नई दिल्ली: पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने बुधवार को उस किशोर की जमानत याचिका खारिज कर दी जो 2017 में गुरुग्राम स्थित एक स्कूल में हत्या के एक मामले में मुख्य आरोपी है.
याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने इस बात पर खास ध्यान दिया कि किशोर की तरफ से गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास किया गया था और उसके पिता ने किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी), गुरुग्राम के प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट पर दबाव बनाने की कोशिश भी की थी.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है, ‘सीबीआई की तरफ से दायर जवाब में साफ तौर पर कहा गया है कि अपीलकर्ता और उसके पिता ने गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश की और सिर्फ यही नहीं मास्टर भोलू को मधुबन में सुरक्षित जगह पर स्थानांतरित करने के आदेश को वापस लेने के लिए अपीलकर्ता के पिता और उनके सहयोगियों की तरफ से जेजीबी, गुरुग्राम के प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट पर भी दबाव डाला गया.’
कार्यवाही के दौरान पहचान उजागर न करने के उद्देश्य से इस किशोर का संदर्भ मास्टर भोलू के तौर पर दिया जा रहा है और अपने ही स्कूल के एक आठ वर्षीय छात्र की हत्या के मामले में नवंबर 2017 में गिरफ्तारी के बाद से ही वह हिरासत में हैं. उस समय किशोर 11वीं कक्षा में पढ़ता था. फरवरी 2018 में सीबीआई की तरफ से आरोपपत्र दाखिल किए जाने के बाद से उसकी तरफ से दूसरी बार जमानत याचिका दायर की गई है.
जेजेबी, गुरुग्राम के प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में कहा था, ‘मुझे यह देखकर बेहद हैरानी हुई है कि वे किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 104 के तहत मिले अधिकारों के साथ जारी मेरे आदेश को बदलवाने के लिए मुझे प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे. वे मुझ पर मास्टर भोलू को ऑब्जर्वेशन होम, फरीदाबाद से सुरक्षित स्थान मधुबन पर स्थानांतरित न करने का दबाव बना रहे थे. वे मुझ पर इस आधार पर अपना 11.04.2019 का आदेश को वापस लेने का दबाव डाल रहे थे कि बोर्ड के पास अपने खुद के आदेशों में संशोधन की पर्याप्त शक्तियां हैं.
मजिस्ट्रेट ने आगे कहा, ‘जब अधोहस्ताक्षरी ने उनकी यह गैरकानूनी मांग मानने से इनकार कर दिया और उनसे कहा कि भोलू के घर के पास ही अपनी पसंद की कोई सुरक्षित जगह तय कराने या आदेश को चुनौती देने के लिए राज्य सरकार से संपर्क साधें तो वे चले तो गए. लेकिन किशोर के पिता का लहजा एकदम धमकाने वाला था.’
जमानत के लिए ‘मुकदमे में कोई प्रगति न होना एकमात्र आधार नहीं’
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि ‘हिरासत की अवधि और मुकदमे में कोई प्रगति न होना जमानत देने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है.’
अदालत ने इस तथ्य को नोट किया कि उस पर मुकदमा किशोर के तौर पर चलाया जाए या फिर वयस्क के रूप में, इस पर उसकी याचिका इस समय सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
किशोर न्याय बोर्ड ने दिसंबर 2017 में घोषित किया था कि किशोर इस मामले में दोषी है, और मानसिक और शारीरिक रूप से एक वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाने के लिए फिट है.
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