नई दिल्ली: 31 जुलाई को रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के कांस्टेबल चेतन सिंह ने कथित तौर पर मुंबई जाने वाली ट्रेन में अपने वरिष्ठ अधिकारी और तीन यात्रियों को अपनी सर्विस राइफल एके-47 से गोली मारकर हत्या कर दी. यह घटना महाराष्ट्र में वैतरणा रेलवे स्टेशन के पास हुई.
बाद में खबर आई की चेतन सिंह गंभीर ‘चिंता विकार’ से पीड़ित थे, लेकिन रेलवे ने बुधवार को एक बयान जारी किया- जिसे कुछ ही घंटों में वापस ले लिया- कि उनके परिवार ने इसे गुप्त रखा था. इसमें कहा गया है कि उसकी अंतिम चिकित्सा जांच में कोई चिकित्सीय बीमारी नहीं पाई गई.
चूंकि इस घटना ने आरपीएफ को चारो ओर चर्चा में ला दिया, इसलिए दिप्रिंट आपको बता रहा है कि आरपीएफ क्या करता है और ट्रेनों में यात्रियों और रेलवे संपत्ति पर सुरक्षा सुनिश्चित करने में इसकी क्या भूमिका है.
रेलवे सुरक्षा बल अधिनियम, 1957 के तहत गठित, आरपीएफ को यात्रियों, रेलवे के क्षेत्रों और रेलवे संपत्ति की बेहतर सुरक्षा का काम सौंपा गया है. इसकी उत्पत्ति भारत में ब्रिटिश शासन के समय हुई थी. आरपीएफ की वेबसाइट के अनुसार, ब्रिटिश शासन ने रेलवे की निगरानी और वार्ड की सुरक्षा के लिए ‘कंपनी पुलिस’- आरपीएफ के पूर्ववर्ती- की स्थापना की गई थी.
आरपीएफ का नेतृत्व महानिदेशक स्तर का एक अधिकारी करता है. अधिकारियों की भर्ती संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से की जाती है और वे भारतीय रेलवे सुरक्षा बल सेवा (आईआरपीएफएस) के सदस्य होते हैं.
हालांकि, कांस्टेबल, सब-इंस्पेक्टर और सहायक सब-इंस्पेक्टर के पदों पर भर्ती यूपीएससी नहीं बल्कि रेल मंत्रालय द्वारा आयोजित परीक्षा के माध्यम से की जाती है.
आरपीएफ की शक्तियां एवं जिम्मेदारियां
आरपीएफ के पास रेलवे संपत्ति (गैरकानूनी कब्ज़ा) अधिनियम, 1966 के तहत चोरी, रेलवे संपत्ति पर अवैध कब्ज़ा और बेईमानी से हेराफेरी के मामलों में हस्तक्षेप की अनुमति देता है.
इसके साथ ही, इसके पास रेलवे अधिनियम, 1989 के तहत महिलाओं के लिए आरक्षित डिब्बों में अनधिकृत प्रवेश, अतिक्रमण, ट्रेनों की छत पर यात्रा, दलाली और वेंडिंग से संबंधित अपराधों से निपटने की भी शक्ति है.
आरपीएफ को रेलवे सुरक्षा विशेष बल (आरपीएसएफ) द्वारा प्रदान की गई सहायता के माध्यम से जोनल रेलवे में विशेष सेवाएं मिलती हैं. रेलवे की वार्षिक पुस्तक (2021-22) के अनुसार, देश के विभिन्न हिस्सों में इसकी 15 यूनिट है. इनमें एक महिला बटालियन और एक कमांडो बल- कमांडो फॉर रेलवे सिक्योरिटी (CORAS) शामिल है, जिसे अगस्त 2019 में शामिल किया गया था.
CORAS को रेल परिचालन में गड़बड़ी और किसी भी प्रकार के व्यवधान के अलावा रेलवे क्षेत्रों में आपदा, अपहरण आदि से संबंधित स्थितियों से मुकाबला करने के लिए बनाया गया था.
कमांडो- जिसमें आरपीएफ और आरपीएसएफ के जवान शामिल होते हैं- को काफी सख्त ट्रेनिंग दी जाती है. इसमें बारूदी सुरंगों और तात्कालिक विस्फोटक उपकरणों (आईईडी) की स्थिति को संभालने की ट्रेनिंग शामिल है. साथ ही वे आधुनिक हथियारों, विशेष वर्दी, बुलेट-प्रूफ जैकेट और हेलमेट से लैस होते हैं.
इसके अलावा कानून- व्यवस्था, रखरखाव, अपराध का पता लगाना, पंजीकरण, जांच आदि की जिम्मेदारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) की होती है. जीआरपी संबंधित राज्य सरकार के अंतर्गत आती है और बाद में सरकार जीआरपी की प्रशासनिक लागत को केंद्र के साथ शेयर करती है.
स्टेशनों और पार्सल कार्यालयों, माल-शेडों, माल-वैगनों की सुरक्षा के लिए जीआरपी जिम्मेदार नहीं है. इसका जिम्मा आरपीएफ के पास है.
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आरपीएफ की ताकत, हथियार
11 मार्च, 2020 को रेल मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रेस बयान के अनुसार, आरपीएफ में स्वीकृत पदों की संख्या 74,830 है. हालांकि, अभी आरपीएफ में 61,869 कर्मी कार्यरत हैं.
सभी आरपीएफ और आरपीएसएफ कर्मियों- सहायक उप निरीक्षक (एएसआई) और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी, हेड कांस्टेबल, कांस्टेबल और ड्राइवर- को उनके रैंक के आधार पर हथियार मिलते हैं.
इन हथियारों में पिस्तौल, कार्बाइन, इंसास राइफल, सेल्फ-लोडिंग राइफल (एसएलआर) और लाइट मशीन गन (एलएमजी) शामिल हैं.
2011 में रेलवे बोर्ड द्वारा जारी एक स्थायी आदेश के अनुसार, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के हाथ लगी है, एएसआई और उससे ऊपर रैंक के सभी आरपीएफ और आरपीएसएफ कर्मियों को 9 मिलीमीटर की पिस्तौल दी जाती है.
आरपीएफ हेड-कांस्टेबलों के मामले में, 15 प्रतिशत को एके-47 राइफलें दी जाती है, 20 प्रतिशत को इंसास राइफलें और 10 प्रतिशत को एसएलआर दी जाती है. बाकी बचे को कार्बाइन और पिस्तौल प्रदान मिलती है.
आदेश के मुताबिक, केवल 10 प्रतिशत आरपीएफ कांस्टेबलों को एके-47 राइफलें मिलती है. जबकि 25 प्रतिशत को इंसास राइफलें, 15 प्रतिशत को एसएलआर और शेष को कार्बाइन और पिस्तौल दी जाती है.
आरपीएसएफ के 30 प्रतिशत हेड-कांस्टेबलों को एके-47 राइफलें मिलती है. 40 प्रतिशत इंसास राइफलों से लैस होते हैं. बाकी को पिस्तौल और कार्बाइन उपलब्ध कराई जाती हैं.
आरपीएसएफ कांस्टेबलों के मामले में, 20 प्रतिशत को एके-47 राइफलें प्रदान की जाती हैं, 55 प्रतिशत को इंसास राइफलें मिलती हैं. शेष को पिस्तौल और कार्बाइन प्रदान की जाती हैं.
इसके अलावा, सभी ड्राइवर (प्रशिक्षित), जो अधीनस्थ अधिकारियों और अधीनस्थ अधिकारियों के रैंक में आते हैं, उन्हें 9 मिलीमीटर पिस्तौल दी जाती है.
मेडिकल परीक्षण
भारतीय रेलवे के अनुसार, कैटेगरी A-1, A-2 और A-3 के तहत राजपत्रित अधिकारियों को 45 वर्ष की आयु तक हर चार साल में एक बार और 55 वर्ष की आयु तक हर दो साल में एक बार चिकित्सा परीक्षा से गुजरना पड़ता है. 55 साल की आयु के बाद हर साल यह करवाना पड़ता है.
कैटेगरी B-1 और B-2 के तहत अधिकारी 45 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर और उसके बाद हर 5 साल में ऐसी परीक्षा से गुजरते हैं.
इस बीच, कैटेगरी C-1 और C-2 के तहत अधिकारियों का चिकित्सा जांच को लेकर समय निर्धारित नहीं है.
कांस्टेबल, जो रेलवे वेबसाइट पर ‘बल के अन्य सदस्यों’ के रूप में सूचीबद्ध हैं और अराजपत्रित कर्मी हैं, उन्हें हर तीन साल में समय-समय पर चिकित्सा जांच से गुजरना पड़ता है.
हालांकि, नाम न छापने की शर्त पर आरपीएफ के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि परीक्षाएं उस तरह से आयोजित नहीं की जाती है और साथ ही उसपर काफी कम फोकस रहता है. इसके अलावा मनोचिकित्सकों की संख्या भी काफी कम रहती है.
अधिकारी ने कहा, “पिछले कुछ साल में, आरपीएफ का काम कई गुना बढ़ गया है, लेकिन इसकी संख्या कम बनी हुई है. उदाहरण के लिए, आरपीएफ में ड्राइवरों और गार्डों के लिए अनिवार्य आराम अवधि है, लेकिन आरपीएफ कर्मियों को यह सुविधा क्यों नहीं प्रदान की जाती है?”
(संपादन: ऋषभ राज)
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