गुरुग्राम: एक वकील, जिस पर ट्रैफिक नियम उल्लंघन के दौरान खुद को न्यायिक मजिस्ट्रेट बताने का आरोप है, उसके खिलाफ दर्ज मामला रद्द कराने में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के सामने असफल रहा है.
जस्टिस सूर्य प्रताप सिंह ने वकील प्रकाश सिंह मारवाह की यह दलील मानने से इनकार कर दिया कि पूरा मामला बदले की भावना से ग्रस्त पुलिसकर्मियों ने गढ़ा है. 9 दिसंबर को अदालत ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि सच्चाई केवल मुकदमे के दौरान ही सामने आ सकती है.
जिस घटना के कारण मारवाह मुश्किल में पड़े, वह पिछले साल 18 मई की शाम चंडीगढ़ के एक व्यस्त चौराहे पर हुई. सेक्टर 45, 46, 49 और 50 के पास बने चौराहे पर सहायक उप निरीक्षक अजीत सिंह और कांस्टेबल योगेश ड्यूटी पर थे. उन्होंने एक स्कॉर्पियो गाड़ी देखी, जिसकी नंबर प्लेट आंशिक रूप से ढकी हुई थी.
पुलिस के मुताबिक, ड्राइवर ने इशारा करने के बावजूद जेब्रा क्रॉसिंग पर गाड़ी नहीं रोकी. जब कांस्टेबल योगेश ने वीडियो रिकॉर्ड करना शुरू किया और ड्राइविंग लाइसेंस मांगा, तो गाड़ी चला रहे व्यक्ति ने अपना नाम प्रकाश बताया और कहा कि वह न्यायिक मजिस्ट्रेट है.
पुलिस का कहना है कि जब उससे पुष्टि के लिए पूछा गया, तो उसने सिर हिलाया और कथित तौर पर वहां से गाड़ी लेकर चला गया.
इसके बाद जब एसयूवी के रजिस्ट्रेशन की जांच की गई, तो वह किसी भी मजिस्ट्रेट के नाम पर पंजीकृत नहीं पाई गई, जबकि गाड़ी के शीशे पर जज का स्टिकर लगा था. इसके बाद सेक्टर 49 पुलिस स्टेशन में एफआईआर नंबर 26 दर्ज की गई. दो दिन बाद, 20 मई को मारवाह को गिरफ्तार किया गया.
अपनी याचिका में मारवाह ने खुद को साफ छवि वाला युवा वकील बताया, जो सामाजिक सेवा में रुचि रखता है. उन्होंने कहा कि उन्होंने सरकारी लापरवाहियों को लेकर कई शिकायतें दर्ज कराई हैं, जिनमें ट्रैफिक पुलिस के एक डीएसपी के खिलाफ शिकायत भी शामिल है. उनका दावा है कि इसी वजह से उन्हें निशाना बनाया गया.
वकील का कहना है कि उस शाम वह अपनी बुजुर्ग और बीमार मां को गाड़ी से चौराहे से ले जा रहे थे, तभी सादे कपड़ों में मौजूद पुलिसकर्मियों ने अचानक उन्हें रोक लिया. उन्होंने दावा किया कि यह पूरा मामला उनके सामाजिक सक्रियता का बदला लेने के लिए गढ़ा गया है. उन्होंने कहा, “यह मुझे गैर जमानती मामले में फंसाने की साजिश है.”
मारवाह के वकीलों ने दलील दी कि मामला तकनीकी रूप से कमजोर है, क्योंकि भारतीय दंड संहिता की धारा 186, जो लोक सेवक के काम में बाधा डालने से जुड़ी है, उसमें संबंधित अधिकारी की लिखित शिकायत जरूरी होती है, सिर्फ एफआईआर नहीं. वकीलों ने यह भी कहा कि गिरफ्तारी के बाद मारवाह इतने अवसाद में चले गए कि उन्हें काउंसलिंग लेनी पड़ी और उन्हें मानसिक अस्वस्थता से जुड़े कानूनों के तहत संरक्षण मिलना चाहिए.
जस्टिस सिंह ने कहा कि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि मारवाह उस चौराहे पर गाड़ी चला रहे थे. उन्होंने इसे एक ऐसा मामला बताया, जिसमें दोनों पक्ष एक-दूसरे के विपरीत दावे कर रहे हैं और जिसे केवल मुकदमे में ही सुलझाया जा सकता है.
जस्टिस ने कहा, “सच कौन बोल रहा है, पुलिस या याचिकाकर्ता. यह बिना गवाहों को सुने और सबूत देखे तय नहीं किया जा सकता.” उन्होंने कहा कि मुकदमे के बिना इस स्तर पर तथ्यों का फैसला करना उल्टा तरीका होगा.
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया है कि एफआईआर को रद्द करना केवल ‘बहुत ही दुर्लभ मामलों’ में होना चाहिए, इसे सामान्य प्रक्रिया नहीं बनाया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि पुलिस को जांच करने दी जानी चाहिए और अदालतों को जल्दबाजी में दखल नहीं देना चाहिए.
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 से जुड़े तकनीकी बिंदु पर न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि मारवाह पर दो अलग-अलग आरोप लगाए गए हैं, एक प्रतिरूपण यानी खुद को जज बताना और दूसरा लोक सेवक के काम में बाधा डालना.
उन्होंने कहा कि अगर लोक सेवक के काम में बाधा डालने वाले आरोप में कोई तकनीकी कमी भी हो, तो प्रतिरूपण का आरोप स्वतंत्र रूप से चल सकता है. जस्टिस ने कहा, “अगर आपको किसी एक आरोप पर आपत्ति है, तो वह आप ट्रायल के दौरान आरोप तय होने के समय उठाएं.”
मानसिक स्वास्थ्य और अवसाद के दावे पर अदालत ने साफ कहा, “आप कह रहे हैं कि घटना के बाद आप अवसाद में चले गए. लेकिन आप यह नहीं कह रहे कि घटना के समय आप मानसिक रूप से अक्षम थे. यह एफआईआर रद्द करने का आधार नहीं बनता.”
जस्टिस सिंह ने कहा कि अगर मारवाह को सच में लगता है कि वह मानसिक स्वास्थ्य कारणों से मुकदमे का सामना करने के योग्य नहीं हैं, तो वह यह बात ट्रायल कोर्ट के सामने रख सकते हैं. लेकिन इस आधार पर इस स्तर पर मामला खत्म नहीं किया जा सकता.
हाई कोर्ट ने कहा, “बिना ठोस सबूत के अभी कोई निष्कर्ष निकालना न्याय की विफलता का कारण बन सकता है.” इसके साथ ही अदालत ने मामले के ट्रायल का रास्ता साफ कर दिया.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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