ऊंझा, गुजरात: आस्था बना भी सकती है और बिगाड़ भी सकती है. इस मामले में गुजरात के ऊंझा स्थित उमिया माताजी मंदिर 1 अप्रैल से उत्तराखंड में चल रहे कुंभ मेले से एकदम उलट है, जहां पवित्र गंगा में डुबकी के लिए बड़ी संख्या में साधु-संतों और श्रद्धालुओं के जुटने से यह आयोजन कोविड सुपर स्प्रेडर बन गया है.
इस मंदिर, जो राज्य के पाटीदार पटेल समुदाय के बीच विशेष अहमियत रखता है, ने अप्रैल में अपने दरवाजे भक्तों के लिए बंद रखने का फैसला किया है, ताकि शहर में कोविड फैलने से रोका जा सके.
हिंदू कैलेंडर के प्रमुख धार्मिक आयोजन नवरात्रि के दौरान मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इस मंदिर में औसतन 20,000 श्रद्धालु प्रतिदिन आते हैं साल भर में यहां करीब 80 लाख लोग दर्शन करने पहुंचते हैं. इस साल नवरात्रि 13 अप्रैल से शुरू हुई है. मंदिर ने शहर में कोविड फैलने से रोकने के लिए इस महीने दर्शन-पूजन को बंद कर दिया है, ताकि ‘ईश्वर में आस्था’ बीमारी और मौत का कारण न बने.
ऊंझा स्थित उमिया माताजी मंदिर का प्रबंधन करने वाले ट्रस्ट के संयुक्त सचिव दिलीप पटेल ने दिप्रिंट को बताया, ‘समुदाय के अगुआ होने के नाते लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी ज़िम्मेदारी है. उमिया माता मंदिर हर साल दुनियाभर से 60-80 लाख भक्तों के यहां आने का गवाह बनता है. हर साल 100 से अधिक देशों से पाटीदार पटेल उमिया माता का आशीर्वाद लेने यहां आते हैं. नवरात्र अभी शुरू हुए हैं और इस दौरान लगभग 50,000 लोग मंदिर आते हैं. इसके अलावा हमें सप्ताहांत और पूर्णिमा के दिन भी इसी तरह श्रद्धालुओं की भीड़ दिखती है.
उन्होंने आगे बताया कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि मंदिर में जुटकर बड़ी संख्या में लोग संक्रमण का शिकार न बनें, मंदिर अधिकारियों ने इसके दरवाजे श्रद्धालुओं के लिए बंद रखने का फैसला किया है. हालांकि, भक्त, नवरात्रि की आरती को वर्चुअली लाइव देख पाएंगे.
इस शहर में केवल उमिया माताजी मंदिर ही एकमात्र ऐसी जगह नहीं है जिसे कोविड संक्रमण रोकने की कोशिश के तहत स्वेच्छा से बंद किया गया है.
ऊंझा कृषि उपज मंडी समिति (एपीएमसी) एशिया का सबसे बड़ा मसाला बाजार है जहां 800 चीजों का कारोबार होता है और करीब 3000 लोगों, जो यहां काम करते हैं और जो व्यापार करने आते हैं, की आजीविका चलती है. माना जा रहा था कि बाजार शहर में संभावित कोविड सुपर स्प्रेडर बन सकता है, और इसलिए ऊंझा एपीएमसी के कारोबारियों और ऊंझा नगरपालिका फैसला किया कि 21 अप्रैल तक सभी दुकानें और कारोबार बंद कर रखा जाएगा.
व्यापारी संघ और मंदिर प्रशासन दोनों की तरफ से दिहाड़ी मजदूरों और गरीबों को राशन और पका हुआ भोजन दोनों ही तरह से मदद की जा रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्वेच्छा से लगाया गया ये लॉकडाउन किसी को संकट में न डाले.
इस बीच, यहां रहने वाले लोगों ने भी जहां तक मुमकिन हो कम ही बाहर निकलने का फैसला किया है.
सरकार ने उन पर किसी भी तरह के प्रतिबंध नहीं लगाए हैं. ऊंझा ने स्वेच्छा से लॉकडाउन किया है, जबकि मेहसाणा जिले, जिसमें ऊंझा शहर भी शामिल है, में गुरुवार (15 अप्रैल) को 249 मामले दर्ज किए गए.
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आत्म संयम
शहर की सुनसान पड़ी गलियां याद दिलाती हैं कि पिछले साल महामारी की शुरुआत के बाद देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान देश में कैसी स्थिति थी. लेकिन यहां किसी भी सरकार ताकत ने शहर के निवासियों को यह संयम अपनाने के लिए बाध्य नहीं किया है.
गुजरात का एक छोटा-सा शहर ऊंझा राज्य की राजधानी गांधीनगर से 80 किलोमीटर उत्तर में स्थित है, और 2011 की जनगणना के मुताबिक इसकी आबादी 57,000 से कुछ अधिक है. देश में लगातार बढ़ते मामलों के बीच इसने कोविड संक्रमण की चेन तोड़ने का फैसला किया है.
कारोबार बंद करने का फैसला ऊंझा एपीएमसी कारोबारियों की तरफ से किया गया है.
ऊंझा एपीएमसी के सचिव विष्णु पटेल ने दिप्रिंट को बताया, ‘कारण एकदम साफ है…हम (कोविड की) चेन तोड़ना चाहते हैं. हर रोज हम बेड और दवाओं की कमी की रिपोर्ट सुनते हैं. हम नहीं चाहते कि हमारे समुदाय को भी ऐसी किसी समस्या का सामना करना पड़े. 13 अप्रैल को एक बैठक की गई थी, और उसमें सर्वसम्मति से फैसला लिया गया कि कस्बे की सभी दुकानें बंद रखी जाएंगी.’
इस फैसले की वजह स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा, ‘एपीएमसी मसाला मंडी में रोजाना लगभग 5,000 से 8,000 लोग आते-जाते हैं. यह एक संभावित सुपर स्प्रेडर हो सकता था और हम ऐसा नहीं चाहते. बाजार 22 अप्रैल को फिर से खुल जाएगा.’
व्यापारियों ने अपने स्तर पर फैसला करने के बाद नागरिक निकाय से संपर्क साधा, जिसके लिए एक उदाहरण पेश कर रहे शहर का समर्थन करने से ज्यादा खुशी की बात कोई हो ही नहीं सकती थी.
ऊंझा नगरपालिका प्रमुख रिंकूबेन पटेल ने कहा, ‘जब व्यापारी संघ कस्बे में एक हफ्ते के लॉकडाउन का प्रस्ताव लेकर आया, तो हमें यह फैसला उचित लगा और हमने लॉकडाउन की अनुमति देने का फैसला किया.’
उन्होंने आगे कहा, ‘लॉकडाउन शुरू होने के दो दिनों के भीतर हमने शहर में कोविड के मामलों की संख्या में गिरावट देखी है.’ हालांकि, उन्होंने दिप्रिंट को कोई आंकड़ा साझा करने से इनकार कर दिया.
कारोबार के लिहाज से लॉकडाउन ही एकमात्र ऐसा तरीका नहीं है जो इस शहर ने वायरस का संक्रमण रोकने के लिए अपनाने का फैसला किया है. लोगों ने भी कम से कम ही बाहर जाने का फैसला किया है.
ऊंझा की रहने वाली 45 वर्षीय कांताबेन पटेल ने कुछ जरूरी सामान लेने के लिए अपने घर से बाहर निकली थी जब वह दूध की एक दुकान के बाहर दिप्रिंट संवाददाताओं से मिलीं. उन्होंने कहा, ‘शहर के लोगों ने लॉकडाउन का फैसला किया है और हम सभी इससे सहमत हैं. हम स्वेच्छा से अपने घरों के अंदर रह रहे हैं. हम चेन तोड़ना चाहते हैं और अपने शहर में वायरस का संक्रमण रोकना चाहते हैं.’
डाकघर की एक सफाई कर्मचारी सुबह-सुबह अपना काम करने के लिए घर से निकलती है और फिर घर लौटकर अंदर ही रहती है. उसने कहा, ‘मैं यह सुनिश्चित कर रही हूं कि मेरे परिवार के सभी सदस्य लॉकडाउन का भी पालन करें.’
व्यापारियों ने जरूरतमंदों की मदद के कदम उठाए
ऐसा फैसला कुछ वित्तीय नुकसानों के बिना लागू नहीं किया जा सकता. लेकिन व्यापारी ये सुनिश्चित करने में लगे हैं कि इससे उन लोगों को कोई परेशानी न हो जिनके पास संसाधन सीमित मात्रा में ही हैं.
विष्णु पटेल ने बताया, ‘ज्यादातर व्यापारियों ने स्वेच्छा से लॉकडाउन के लिए सहमति जताई. हम अपने कर्मचारियों को उनके सामान्य दैनिक वेतन का भुगतान कर रहे हैं. बाजार बंद होने से वित्तीय संकट की स्थिति में आए लोगों या फिर जिनके पास भोजन की कमी है, उन्हें जरूरत के मुताबिक राशन की आपूर्ति की जा रही है.’
ऐसी ही एक लाभार्थी हैं शांताबेन, जो मंडी में सफाई कर्मचारी के रूप में काम करती हैं. शांताबेन ने दिप्रिंट से कहा, ‘चूंकि हमारी तनख्वाह कम है, इसलिए हम एक हफ्ते का लॉकडाउन नहीं झेल सकते. मेरे परिवार ने एसोसिएशन के सदस्यों में से एक से आर्थिक मदद मांगी. इसके बजाये उन्होंने हमें एक हफ्ते के लिए राशन मुहैया कराया. घर में पांच लोग खाने वाले हों तो यह भी एक बहुत बड़ी मदद है.’
रिंकू पटेल ने बताया, ‘अब तक किसी ने भी व्यापार में नुकसान की शिकायत नहीं की है. व्यापारी संघ राशन और नियमित वेतन की जरूरत वाले लोगों की मदद कर रहा है.’
उन्होंने यह भी बताया कि व्यापारी संघ इलाज के लिए भी धन मुहैया करा रहा है. उन्होंने कहा, ‘स्थानीय सरकारी अस्पताल में कोविड मरीजों के लिए ऑक्सीजन आपूर्ति के साथ 50-बेड की व्यवस्था करने के लिए उन्होंने वित्तीय मदद उपलब्ध कराई है.’
मंदिर भी यह सुनिश्चित कर रहा है कि कोई गरीब बिना भोजन के न रह जाए.
दिलीप पटेल ने बताया, ‘मंदिर में एक सामुदायिक किचन है, जो हर महीने लगभग 12,000 लोगों को भोजन कराता है. भले ही मंदिर बंद है लेकिन धर्मार्थ गतिविधियों के तहत, हमने हर दूसरे दिन किचन चलाने का फैसला किया है. ताकि जरूरतमंद मंदिर में आकर भोजन कर सकें.’
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