुर जमानत पर थीं, वे कोर्ट में कम ही पेश हुईं. उन्हें कई बार चेतावनी दी गई.
अभियोजन गवाहों की सुनवाई सितंबर 2023 में पूरी हुई. जुलाई 2024 से अदालत ने अंतिम बहस शुरू की और 19 अप्रैल 2025 तक रोज सुनवाई होती रही.
अप्रैल के पहले सप्ताह में विशेष NIA अदालत के जज ए.के. लाहोटी का नासिक में तबादला किया गया—तब जब फैसला सुनाया जाना था. स्थानांतरण आदेश 9 जून को लागू होना था, लेकिन उन्हें 31 जुलाई तक ट्रायल पूरा करने की अनुमति दी गई.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ‘यह साबित नहीं हुआ कि बम मोटरसाइकिल में रखा था’ — मालेगांव ब्लास्ट केस में सभी 7 आरोपी बरी हुए