रांची : ‘आजादी के आंदोलनों के बारे में किताबों में पढ़ा था. उसके बाद कुछ रेडियो में सुना कुछ टीवी में देखा, अखबारों में पढ़ा. जीवन में पहली बार सड़क पर उतर आंदोलन कर रही हूं. यहां मैं अकेली ऐसी नहीं, लगभग दो हजार महिलाएं हैं. हमारे भारतीयता पर संसद ने सवाल उठाया है, कह सकते हैं कि हमारे होने के वजूद पर ही सवाल है यह. अब नहीं तो कब घर से निकलती.’ ये नुशी बेगम के शब्द थे.
रांची के कडरू इलाके में हज हाउस के सामने लगभग हजार लोगों की भीड़ 24 घंटे लगी रहती है. बीते 15 दिनों से सीएए-एनआरसी के खिलाफ महिलाओं का धरना जारी है.
रानी परवीन के ससुर खुद से किसी तरह की दिनचर्या नहीं कर सकते हैं. वह उन्हें खाना खिलाकर धरना स्थल पर पहुंच जाती है. शाम जब उन्हें दुबारा खाना खिलाने जाती है तब तक वह बिस्तर पर ही शौच कर चुके होते हैं. रानी घर की सफाई कर ससुर को नहला और खाना खिलाकर दुबारा रात को धरना स्थल पर पहुंच जाती है. सल्ली का बेटा 10वीं का छात्र है, वह बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहा है. लेकिन अम्मी को धरना स्थल पर देख बार-बार वहीं आ जाता है. सोनी परवीन के घर में भी कुछ लोग बीमार हैं, घर के सदस्यों को दवाई देने की हिदायत दे, वह भी पिछले 15 दिनों से धरनास्थल पर दिन-रात डटी हुई हैं.
इन सब का कहना एक ही है कि यह उनके होने के वजूद पर सवाल उठ रहा है. पीएम मोदी ने खुद कहा कि तीन तलाक के खिलाफ कानून पास होने से मुस्लिम महिलाएं सशक्त हुई हैं. वह भी ऐसा मानती हैं. अब सशक्त होने के बाद अगर वह अपने हक की लड़ाई के लिए सड़क पर उतरी हैं तो उन्हें इससे दिक्कत हो रही है. कहते हैं कपड़ों से इन आंदोलनकारियों की पहचान कीजिए. वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर गोली मारने की बात करते हैं. इस सरकार ने हिन्दू और मुसलमानों के बीच बहुत बड़ी खाई बना दी है, जो इससे पहले कभी नहीं थी.
प्रदर्शन अगर पर्दा में ही तो क्या दिक्कत है
धरनास्थल पर शहीद शेख भिखारी ठाकुर, बिरसा मुंडा, भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी की फोटो लगी हुई है. साथ ही महिलाओं के लिए बैठने की अलग व्यवस्था है, पुरुषों के लिए अलग पंडाल लगाए गए हैं. नजीबा कहती हैं, ‘हम अपने घर के पुरुषों के साथ उठ-बैठ सकते हैं. लेकिन गैर मर्दों को लेकर पर्दा करना अनिवार्य है. पता नहीं, कब कौन इसका फायदा उठा ले जाए.’ मंच संभाल रही नुशी बेगम कहती हैं, ‘अगर पर्दे में रहकर ही हक की लड़ाई लड़ी जा रही है, तो इससे क्या दिक्कत है.’
गजाला कहती हैं, ‘हमें किसी पुरुष ने यहां आने के लिए नहीं कहा. यहां तक कि किसी भी महिला को उसके परिवार के पुरुष ने धरना पर बैठने को नहीं कहा.’
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धरनास्थल पर मौजूद और व्यवस्था को संभाल रहे आजाद तनवीर अहमद कहते हैं, ‘रांची में इसकी शुरूआत शाहीनबाग में चल रहे आंदोलन को देखकर ही किया गया. शुरूआत में 30-35 युवकों ने इसपर बात की, फिर हमने हम भारत के लोग नाम से संगठन बनाया. जिसमें सभी धर्मों के लोग हैं, योगेंद्र यादव ने भी इसके तहत ही आंदोलन करने को कहा.
इसके बाद कारवां आगे बनता और बढ़ता गया. महिलाएं खुद इससे जुड़ीं. उन्होंने यह भी बताया कि, ‘धरना को समर्थन देने जेएनयू, जामिया, एएमयू, बीएचयू जैसे संस्थानों से भी छात्र यहां पहुंचे हैं.’
इस धरना को बल तब मिला जब पद्मश्री मिलने के अगले ही दिन लोकगायक मधु मंसूरी इन महिलाओं के समर्थन में पहुंचे. अपने प्रसिद्ध गीत गांव छोड़ब नाही, जंगल छोड़ब नाही गाकर इस आंदोलन को नई धार दी. वह कहते हैं. यहां उनके साथ राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित फिल्मकार मेघनाद भी मौजूद थे.
ज्यां द्रेज ने कहा पैलेट गन की तरह है ये कानून
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज इस कानून को पैलेट गन की संज्ञा दी है. बीते 20 जनवरी को झारखंड नागरिक प्रयास की ओर से रांची में आयोजित एक सेमिनार में उन्होंने कहा था कि पैलेट गन का इस्तेमाल कश्मीर में पुलिस बेरहमी से कर रही है. निशाना कोई एक समूह होता है, चोट कई अन्य समूहों को भी लगती है.
इसके साथ ही पूरे राज्य भर में लगातार इसके विरोध और समर्थन में रैलीयां निकाली जा रही है. धरना-प्रदर्शन हो रहा है. बीते 23 जनवरी को लोहरदगा जिले में इस कानून के समर्थन में एक जुलूस निकाला गया. जिसपर शरारती तत्वों ने पत्थरबाजी की. जिसके बाद हिंसा भड़क उठी. दुकानों में तोड़फोड़ के साथ दर्जनों गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया. लगभग दो दर्जन से अधिक लोग घायल हुए.
इस दौरान नीरज राम प्रजापति नाम का युवक गंभीर रूप से घायल हो गया. बीते 30 जनवरी को रांची स्थित राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. घटना के 10 दिन बीत जाने तक जिले में कर्फ्यू लगा रहा. पूरे मामले में अब तक 22 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है. जिले में अभी तक धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू है.
इससे पूर्व धनबाद में आठ जनवरी को इसी कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लगभग तीन हजार लोगों पर राजद्रोह का मुकदमा प्रशासन की ओर से कर दिया गया था. हालांकि, बाद में सीएम हेमंत सोरेन के हस्तक्षेप से पुलिस ने फिर इसे वापस ले लिया.
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रविवार दो फरवरी को लातेहार जिले में इस कानून के समर्थन में हिन्दू संगठनों की ओर से बंद बुलाया गया. हालांकि प्रशासन ने रैली निकालने की अनुमति नहीं दी, लेकिन दुकानों और परिवहन व्यवस्था पर इस बंद का बुरा असर पड़ा.
बीते 18 जनवरी को बिहार के पूर्व सांसद पप्पू यादव ने सीएए-एनआरसी के खिलाफ यहीं पर रैली निकाली थी. इसके अलावा चतरा, गिरिडीह, हजारीबाग, गोड्डा, जमशेदपुर में भी लगातार प्रदर्शन हुए हैं.
रांची पहुंच रहे हैं संघ प्रमुख मोहन भागवत
दूसरी तरफ इस कानून को लेकर झारखंड के महागठबंधन सरकार की मंशा पूरी तरह साफ नहीं दिख रही. झारखंड मुक्ति मोर्चा के 41वें स्थापना दिवस (दो फरवरी) केवल इतना कहा कि केंद्र सरकार को इस कानून को लागू नहीं करना चाहिए.
धरने पर बैठी नुशी बेगम एक बार फिर कहती है, ‘हमने अपना संदेश मुख्यमंत्री आवास तक पहुंचा दिया है. अभी तक सरकार का स्टैंड इसपर पूरी तरह साफ नहीं है. जिस दिन वह हमारे धरनास्थल पर हमसे मिलने आ जाएंगे, हम समझेंगे उन्होंने हमारे वाजिब मुद्दे को समझाने में उन्होंने हमारा साथ दिया है.’
संसद का बजट सत्र चल रहा है. झारखंड विधानसभा का बजट सत्र आनेवाला है. देखनेवाली बात होगी कि इस कानून और उसके खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों पर पक्ष और विपक्ष का रवैया क्या होता है. यही नहीं, 19 फरवरी को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत रांची पहुंच रहे हैं. रांची में 20 फरवरी से संघ का पांच दिवसीय समागम शुरू होने जा रहा है. जाहिर है इस मुद्दे पर संघ की चर्चा जरूरी होगी. देखने वाली बात होगी रांची में उस वक्त विरोध का यह आंदोलन कौन-सा स्वरूप लेता है.
(लेखक झारखंड से स्वतंत्र पत्रकार हैं)