नयी दिल्ली, 12 मार्च (भाषा) इसरो जासूसी मामले के पीछे छिपे सच को उजागर करने का दावा करते हुए एक नयी पुस्तक में यह खुलासा किया गया है कि कैसे सरकारी एजेंसियां रूस से भारत को क्रायोजेनिक रॉकेट प्रौद्योगिकी को अवैध रूप से स्थानांतरित करने संबंधी इसरो के असफल अभियान को दबाने की भरसक कोशिश कर रही हैं।
इस मामले के सुर्खियों में रहने के 27 साल बाद जे राजशेखरन नायर का कहना है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) जासूसी का मामला अभी भी समाप्त नहीं हुआ है।
नायर ने कहा, ”इस बार केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने जासूसी मामले (1994) में छह आरोपमुक्त आरोपियों में से एक एस. नंबी नारायणन की अवैध गिरफ्तारी और उसके बाद उन्हें दी गई यातना को लेकर केरल पुलिस के सात अधिकारियों और खुफिया ब्यूरो के 11 अधिकारियों (सभी सेवानिवृत्त) के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम), तिरुवनंतपुरम के समक्ष प्राथमिकी दर्ज की है।”
नायर ने अपनी नयी पुस्तक ”क्लासिफाइड: हिडन ट्रुथ्स इन द इसरो स्पाई स्टोरी” में कई खुलासे किए हैं। यह पुस्तक नायर की 1998 की किताब ”स्पाईज फ्रॉम स्पेस: द इसरो फ्रेम-अप” का दूसरा भाग है।
राजशेखरन नायर के अनुसार, इस नए घटनाक्रम ने जनता को काल्पनिक सत्य के दलदल में धकेल दिया है।
वह लिखते हैं, ”ऐसा आंशिक रूप से जासूसी मामले को नंबी नारायणन की दुखद कहानी के तौर पर पेश करने के लिए उठाए गए घृणित कदम के कारण है। यहां तक कि पांच पीड़ितों – जिनमें से दो अब जीवित नहीं हैं- के नाम भी सार्वजनिक स्मृति से मिटा दिए गए हैं। इसका एक कारण राज्य की एजेंसियों द्वारा उस समय और मौजूदा समय में मामले पर प्रतिक्रिया दिया जाना और आंशिक रूप से हमारी प्रणाली में छुपी दरार के कारण है।”
भाषा शफीक दिलीप
दिलीप
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